शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

खान जब बीजापुर से चला था तो विदाई से पहले बादशाह अली आदिल शाह और बड़ी बेगम ने साफ शब्दों में कह दिया था, “उस शिवा को दगाबाजी से ही फँसा लेना।” फिर भी खान 22 हजार की फौज और प्रचंड युद्ध-सामग्री के साथ निकला था। शिवाजी राजे का सर्वनाश करने। खान के इस तूफानी अभियान की खबरें सब तरफ फैलने लगी थीं। भयानक खबरें आ रही थीं। रास्ते में खान ने तुलापुर भवानी की मूर्ति तोड़ डाली थी। माणकेश्वर का शिवालय तोड़ डाला था। पंढरपुर के देवस्थानों पर भी हमला किया था। इससे हर तरफ कुहराम मच गया था।

इसी दौरान खान ने मावल के सरदारों को डाँट-डपटभरे फरमान भी भेजे थे। इन बादशाही फरमानों में लिखा था, “शिवाजी को निर्मूल करने के लिए हमने अफजल खान को तैनात किया है। शिवाजी का पक्ष छोड़कर तुम लोग खान की तरफ हो जाओ। खान के पक्ष में रहने में ही तुम्हारी भलाई है। वरना बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा।” उत्रवली के सरदार खंडोजी खोपड़े को भी ऐसा ही फरमान मिला। लालच से अन्धे होकर खोपड़े ने स्वराज्य का पक्ष छोड़ दिया।

सरदार कान्होजी जेधे को (तारीख, 16 जून, 1659) भी फरमान मिला था। इसे पढ़कर कान्होजी के मन में उथल-पुथल मच गई। अपने पाँचों पुत्रों को लेकर वे शिवाजी के पास शिवपुर चले गए। खंडोजी खोपड़े तब खान के साथ शामिल हो ही चुके थे। इससे स्वराज्य के सेवकों को गहरा धक्का लगा था। कान्होजी भी परेशान थे। सो, वे शिवाजी राजे से मशवरा करने पहुँचे थे। तब राजे ने उनसे कह दिया, “नाइक आप भी खान के पास चले जाइए। हमारी खातिर अपना सर्वनाश न करिए।”  राजे के शब्द कान्होजी को शूल से चुभे। तिलमिला उठे वह। जेथे स्वार्थ के लिए दगाबाजी करेंगे? असम्भव। चाँद-सूरज आसमान से टूट पड़ेंगे, पर कान्होजी विश्वासघात कदापि न करेंगे। राजे के सामने कान्होजी ने घर-बार को तिलांजलि दे दी। महाराज की कसौटी में कान्होजी खरे उतरे। कान्होजी और उन्हीं के जैसे निष्ठावान् सरदारों की निष्ठा से शिवाजी राजे में बला की ताकत आ गई थी। लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं।

शिवाजी ने अफजल खान जैसी प्रचंड शक्ति को ऐसे ही ईमानी स्वजनों के दम पर नेस्तनाबूद किया था। पेट का जख्म हाथ से दबाकर, लड़खड़ाते हुए खान चीख रहा था। किसी तरह वह शामियाने से बाहर आया। हड़बड़ाए कहार जल्दी से पालकी ले आए। खान ने पालकी में अपना शरीर घुसेड़ दिया। चित लेट गया। इतने में सैयद बन्दा फूर्ति से शामियाने में घुसा। राजे पर वार करने को झपटा। तभी राजे के साथ आए जिवा महाले ने दौड़कर उसे मार गिराया। जिवा के कारण शिवा बच गए (दिनांक 10 नवम्बर, 1659)। शिवाजी महाराज की खातिर, इस तरह जान हथेली पर लेकर लड़ने वाले हजारों की तादाद में थे। और वे यह सब किसी जागीर या बक्षीश की आशा से नहीं, बल्कि उनके प्रति प्यार की खातिर करते थे। इस अकृत्रिम स्नेह के कारण महाराज उनके हृदय से आभारी थे। अपने साथियों की भलाई के लिए महाराज भी पूरी कोशिश किया करते थे।

प्रतापगढ़ का पालकी का पठार खून से लथपथ हो गया। रणसिंगे, तुरही, नगाड़े घनघना उठे। प्रतापगढ़ पर तोपें गरज उठाीं। तोपों का धमाका सुन, छिपकर बैठी मराठा फौज अफजल खान की सेना पर टूट पड़ी। कुहराम मच गया। चीख, पुकार, चिल्लाहट, बारूद के धमाके। धुएँ के बगुले और चीखते-चिंघाड़ते हाथियों की, हिनहनाते घोड़ों की भागमदौड़। सन्तप्त मराठों की मारकाट। शस्त्रों की खनखनाहट। पहाड़ गूँज उठे। दिशाएँ रणमस्त हुईं। अफजल खान के सैनिक आए थे स्वराज्य का, शिवाजी राजे का खात्मा करने। अब खुद ही मौत के मुँह में समाने लगे।

इधर, शामियाने में सैयद बन्दा ने दम तोड़ दिया। खान के वकील कृष्णाजी पन्त को राजे ने अभय दे रखा था। इसके बावजूद जब वह उन पर वार करने दौड़ा, तो दया-माया को ताक पर रखकर राजे ने उसका काम तमाम कर दिया। उधर, लहुलुहान खान को लेकर उसके कहार पालकी लेकर भागने लगे। पता नहीं वे उसे कहाँ ले जाना चाहते थे। खान की सेना में भगदड़ मची हुई थी। खान की पालकी दौड़ाई जा रही थी। यह देख सम्भाजी कावजी काेंढालकर उसकी ओर लपके। कहारों को घायल कर उन्होंने उन्हें नीचे गिराया। फिर एक झटके में खान का सर काट दिया। कटे हुए सर को लेकर वह तेजी से पहाड़ पर चढ़ने लगे। तब तक शिवाजी महाराज भी जल्दी-जल्दी गढ़ पर चले गए थे।

हालाँकि नेताजी पालकर, तानाजी, मोरोपन्त, जेधे और उनके साथ के सभी सैनिक उस बीहड़ जंगली दर्रे में खांडव वन का रणोत्सव मना रहे थे। धोखाधड़ी की कूटनीति बीजापुरियों को धोखा दे गई थी। करीब-करीब इसी समय स्वराज्य के सेनानियों ने शिरवल, सुपे और सासवड़ थानों पर भी हमला कर उन्हें जीत लिया था। एक ही दिन में, एक ही हमले में, ये थाने फिर स्वराज्य में शामिल हो गए थे। एक ही दिन में इतनी बड़ी विजय। यह विजय तो महत्त्वपूर्ण थी ही। उसके साथ हासिल हुई अपार युद्ध सामग्री और सम्पदा भी कम कीमती नहीं थी।

प्रतापगढ़ इतिहास में अमर हो गया। पालकी के पठार पर जहाँ खान और शिवाजी महाराज की मुलाकात हुई थी, वहीं पर खान की कब्र बाँधी गई। खान की मृत्यु से आदिलशाही सैनिकों एवं सरदारों में घबराहट फैल गई। खान के बेटे फाजल खान और मुसेखान ने स्थिति को संभालने की बहुतेरी कोशिश की थी। पर वह बेकार रही। पाँव उखड़ने के चिह्न दिखाई देते ही, सब सर पे पाँव रखकर भाग खड़े हुए।
—–
(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
—– 
शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!
1- शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है

आज, 10 अप्रैल को भगवान महावीर की जयन्ती मनाई गई। उनके सिद्धान्तों में से एक… Read More

9 hours ago

बेटी के नाम आठवीं पाती : तुम्हें जीवन की पाठशाला का पहला कदम मुबारक हो बिटवा

प्रिय मुनिया मेरी जान, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूँ, जब तुमने पहली… Read More

1 day ago

अण्डमान में 60 हजार साल पुरानी ‘मानव-बस्ती’, वह भी मानवों से बिल्कुल दूर!…क्यों?

दुनियाभर में यह प्रश्न उठता रहता है कि कौन सी मानव सभ्यता कितनी पुरानी है?… Read More

3 days ago

अपने गाँव को गाँव के प्रेमी का जवाब : मेरे प्यारे गाँव तुम मेरी रूह में धंसी हुई कील हो…!!

मेरे प्यारे गाँव तुमने मुझे हाल ही में प्रेम में भीगी और आत्मा को झंकृत… Read More

3 days ago

यदि जीव-जन्तु बोल सकते तो ‘मानवरूपी दानवों’ के विनाश की प्रार्थना करते!!

काश, मानव जाति का विकास न हुआ होता, तो कितना ही अच्छा होता। हम शिकार… Read More

5 days ago

ये नई उभरती कम्पनियाँ हैं, या दुकानें?…इस बारे में केन्द्रीय मंत्री की बात सुनने लायक है!

इस साल के जनवरी महीने की 15 तारीख़ तक के सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत… Read More

6 days ago