‘जल पुरुष’ राजेन्द्र सिंह जैसे लोगों ने राह दिखाई, फिर भी जल-संकट से क्यूँ जूझते हम?

ज़ीनत ज़ैदी, दिल्ली

गर्मियों के मौसम देश के किसी न किसी हिस्से में ‘पानी की कमी’ की ख़बरें अक्सर पढ़ती हूँ। मिसाल के तौर पर बेंगलुरू में पानी की कमी, चेन्नई का जल-संकट। यहाँ तक कि देश की राजधानी दिल्ली के ही कई इलाकों में पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। वहाँ टैंकरों से पानी की आपूर्ति होती है। 

फिर इन्हीं ख़बरों के बीच ‘जल-पुरुष’ राजेन्द्र सिंह जी जैसे लोगों के कामों से वाबस्ता होती हूँ। ऐसे काम जिनमें जल-संकट का स्थायी निदान छिपा हुआ है। अभी कुछ दिन पहले ही राजेन्द्र सिंह जी के बारे में पढ़ा। मैंने जाना कि उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डोला गाँव में 6 अगस्त 1959 को राजेन्द्र सिंह जी का जन्म हुआ। लेकिन उनके भीतर छिपे ‘जल पुरुष’ का जन्म इसके कई साल बाद राजस्थान में हुआ। 

यह साल 1975 की बात है, जब जयपुर, राजस्थान में ‘तरुण भारत संघ’ की स्थापना हुई थी। इस संस्था का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, विशेष तौर पर जल संरक्षण की दिशा में काम करना था। राजेन्द्र सिंह जी इस संस्था की स्थापना के समय से ही इसके साथ जुड़ गए। वह 1980 में इसके महासचिव बने और फिर कुछ सालों बाद संस्था के अध्यक्ष का पद सँभाल लिया उन्होंने। उनकी अगुवाई में ‘तरुण भारत संघ’ ने सबसे ज़्यादा चर्चित काम राजस्थान में ही किया। विशेष तौर पर अलवर जिले में, जहाँ इस वक़्त संस्था का मुख्यालय भी है।

राजेन्द्र सिंह जी के नेतृत्त्व में अलवर जिले के कई इलाकों में जगह-जगह ‘जोहड़’ बनवाए गए। ये छोटे-छोटे तालाब होते हैं, जिनमें बारिश का पानी का इकट्‌ठा होता है। इसके अलावा भी, कई जगहों पर तरुण भारत संघ की मदद और राजेन्द्र सिंह जी के मार्गदर्शन से 11,800 से ज़्यादा ‘जोहड़’ बनाए जा चुके हैं। इसके नतीज़े में 1,200 से अधिक गाँवों में ज़मीन के नीचे का पानी का स्तर बेहतर हुआ है। वे पानी के संकट से मुक्त हुए हैं। यही नहीं, राजस्थान की नौ, महाराष्ट्र की दो और कर्नाटक की एक, कुल 12 नदियों को भी इसी तरह के प्रयासों से नया जीवन मिल चुका है अब तक। जाहिर है, इसके लिए उन्हें कई राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार, सम्मान भी मिले हैं।

लेकिन सवाल उठता है कि क्या इतने भर से राजेन्द्र सिंह जी और उनके जैसे लोग खुश या सन्तुष्ट होते होंगे? मुझे नहीं लगता क्योंकि इस क़िस्म के लोग अपने पुरस्कार या सम्मान के लिए अपनी ज़िन्दगी नहीं खपाते। बल्कि वे समाज में बड़े बदलाव की उम्मीद लेकर दिन-रात एक करते हैं। और जहाँ तक पानी के संकट या संरक्षण का मसला है, तो यक़ीनन बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली जैसी तमाम छोटी-बड़ी जगहों से आने वाली ख़बरें इन लोगों को कचोटती होंगी। इन्हें तक़लीफ़ होती होगी यह जानकर कि उनके तमाम प्रयासों के बावज़ूद लोग पानी के संरक्षण के लिए जागरूक नहीं हुए हैं। बल्कि लापरवाह हैं इस दिशा में। वरना, पानी के संकट से कोई जूझता ही क्यों ?

मुझे लगता है कि अगर सही मायने में हमें राजेन्द्र सिंह जैसी शख्सियतों को सम्मान देना है तो उनके प्रयासों के साथ अपने आप को सम्बद्ध करना होगा। वे जो रास्ता दिखा रहे हैं, उन पर चलना होगा। वे जो विकल्प सुझा रहे हैं, उन्हें अपनाना होगा। और पानी जैसे संकट से निजात पाकर उन्हें नतीज़े लाकर दिखाना होगा। यही उन लोगों का सच्चा सम्मान होगा। हमारी ओर से उन्हें सही मायनों में आदरांजलि होगी। 

सोचिएगा इस पर। जय हिन्द!  
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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं।अच्छी कविताएँ भी लिखती है। वे अपनी रचनाएँ सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन या वॉट्स एप के जरिए भेजती हैं।)
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