‘भारतीय गुरुकुल व्यवस्था हम भूल गए, दुनिया के कई देशों ने अपना ली’

टीम डायरी, 27/6/2022

“पूर्व में स्थापित भारतीय मानकों के अनुसार भारत में आज भी कोई विश्वविद्यालय नहीं है। और अभी तक भारत में इस तरफ कोई सार्थक प्रयास भी नहीं हुआ। क्योंकि भारतीय शिक्षा अब तक ब्रिटिश दृष्टि की रही है। आज विश्व के बेहतरीन प्राथमिक शिक्षा देने वाले देशों ने भारतीय गुरुकुल-व्यवस्था आधुनिक संदर्भों में अपना ली। लेकिन दूसरी तरफ हमने ही गुरुकुल-व्यवस्था को भुला दिया। हालाँकि अभी कुछ समय पहले आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय दृष्टि से भारत के विश्वविद्यालयों के गठन की तरफ पहला कदम बढ़ाती दिख रही है।” 

लोक प्रशासन विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनोज दीक्षित ने ये विचार एक वेबिनार के दौरान रखे। यह वेबिनार ‘भारतीय ज्ञान परम्परा’ के क्षेत्र में अलहदा काम कर रहे नई दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन ‘भारत प्रज्ञा प्रतिष्‍ठान’ की विशेष ‘राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी’ श्रृंखला का हिस्सा था। अपने सरोकारों की वज़ह से #अपनीडिजिटलडायरी भी इसमें जनसंचार सहयोगी की भूमिका निभा रही है। श्रृंखला के तहत शनिवार, 25 जून को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीयता की पुनर्स्थापना के प्रयास’ विषय पर ‘लखनऊ विश्‍वविद्यालय’ के साथ मिलकर वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीयता की पुनर्स्थापना के प्रयास” विषय पर विमर्श किया गया। प्रोफेसर दीक्षित इसमें मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। 

इस दौरान प्रोफेसर दीक्षित ने कहा, “आज शिक्षण संस्थान मात्र डिग्रियाँ बाँटने का कार्य कर रहे हैं। ताकि नागरिक कैसे भी रोजगार पा सकें। लेकिन इससे पढ़ने वालों के मन में ‘ज्ञान का बोध’ जागृत ही नहीं हो पाता।” उन्होंने गीता के श्लोक (इति ते ज्ञानमाख्यात. 18/63) को उद्धृत किया करते हुए कहा कि संस्थान छात्र को इस योग्य बना दें कि छात्र में स्वयं का बोध हो सके। शिक्षा उसको इस योग्य बना सके कि वह ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने विवेक से स्वयं, समाज व देश के हित के लिए उसका प्रयोग करने में सक्षम हो सके। तब ही वह सार्थक है।

उन्होंने कहा कि किसी भी समाज की उन्नति उसके नागरिकों की शिक्षा में निहित होती है। नागरिक जितने सुशिक्षित होंगे समाज उतनी ही अधिक उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा। भारत सरकार ने इसी उद्देश्य से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की संकल्पना प्रस्तुत की है। यह नीति नागरिकों को सिर्फ़ साक्षर बनाने की बात नहीं करती अपितु इसका उद्देश्य देश के प्रत्येक नागरिक को उसके शैशव से ही समग्र शिक्षित करने का है। पूर्व की शिक्षा नीति बच्चे के छह वर्ष की आयु से शिक्षा पर विचार रखती रही हैं। लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान मानता है कि बच्चे के मस्तिष्क का विकास छह वर्ष की आयु तक 85% विकसित हो जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए नई शिक्षा नीति बच्चे की तीन वर्ष की आयु से उसके लिए वातावरण निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। जिससे कि वह एक नागरिक के रूप में उत्कृष्ट ज्ञान बोध से सम्पन्न हो सके। वह ज्ञान, कौशल, मानवीय मूल्यों से युक्त हो गुणवत्तापूर्ण जीवनयापन हेतु तैयार हो सके। साथ ही मात्र भारत के ही नहीं बल्कि वैश्विक कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध हो सके। भारत की गरिमा, संस्कृति, अखंडता और भारतीयता बोध को प्रसारित करने में सक्षम हो सके। 

इस वेबिनार के दौरान उत्तरप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के विश्‍वविद्यालयों के अनेक शिक्षाविदों ने भाग लिया। आयोजन में प्रो. डॉ बृहस्पति मिश्र, प्रो. प्रेमसुमन शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सत्यकेतु, डॉ.भाव प्रकाश, डॉ.वेद वर्धन, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वेदव्रत (संयोजक, भारत प्रज्ञा प्रतिष्ठान), और अध्यापन कार्य से जुड़े अनुज राज पाठक जैसे लोगों का विशेष योगदान रहा।

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