लक्ष्य पाने के लिए लगातार चलना ज़रूरी है, छलना नहीं

निकेश जैन, बेंगलुरू, कर्नाटक से, 13/9/2021

बात उन दिनों की है, जब मैं स्कूल में पढ़ता था। माथुर सर, हमारे गणित के शिक्षक हुआ करते थे। उन्होंने मुझे छठवीं से आठवीं तक गणित पढ़ाई। आज जो भी थोड़ा-बहुत मुझे इस विषय का ज्ञान है, निश्चित तौर पर माथुर सर की वज़ह से। लेकिन उन्होंने मुझे एक और चीज सिखाई, जो जीवन में हमेशा काम आई। वह है, ईमानदारी।

उन दिनों मैं पढ़ाई के साथ क्रिकेट भी अच्छा खेलता था। लेकिन मेरा चयन नहीं हो रहा था। जबकि मेरे साथ खेलने वालों का 15, 17 या 19 साल से कम उम्र वाली टीमों में लगातार चयन हो रहा था। मैं देख रहा था कि इन टीमों में चयन के लिए कई खिलाड़ी आयु सम्बन्धी अपने प्रमाण पत्रों में छेड़छाड़ किया करते हैं। जितनी उनकी उम्र होती है, उससे कम दस्तावेज़ में दर्ज़ कराते हैं और बिना किसी दिक्क़त उनका चयन भी हो जाता है।

यह बात मुझे परेशान कर रही थी। मैं भी टीम में चयनित होना चाहता था। इसलिए किसी तरह माँ को इसके लिए राज़ी कर लिया। हालाँकि वे मन से तैयार नहीं थीं। फिर भी मेरी ज़िद के आगे झुक गईं। हमारे स्कूल में माथुर सर ही प्रशासनिक काम देखा करते थे। लिहाज़ा मैं माँ के साथ उनके पास गया। उनसे आग्रह किया कि स्कूल के प्रमाणपत्र में मेरी उम्र दो साल कम कर दी जाए। उन्होंने उसकी वज़ह पूछी तो मैंने सब सच बता दिया। यह सुनते ही वे ख़फ़ा हो गए। 

उन्होंने अपने चिरपरिचित अन्दाज़ में मुझसे साफ-साफ कह दिया, “जैन, तुम पढ़ाई में अच्छे हो। इसलिए यह क्रिकेट-व्रिकेट छोड़ो। पढ़ाई पर ध्यान लगाओ।” इस पर मैंने उन्हें कहा, “सर, आप फ़िक़्र मत कीजिए। मैं दोनों चीजें सम्हाल लूँगा। आप बस, मेरी उम्र कम लिख दीजिए क्योंकि क्रिकेट में चयन के लिए प्रतिस्पर्धा बहुत है।” तब माथुर सर ने बड़ी मार्के की बात की, “अगर तुम्हें लगता है कि तुम अच्छा क्रिकेट खेलते हो तो अपने कौशल से चयनित होकर दिखाओ।”

माथुर सर की बात का माँ ने भी समर्थन किया और इस चुनौती को मैंने भी उसी वक़्त स्वीकार कर लिया। इसके बाद मैं लगातार कोशिश करता रहा। मेरा 15 साल से कम उम्र वाली टीम में चयन नहीं हुआ। इसके बाद 17 साल से कम उम्र वाली टीम में भी मुझे अतिरिक्त खिलाड़ी के तौर पर रखा गया। खेलने का मौका नहीं मिला। फिर 19 साल से कम उम्र वाली टीम में भी चयन नहीं हुआ। लेकिन मैंने कोशिश नहीं छोड़ी। आख़िरकार 19 साल छह महीने की उम्र में मेरा चयन हुआ।

इन्दौर सम्भाग की सीनियर टीम में मुझे नरेन्द्र हिरवानी और अमय खुरासिया (दोनों भारत की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेले हैं) जैसे खिलाड़ियों के साथ चुना गया। उसी साल रणजी टूर्नामेंट के लिए चुनी गई मध्य प्रदेश की टीम में भी मेरा चयन हुआ। वह भी बिना किसी दस्तावेज़ी हेर-फेर के। हालाँकि उससे आगे मैंने क्रिकेट को करियर नहीं बनाया। लेकिन उस दौर में मिली सीखों को कभी छोड़ा भी नहीं। पेशेवर जीवन में हमेशा अपने साथ रखा। उन पर अमल किया।

जीवन की आपा-धापी के बीच जब भी मुझे वक़्त मिलता, मैं अपने गृहनगर इन्दौर ज़रूर जाता हूँ। हर बार माथुर सर से भी मिलता रहा। वे हमेशा दस्तावेज़ में दर्ज़ उम्र से छेड़छाड़ की कोशिश वाली घटना याद दिलाकर मेरी टाँग खींचते थे। बीते साल कोरोना ने हमारे माथुर सर को हम से छीन लिया। लेकिन उनकी दी हुई सीख ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा, “लक्ष्य पाने के लिए लगातार चलना ज़रूरी है, छलना नहीं।” मैंने हमेशा जीवन में इसे गाँठ बाँधकर रखा है।
—-
(ऊपर भावानुवाद दिया गया है। मूल अंग्रेजी लेख नीचे दिया गया है….)   

My teacher saved me from disgrace. My math teacher Mr. Mathur sir taught me math from 6th till 8th standard and whatever little bit math I know today it’s because of that solid foundation.

He saved me from telling a lie which could have impacted my conscience. Here is the story:

Apart from teaching he used to take care of school admin work as well.

I was facing huge competition in cricket where most of the guys would reduce their age on the certificates and would appear for under 15/17/19 trials even though they were well above that age group.

One day I convinced my mother that I should also reduce my age and went to Mathur sir along with her.

Sir listened to my problems and reasons for which I wanted to reduce my age and said in his typical style: “Jain, you are good at studies. Leave this cricket and all and focus on studies”.

I said “sir I am good at cricket also and I can manage both, please reduce my age by 2 years”

Then he said “If you are good at cricket then crack the trials with your skills”.

Basically he just didn’t budge. My mother was also on his side and I gave up.

I didn’t play under 15. I was a stand boy in MP under 17 team (basically didn’t play) and didn’t play under 19 either.

But then I kept trying and kept doing what I was good at and when I was 19 years and 6 months I got selected for Indore division senior’s team along with likes of Hirwani and Amay Khurasia!

And same year went on to play Ranji Trophy for MP.

Beyond that point it just didn’t matter that I had not played those age category cricket tournaments.

If I had changed my age it would have been a lie and would have brought disgrace to my career. Thanks to Mathur sir he didn’t allow me to do that.

He cared so much about his pupils.

I kept meeting him once every few years after college but then there was a huge gap of 10 years.

Last I met was just before pandemic and he didn’t forget to pull my legs for that age reduction incident:)

He passed away last year.

He shaped up my life. Will always remember him. 
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(निकेश जैन मूल रूप से इन्दौर, मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। सूचना-तकनीक के क्षेत्र में लम्बे करियर से समयपूर्व विराम लेकर इन्होंने एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के नाम से स्टार्टअप कंपनी शुरू की है। यह शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार के ज़रिए नए आयाम गढ़ रही है।)

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