तरबूज पर त्रिकोण : किताबों से परे हटकर कुछ नए उत्तरों के लिए तत्पर रहना चाहिए!

ऋषु मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

बच्चे इन दिनों मिट्टी से विभिन्न प्रकार के आकार बना रहे हैं। इन आकारों में लम्बाई, चौड़ाई के साथ-साथ ऊँचाई भी होगी। इस प्रकार वो टू-डी और थ्री-डी आकृतियों की समझ बना पाएँगे। धीरे-धीरे वे समझेंगें कि क्षेत्रफल कहाँ निकालना है और आयतन कब निकालना है।

यह स्थायी और प्रभावी प्रक्रिया है l🌻

इसी क्रम में कुछ दिन पहले का उदाहरण है। एक बार कक्षा में कोन (शंकु) पढ़ाते वक़्त बच्चे उदाहरण बता रहे थे- पेंसिल की नोक, बर्थडे कैप, आदि। तभी आदित्य ने बताया, “मैम, बीड़ी का बंडल।” बच्चे उसके उत्तर पर डर रहे थे कि शायद मैम डाँट लगाएगी। लेकिन यह तो खुश होने वाली बात थी क्योंकि बच्चे की समझ बन चुकी थी। वह आस-पास की वस्तुओं को उदाहरण में शामिल कर रहा था। इसके लिए उसे शाबाशी मिली।

किताबों के उदाहरण से परे हटकर हमें कुछ नए उत्तर पाने के लिए तत्पर रहना चाहिए l🌻 

ऐसा ही लगभग एक वर्ष पूर्व का मामला है। मैं कक्षा-एक के बच्चों को गणित में आकार के विषय में बता रही थी। जब भी कोई आकार बताती, तो दैनिक जीवन के उदाहरणों की चर्चा करती। जब त्रिभुज की बारी आई तो बच्चे उदाहरण बताने लगे। जैसे- समोसा, ब्रेड पकौड़ा, पराठा आदि। ज़ाहिर है यह बताने वाले सब कक्षा के मुखर और मेधावी बच्चे थे। जबकि पीयूष थोड़ा जिद्दी स्वभाव का बच्चा था। उसका मन भी कक्षा में कम लगता था। लेकिन अचानक उसने जवाब दिया, “तरबूज।” यह सुनकर कक्षा के अन्य बच्चे खिलखिला कर हँसने लगे।

मुझे भी उसके उत्तर पर थोड़ी मायूसी हुई। मगर तभी ध्यान आया कि इसने कुछ तो सोचा होगा, इससे पूछना चाहिए। तो वजह पूछ ली। ज़वाब में उसने धीरे से कहा, “मैम, जब तरबूज खरीदते हैं तो फलवाला उस पर त्रिभुज का निशान बनाता है।” उसी दिन मैंने उस बच्चे का आकलन ‘मेधावी’ के रूप मे कर लिया। हालाँकि, आज भी वह उतना ही लापरवाह और शरारती बच्चा है। बस, उसे अतिरिक्त ध्यान की ज़रूरत है l

अब जब भी तरबूज खरीदती हूँ, पीयूष की याद आती है।🌻

—– 

(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों के विविध पहलू भी सामने आ सकें।)

——

ऋषु जी के पिछले लेख 

11 – …फिर आदेश आता है कि शैक्षणिक कार्यो को प्राथमिकता पर रखें, कैसे रखें?
10- आपका रंग जैसा भी हो, काम का रंग पक्का होना चाहिए
9- मदद का हाथ बढ़ाना ही होगा, जीवन की गाड़ी ऐसे ही चलती रहनी चाहिए 
8- यात्रा, मित्रता और ज्ञानवर्धन : कुछ मामलों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाकई अच्छा है
7- जब भी कोई अच्छा कार्य करोगे, 90% लोग तुम्हारे खिलाफ़ होंगे 
6- देशराज वर्मा जी से मिलिए, शायद ऐसे लोगों को ही ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है
5- हो सके तो इस साल सरकारी प्राथमिक स्कूल के बच्चों संग वेलेंटाइन-डे मना लें, अच्छा लगेगा
4- सबसे ज़्यादा परेशान भावनाएँ करतीं हैं, उनके साथ सहज रहो, खुश रहो
3- ऐसे बहुत से बच्चों की टीचर उन्हें ढूँढ रहीं होगीं 
2- अनुभवी व्यक्ति अपने आप में एक सम्पूर्ण पुस्तक होता है 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

11 hours ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

1 day ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

2 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

4 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

5 days ago

ओलिम्पिक बनाम पैरालिम्पिक : सर्वांग, विकलांग, दिव्यांग और रील, राजनीति का ‘खेल’!

शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More

5 days ago