ज़ीनत ज़ैदी, दिल्ली
स्कूल से घर लौटते वक्त अक्सर मानसरोवर पार्क के पास की झुग्गियों पर नज़र पड़ जाया करती है। इनके बारे में इतना कभी नहीं सोचा। लेकिन अभी कुछ दिन पहले वहाँ रहने वाले बच्चों पर नज़र पड़ी। मई महीने की तपती गरमी में कुछ बच्चे नंगे पैर सड़कों पर कूड़ा चुनते दिखे, तो कुछ भीख माँगते हुए। तब पहली बार मुझे एहसास हुआ ज़िन्दगी ऐसी भी हो सकती है। वह मासूम बच्चे जिन्हें अपने कल का कुछ नहीं पता लेकिन फिर भी वह जीवन काट रहे हैं। हाँ, काट ही रहे हैं क्योंकि जिस तरह वे जीते हैं, उसे जीना तो नहीं कह सकते न?
अलबत्ता वह सिर्फ़ एक जगह थी। मैंने पता किया तो जाना कि राजधानी दिल्ली में सिर्फ़ सीमापुरी नहीं, बल्कि संगम विहार, पहाड़गंज, कठपुतली, और कुसुमपुरा जैसे इलाक़ों में सैकड़ों झुग्गियाँ हैं। लगभग 750 से ज्यादा झुग्गियाँ बताई जाती हैं। इनकी तादाद लगातार बढ़ रही हैl क़रीब 3.5 लाख से ज्यादा परिवार और तक़रीबन 20 लाख लोग इनमें रहते हैं। ये वे हैं, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, ओडिशा जैसे तमाम राज्यों से लोग रोज़गार की तलाश में दिल्ली आए और यहाँ आकर अच्छे-ख़ासे इंसान से झुग्गी-झोपड़ी वाले कहलाने लगे।
इन रिहाइशों में कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनकी पीढ़ियाँ इसी हालात में ज़िन्दगी बसर करते हुए निकल गईं और आगे न जाने कितनी पीढ़ियाँ ऐसे ही हाल में गुजरेंगी, कुछ पता नहीं। इन लोगों के पास आज भी न शिक्षा है, न ढंग का रोज़गार, न स्थाई ठिकाना। कुछ है तो बस, सिर पर टपकती हुई छत और आस-पड़ोस के नाम पर गन्दगी, बजबजाती नालियाँ, जो बीमारियाँ फैलाकर न जाने कितने लोगों को कभी भी लील लेती हैं।
इन इलाक़ों की सुध कौन लेगा? यहाँ रहने वालों की बेहतरी किसकी ज़िम्मेदारी है? यहाँ सड़कें, स्कूल, स्वास्थ्य सेवा, सफ़ाई, हाथों के लिए रोज़गार का बन्दोबस्त कौन करेगा? अब तक ये लोग इन मूलभूत चीज़ों से वंचित क्यों हैं? इन सवालों के ज़वाब तलाशने होंगे। इस बारे में सोचना होगा। हमें सोचना होगा। अभी सोचना होगा। अपने-अपने स्तर पर जो कर सकते हैं, वह करना भी होगा। मैंने अपनी तरफ़ से यही किया है।
मुझे लगा कि मैं अपने लफ़्ज़ों के जरिए, अपने लेख के माध्यम से इन लोगों की ज़रूरतों का मसला उठा सकती हूँ, तो उठाया। अब उनकी बारी है, जो इससे आगे कुछ कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि रोटी, कपड़ा, मकान के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य भी हर एक का मूलभूत हक़ है। जो इस हक़ से महरूम हैं, उन्हें उनके हिस्से का अधिकार दिलाना ही होगा। इन लोगो को देश पर बोझ नहीं समझा सकता। उन्हें बोझ बने रहने के लिए छोड़ा नहीं जा सकता। बेहतर है कि इनकी स्थिति में सुधार लाया जाए। एक कदम इनके लिए भी बढ़ाया जाए।
जय हिन्द
——
(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं।अच्छी कविताएँ भी लिखती है। वे अपनी रचनाएँ सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन या वॉट्स एप के जरिए भेजती हैं।)
——-
ज़ीनत के पिछले 10 लेख
25 – ‘जल पुरुष’ राजेन्द्र सिंह जैसे लोगों ने राह दिखाई, फिर भी जल-संकट से क्यूँ जूझते हम?
24 – ‘प्लवक’ हमें साँसें देते हैं, उनकी साँसों को ख़तरे में डालकर हमने अपने गले में फ़न्दा डाला!
23 – साफ़-सफ़ाई सिर्फ सरकारों की ज़िम्मेदारी नहीं, देश के हर नागरिक की है
22 – कविता : ख़ुद के अंदर कहीं न कहीं, तुम अब भी मौजूद हो
21 – धूम्रपान निषेध दिवस : अपने लिए खुशी या अपनों के लिए आँसू, फ़ैसला हमारा!
20 – बच्चों से उम्मीदें लगाने में बुराई नहीं, मगर उन पर अपेक्षाएँ थोपना ग़लत है
19- जानवरों के भी हुक़ूक हैं, उनका ख़्याल रखिए
18 – अपने मुल्क के तौर-तरीक़ों और पहनावे से लगाव रखना भी देशभक्ति है
17- क्या रेस्टोरेंट्स और होटल भी अब ‘हनी ट्रैप’ के जरिए ग्राहक फँसाने लगे हैं?
16- ये ‘झल्लाहट और चिड़चिड़ाहट’ हमारे भीतर के रावण हैं, इन्हें मारिए!
देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More
तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More
छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More
शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More
भारत में लगभग 44% तक ऑपरेशन ग़ैरज़रूरी होते हैं। इनमें दिल के बीमारियों से लेकर… Read More
उसका शरीर अकड़ गया था। ऐसा लगता था जैसे उसने कोई पत्थर निगल लिया हो।… Read More