नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 4/5/2022
आज यूँ ही अपने छोटे शहर के कुछ वाक़ये याद हो आए। ये ऐसे वाक़ये हैं, तमाम लोगों के साथ गुजरे होंगे, जो ऐसे शहरों में रहे। पले, बढ़े। हमारे साथ भी गुजरे। जब हम स्कूल, कॉलेज में पढ़ते थे, ताे तमाम लोग हमारे लिए रोल-मॉडल सरीखे हुआ करते थे। इसलिए क्योंकि हमारी दुनिया बस, उतनी ही थी न। छोटी सी। दुनिया के दीगर हिस्सों में लोग कैसे हुआ करते हैं, क्या करते हैं, इस सबके बारे में हमें ज्यादा कुछ पता ही नहीं था। जो मालूम होता, वह आधा-अधूरा। ऐसा कि सिर्फ उतने से कोई किसी को अपना रोल-मॉडल तो नहीं ही बना सकता।
लिहाजा, हमारे रोल-मॉडल वही हुए जिनमें कोई लोकसेवा परीक्षा की तैयारी करता था। कोई डॉक्टर, इंजीनियर या ऐसा ही कुछ और बनने के लिए संघर्ष करता था। ये रोल मॉडल हमाारे लिए ‘लीडर’ जैसे भी होते थे। हमारे आगे चलकर हमें राह दिखा रहे थे। अपने लक्ष्य को पाने के लिए क्या करना चाहिए, क्या नहीं, सब हमें सिखा रहे थे। इसलिए सिर्फ हमारे ही नहीं, बल्कि हम सबके माता-पिता के मन में भी इनके लिए खास जगह होती थी। वे अक्सर हम से कहा करते थे, ‘देखो, अमुक-अमुक कितनी मेहनत किया करता है। कुछ सीखो उससे।’
बहरहाल, वक्त बीतता गया। हमारे रोल-मॉडल ‘लीडर्स’ में कुछ लोग अपने लक्ष्यों तक पहुँच पाए। मगर तमाम नहीं पहुँच सके। सीमित संसाधन, आधे-अधूरे साधन, कम-जानकारियों के हालात। ऐसी तमाम चुनौतियों के सामने वे खेत रहे। इसके बाद हताश, निराश से तमाम लोग अपने पुश्तैनी धंधों में लग गए। या किसी ऐसी नौकरी में जा लगे, जो उनके जीवन का लक्ष्य नहीं थी। बस, जीवनयापन की बाध्यता थी।
अलबत्ता, इस किस्म के लोगों में भी कुछ आलातरीन शख़्सियतें हुईं। वे ‘लीडर’ से ‘लैडर’ बन गईं। सीढ़ी। अपने अनुभवों को उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के साथ साझा करने और इनसे सबक लेते हुए उन्हें दिशा देने का सिलसिला शुरू कर दिया। जो लक्ष्य वे ख़ुद किन्हीं कारणों से हासिल नहीं कर पाए, उन्हीं लक्ष्यों को हासिल करने में वे दूसरों के मददग़ार बनने लगे। हम नासमझ थे। इसलिए अक्सर उन लोगों का मज़ाक उड़ा दिया करते थे। कहते, “देखो, ख़ुद तो डिप्टी कलेक्टर बन नहीं पाए। अब दूसरों को बनाने चले हैं। ये बनाएँगे भला?”
लेकिन हम ग़लत साबित हुए। उन ‘लीडर्स’ ने ‘लैडर्स’ बनकर कई लोगों को अपने कंधे पर बिठाकर उनके लक्ष्यों की ऊँचाईयों तक पहुँचाया। उनके मार्गदर्शक बने। उनकी कामयाबी का निमित्त बने। उनके इस समर्पण को हम तब नहीं समझ सके। लेकिन आज समझ आता है, जब हम ख़ुद जीवन के एक पड़ाव पर आकर ‘लीडर’ से ‘लैडर’ बनने के रास्ते पर आ चुके हैं। राह देखा करते हैं, उन लोगों की, जो आएँ और हमारी शक्ल में उनकी राह में पेश आई ‘सीढ़ी’ पर पैर रखकर आगे निकलें। अपने लक्ष्य की ऊँचाई तक पहुँच जाएँ। वे सन्तान हो सकती हैं। मित्र हो सकते हैं। साथ में काम करने वाले सहयोगी हो सकते हैं। कोई भी।
बस, उनकी कामयाबी में हम अपनी सफलता देखते हैं, देखेंगे। और इस सुकून के साथ आँखें बन्द करेंगे कि हम किसी की तरक्की, किसी की कामयाबी का ज़रिया बन सके। ईश्वर साथ दे!
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बेहतरीन.