पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 19/9/2021

अंग्रेजों को लगा था कि भरतीय समाज के शीर्ष वर्गों को अगर बदल दिया जाए तो वे समय के साथ बाकी जनता को भी बदलेंगे। शुरुआती वर्षों में इस आशावाद को सही ठहराने का आधार भी था। हजारों भारतीय नए विद्यालयों में दाखिला ले रहे थे। कोलकाता बुक सोसायटी ने दो साल में अंग्रेजी की 30,000 से ज़्यादा किताबें बेच ली थीं। सरकारी शिक्षण संस्थानों में धर्म, जाति के भेद के बिना सबके लिए अंग्रेजी शिक्षा उपलब्ध थी। हालाँकि, हिंदुओं में ब्राह्मण स्वाभाविक रूप से सबसे ज़्यादा इस सुविधा का लाभ उठा रहे थे। वहीं, मुसलिमों में उतने ही स्वाभाविक तौर पर नई शिक्षा के लिए ज़्यादा उत्साह नहीं था। बल्कि कलकत्ता के आठ हजार मुसलिमों ने तो उस वक्त तीखा विरोध जताया था, जब अंग्रेजी को आधिकारिक सरकारी भाषा बनाया गया। बावज़ूद इसके कि कलकत्ता मदरसे में 1826 में ही अंग्रेजी भाषा की कक्षा स्थापित हो चुकी थी। ये बात अलग है कि वहाँ से अगले 25 सालों तक भी सिर्फ दो विद्यार्थी ही पढ़ाई कर निकल सके थे। अलबत्ता, 1857 की विद्रोह के बाद मुसलिमों को भान हुआ कि उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा न लेकर कितने बड़े लाभ से अब तक ख़ुद को दूर रखा हुआ है। 

हालाँकि इसी वक़्त भारत के अन्य इलाकों में अंग्रेजी को पढ़ाने-लिखाने का माध्यम बनाने के प्रयासों का विरोध हो रहा था। जैसे बिहार में मुसलिम ज़मींदार ख़ासकर, विरोध कर रहे थे। नवंबर 1858 तक पटना स्थित विद्यालय निरीक्षक के दफ़्तर को तो ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था। बंबई प्रांत में अंग्रेजी शिक्षा की माँग थी, पर कम। इसीलिए वहाँ 1850 तक सरकारी या सरकार की मदद से चलने वाले सिर्फ़ 10 शिक्षण संस्थान ही थे। इनमें दो हजार के करीब विद्यार्थी अंग्रेजी शिक्षा ले रहे थे। मद्रास प्रांत तो और पिछड़ा था। वहाँ 1854 तक सरकारी या सरकार की मदद से चलने वाले तीन ही शिक्षण संस्थान थे। हालाँकि ईसाई मिशनरियॉं भारत में जो शिक्षण संस्थान चला रही थीं, उनमें क़रीब 30,000 विद्यार्थी अंग्रेजी शिक्षा ले रहे थे। ऐसा अनुमान था। उस समय ब्रिटिश संसद में एक रिपोर्ट पेश की गई थी। उसके मुताबिक 30 अप्रैल 1845 तक अंग्रेजों के कब्ज़े वाले भारत के सभी इलाकों में सरकारी ख़र्च पर 17,360 विद्यार्थी शिक्षा ले रहे थे। इनमें 13,699 हिंदू, 1,636 मुसलिम और 336 ईसाई थे। 

वहीं, बंगाल में सरकार की कोशिश थी कि या तो अंग्रेजी विद्यालय स्थापित करें या आँग्ल-जनभाषा विद्यालय, जहाँ अंग्रेजी और स्थानीय भाषा दोनों का उपयोग हो। ऐसे विद्यालय हर जिला मुख्यालय में खोलने की नीति थी। इनमें जो अच्छे थे, उन्हें महाविद्यालय का दर्ज़ा दिया जाता। महाविद्यालयों से कई विद्यालयों को संबद्ध किया जाता था। उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता में हिंदु कॉलेज था। इसका सरकार ने 1845 में नाम बदलकर प्रेसिडेंसी कॉलेज कर दिया था। परीक्षा के मापदंड भी ऊँचे थे। विद्यार्थियों से यह अपेक्षित था कि वे “बेकन, जॉन्सन, मिल्टन, शेक्सपियर जैसे रचनाकारों के काम से परिचित हों। उन्हें प्राचीन और आधुनिक इतिहास का ज्ञान हो। गणितीय विज्ञान की उच्च शाखाओं के बारे में जानकारी हो। थोड़ा-बहुत प्राकृतिक इतिहास के तत्वों को जानते हों। नैतिक दर्शन, राजनीतिक अर्थशास्त्र की समझ हो। वे किसी भी दिए गए विषय पर सरल, मुहावरेदार भाषा में लिखने में सक्षम हों।” इन मापदंडों का असर था कि 1845-49 के बीच सिर्फ़ 36 विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण हो सके। इसलिए मिशनरी और निजी शिक्षण संस्थान आरोप लगाने लगे कि सरकार उनके और सरकारी संस्थानों के बीच भेदभाव कर रही है। कारण कि नौकरियों आदि में सरकारी शिक्षण संस्थानों को स्वाभाविक रूप से तवज़्ज़ो मिल रही थी। 

वैसे, सरकार ने स्थानीय भाषाओं में पठन-पाठन को पूरी तरह अनदेखा नहीं किया था। बंगाल में उसने 1844 में स्थानीय भाषा के 101 विद्यालय खोले। लेकिन यह प्रयोग लगभग विफल रहा। कारण कि स्थानीय लोगों की अपेक्षा थी कि सरकार उनके लिए अंग्रेजी विद्यालय खोले। वहीं, बम्बई में शिक्षा मंडल 1840 में स्थापित हुआ। उसने पहले 2,000 से अधिक आबादी वाले गाँवों में स्थानीय भाषा के विद्यालय खोलने का लक्ष्य रखा। इसके तहत 1842 तक 120 विद्यालय खोले गए। इनमें लगभग 7,000 विद्यार्थी थे। जबकि मद्रास सरकार ने इस तरह की गतिविधियाँ मोटे तौर पर मिशनरियों पर छोड़ रखी थीं। उधर, उत्तर-पश्चिमी प्रांत में 1843 से 1853 तक जेम्स थॉम्सन उपराज्यपाल थे। उन्होंने स्थानीय भाषा के विद्यालयों की स्थापना शुरू में ही कर दी थी। हालाँकि उनका प्रयोग छोटे स्तर का था। इसी कारण उस प्रांत के ग्रामीण विद्यालयों से 1853 तक बमुश्किल 100 लोग ही शिक्षा हासिल कर सके थे। 

भारत की शिक्षा-व्यवस्था के संबंध में 1854 में सर चार्ल्स वुड्स ने एक रिपोर्ट लंदन भेजी। इसमें उन्होंने सहायता-अनुदान प्रणाली का प्रस्ताव दिया था। ताकि निजी संस्थान उच्च शिक्षा पर होने वाले ख़र्च का बोझ ख़ुद उठाएँ और सरकारी अनुदान ग्रामीण आबादी की शिक्षा के लिए जारी किया जा सके। हालाँकि सरकार का मुख्य लक्ष्य अब भी अंग्रेजी शिक्षा का विस्तार ही था। इसके लिए कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव भी उन्होंने किया। जिससे कि वहाँ से उच्च मानदंडों वाले सरकारी कर्मचारी तैयार किए जा सकें। अंग्रेजों के लिए व्यापार-व्यवसाय की संभावनाएँ बढ़ाई जा सकें। उन्होंने लिखा था, “उन्नत किस्म का यूरोपीय ज्ञान भारतीयों को सिखाएगा कि पूँजी और श्रम को ठीक से इस्तेमाल करने पर कैसे शानदार नतीज़े मिलते हैं। यह ज्ञान उन्हें दावत देगा कि वे हमें अपने देश के वृहद् संसाधनों के विकास के लिए और उत्साहित करें।… इससे हमारे हित भी सुरक्षित होंगे। हमें बड़ी मात्रा में अपने उत्पादों की आपूर्ति का अवसर मिलेगा, जो हमारे उत्पाद निर्माताओं के लिए भी ज़रूरी है।”

हालाँकि अंग्रेजों के निहित उद्देश्यों के साथ-साथ अंग्रेजी शिक्षा का दूसरा पहलू यह भी था कि इससे भारतीय समुदाय में धीरे-धीरे राष्ट्रीयता की भावना पैदा हो रही थी। इसीलिए इस बात की अपनी अलग अहमियत है कि आधुनिक भारत के शुरुआती तीन विश्वविद्यालयों की स्थापना उस समय हुई, जब बड़े पैमाने पर विद्रोह का बिगुल फूँका जा रहा था। यानी 1857 में। 

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे? 

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