टीम डायरी
बीते दिनों एक बच्ची ने अपनी माँ से पूछा था, “माँ गधा कितना सीधा-सादा सा जानवर लगता है न? मेहनत भी वह सबसे ज़्यादा करता है। फिर भी लोग उसे इज़्जत क्यों नहीं देते? और किसी को ‘गधा’ बोल देना तो बहुत ही ख़राब माना जाता है। ऐसा क्यों?” माँ ने अपनी तरह से बच्ची की जिज्ञासा को शान्त किया। कोई कहानी सुनाई, जिसे सुनते-सुनते बच्ची सो गई। फिर उस माँ ने अपने इस अनुभव को सोशल मीडिया के एक मंच पर साझा भी किया। उस कहानी का सार-संक्षेप यह था कि ईश्वर की बनाई कोई भी कृति हो, चाहे गधा या कुत्ता, उसको स्नेह देना चाहिए। उसका सम्मान करना चाहिए। यही उसने कहानी के जरिए अपनी बच्ची को समझाया।
उसकी कहानी को बहुत लोगों ने पढ़ा। अच्छी सोच के लिए बच्ची की माँ की तारीफ़ें भी कीं। कुछ लोगों ने यहाँ तक कह डाला कि अगर उन्हें “जीवन में गधे या घोड़े में से एक बनने का मौक़ा मिले तो वे गधा बनना चाहेंगे।” ऐसी टिप्पणी करने वालों के अपने तर्क थे। उन्हें काटने या ग़लत ठहराने का यहाँ मसला नहीं है। मसला ये है कि क्या बच्ची की माँ उसकी जिज्ञासा शान्त कर सकी कि गधे को गधा क्यों कहते हैं? तो ज़वाब है, नहीं। कम से कम उसने जो कहानी बताई, उससे तो यही पता चला। हालाँकि इंटरनेट पर थोड़ा खँगालने पर ही ज़वाब मिल जाता है कि गधे को गधा कहते क्यों हैं? और गधा कहना, मानना या होना भी, अपमानजनक क्यों है?
दरअस्ल, दुनिया में तमाम विषयों की तरह गधों को लेकर भी कई शोध-अध्ययन हुए हैं। उनके निष्कर्षों के मुताबिक गधों के स्वभाव में तमाम ख़ूबियों के बावज़ूद दो बातें ऐसी हैं, जो उनकी हर ख़ूबी को दबा देती हैं। पहली बात- वे अपनी सुरक्षा को लेकर हद से ज़्यादा सचेत होते हैं। यानी दूसरे शब्दों में कहें तो अपना ‘कम्फर्ट ज़ोन’ छोड़कर कोई ज़ोख़िम लेने से हमेशा बचते हैं। अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरे को बहुत जल्द सूँघ लेते हैं। और फिर उन्हें तब तक टस से मस नहीं किया जा सकता, जब तक वे आश्वस्त न हो जाएँ कि ख़तरा टल गया है। मतलब- ऐसी स्थितियों में वे अड़ियल भी हो जाते हैं। अड़ते हैं, इसलिए बढ़ते नहीं। यह दूसरी दिक़्क़त है।
लिहाज़ा, अब इस विषय में भारतीय ज्ञान परम्परा में कही गई एक बात पर भी ग़ौर करते हैं। इस सम्बन्ध में श्लोक है….
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे।
हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते।।
अर्थात् : मूर्ख के पाँच लक्षण होते हैं- गर्व करना, मुँह से बुरे वचन निकालना, हठी होना, दुख या विषाद में रहना, और दूसरों की बात न मानना।
मतलब कि अगर कोई अपने ही सोचे-समझे किसी कारण से हठ करता है। अपनी बात पर अड़ा रहता है। बार-बार समझाने पर भी किसी की बात नहीं मानता, तो वह मूर्ख है। दूसरे शब्दों में कहें तो गधा है। कहते हैं न “रुका इंसान और ठहरा पानी सड़ जाता है।” और ज्ञानवान् तथा ज्ञान की तो पहली शर्त ही है ‘प्रवाह’। इसलिए अगर हठी, अड़ियल और अपनी जगह पर ठहरे जीव को ‘गधा’ कह भी दिया तो अवमानना कैसी? और ऐसा कोई जीव सम्मान का पात्र भला हो भी तो कैसे? सोचकर देखिए।
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