क़रीब 250-300 करोड़ की कम्पनी के पास ‘अपने राइटर्स’ को देने के लिए 28-40 पैसे, बस!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

“अरे सर, राइटर्स तो हमारे नगीने हैं, नगीने। उनमें से कुछेक की लिखी हुई ऑडियो-सीरीज़ तो करोड़ों की तादाद में लोग सुन रहे हैं”, मोबाइल पर दूसरी तरफ़ से एक लड़की ज़ोर देकर बता रही थी।  

“अच्छा, तो फिर आपके लिए वे बेशक़ीमती ही होंगे। वैसे, कितनी वैल्यू है इन नगीने राइटर्स की आपके यहाँ?”, मैंने जिज्ञासावश पूछा। क्योंकि लिखने वालों को कोई ‘नगीना’ कह ही दे तो बड़ी बात है।

“सर, बहुत वैल्यू है हमारे यहाँ उनकी। अभी हमारी एक ऑडियो-सीरीज़, जो सुपर-डुपर हिट रही है, उसके राइटर को तो हमारी कम्पनी ने 12 लाख रुपए की स्कॉडा कार गिफ्ट में दी है”, उसने बताया। 

“हाँ, स्कॉडा कार तो ठीक है। लेकिन उससे घर-खर्च तो नहीं चलता न। आजीविका के लिए तो नियमित पारिश्रमिक ही मायने रखता है। वो कितना देते हैं आप अपने राइटर्स को?”, मैंने अगला सवाल किया। 

 “वो भी अच्छा है सर। हम अपने राइटर्स को पर-वर्ड्स (प्रति शब्द) के हिसाब से भुगतान करते हैं। वह अलग-अलग होता है। जिसका लिखा जितना इम्प्रेसिव, उसे उतना भुगतान,” उसने बताया। 

“लेकिन कोई तो रेंज होगी? प्रति शब्द के हिसाब से भी भुगतान है तो कितने से कितने तक?”, मैंने अपना सवाल दोहराया क्योंकि अब तक साफ़ ज़वाब मिला नहीं था मुझे। 

“सर, 28 पैसे प्रति शब्द से हमारा भुगतान शुरू हो जाता है। फिर आगे कितना होगा, कहाँ तक जाएगा, यह डिपेन्ड करता है”, उसने बिना झिझक बता दिया। 

“ये भुगतान कुछ चवन्नी-छाप टाइप का साउंड नहीं करता?”, मैंने उस पर उसी की भाषा में तंज किया। लेकिन वह शायद समझ नहीं सकी। या समझी तो उसने अनसुना कर दिया। 

“सर, क्या करें। हमारी कम्पनी की पॉलिसी है। मैं उसमें कुछ कर नहीं सकती न”, उसने दलील दी, “लेकिन हम आपके साथ नेगोशिएट करने के लिए तैयार हैं। बताइए न, आपकी क्या उम्मीद है”, उसने पूछा। 

“अब आपकी कम्पनी की पॉलिसी जब अपने राइटर्स का मूल्य 28 पैसा लगाने की है तो मैं क्या ही उम्मीद करूँ? बस, इतना ही कह सकता हूँ कि मैं इतने कम भुगतान में काम नहीं कर सकता”, मैंने कहा। 

“सर, मैंने कहा न। आप बताइए। हम कंसीडर करेंगे, उस पर”, उसने कहा। 

“मैं अमूमन एक रुपए प्रति शब्द से नीचे काम नहीं करता। और ऐसी सीरीज़ वग़ैरा के लिए तो 5,000 रुपए प्रति एपिसोड तक मिल जाते हैं मुझे। इतना हो पाएगा?”, मैंने बताया और पूछा। 

“सर, ये तो बहुत ज़्यादा है। कुछ कम हो सके तो देखिए। हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ जुड़ें। और हमारे पास काम भी बहुत है सर। बल्क में। लगातार। साल, दो साल, तीन साल तक भी आपका हाथ नहीं रुकने देंगे। इतना काम है। उसे ध्यान में रखकर कुछ बताइए न”, उसने अपनी दलील के साथ आग्रह किया। 

“देखिए, किताबों के प्रकाशक भी मुझे 50 पैसे प्रति शब्द तक भुगतान किया करते हैं। जबकि उनका तर्क होता है कि क़िताबें, ख़ासकर हिन्दी की, ज़्यादा बिकती नहीं। और यह तर्क मुझे ठीक भी लगता है। तो साल में दो-तीन क़िताबों का काम मैं इतने भुगतान पर कर देता हूँ। क्योंकि क़िताबों से मेरा अपना लगाव है। और उससे एक साहित्यिक पहचान भी मिलती है। बस, इसीलिए।”, मैंने अपना पक्ष रखा। 

“सर, ये काम भी तो क़िताबों का ही है। और इसमें भी हम आपको ही क्रेडिट देंगै। इसलिए अगर आप थोड़ा सोचें, तो हम साथ आ सकते हैं”, उसने इसरार किया। 

“अच्छा, आप ये बताइए कि अगर आपको दर बढ़ानी हो तो कितनी बढ़ा सकेंगी”, मैंने सवाल किया। 

“सर, मैं आपके लिए 35 से 40 पैसे प्रति शब्द तक कर सकती हूँ। यह मेरी अपनी लिमिट में है। इससे ज़्यादा के लिए मुझे अपने ऊपर वालों से परमिशन लेनी पड़ेगी। उसमें बहुत चकल्लस हो जाती है। इसलिए अगर हो सके, तो आप इतने में देख लीजिए न। और फिर बाद में देख लेंगे हम। क्या हो सकता है”, उसने अपनी ‘परिधि’ (सीमा) को आख़िरी बिन्दु तक खींच दिया था शायद। 

हालाँकि मुझे ऐसा लगा नहीं क्योंकि उस लड़की ने मुझे कम्पनी की कन्टेंट हैड के तौर पर परिचय दिया था। और वह मुझसे बात करने वाली कोई पहली लड़की भी नहीं थी। इससे पहले 10 दिनों से इस कम्पनी की ओर से क़रीब आठ-10 बार (ईमेल और फोन मिलाकर) अलग-अलग नामों से मुझसे सम्पर्क किया जा रहा था। इसलिए मैंने विचार करने के लिए उससे दो-तीन दिन का समय माँगा और बातचीत ख़त्म कर दी। 

यहाँ मैं बता दूँ कि मेरी यह बातचीत किसी आम कम्पनी की प्रतिनिधि या प्रतिनिधियों से नहीं हुई। भारत में एप्लीकेशन (एप) पर ऑडियो-सीरीज़ चलाने वाली शीर्ष कम्पनी की प्रतिनिधियों से अभी इसी महीने हुई है। इस कम्पनी और इसकी प्रतिनिधियों का मैं नाम नहीं लिख रहा हूँ क्योंकि किसी पर अँगुली उठाना मेरा मक़सद नहीं। मैं तो बस, वस्तुस्थिति सामने रखना चाहता हूँ। इस कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने अभी अगस्त में ही बताया था कि उनके यहाँ प्रसारित होने वाला एक शो 82 करोड़ रुपए (जिसके राइटर को स्कॉडा देने का दावा किया गया) कमा चुका है। जबकि 10 अन्य शो (सीरीज़ भी कहा जाता है) आठ करोड़ रुपए से ज़्यादा कमा रहे हैं। 

यही नहीं, कम्पनी का वैल्युएशन 28 दिसम्बर 2021 तक 225 करोड़ रुपए (27.1 मिलियन यूएस डॉलर) से ज़्यादा का बताया गया है। कम्पनी ने 31 मार्च 2022 तक हर साल 19.64 करोड़ रुपए (2.36 मिलियन यूएस डॉलर) का सालाना राजस्व हासिल करने का भी दावा किया है। और आठ नवम्बर 2022 को आई ख़बर के मुताबिक साल 2018 में स्थापित यह कम्पनी अब तक 700 करोड़ रुपए (93.5 मिलियन यूएस डॉलर) का निवेश जुटा चुकी है।

लेकिन अफ़सोस ही है कि लेखकों के लिखे हुए से करोड़ों का राजस्व कमाने वाली इतनी बड़ी कम्पनी के पास ‘अपने राइटर्स’ को देने के लिए 28 से 40 पैसे ही हैं, बस! 

ख़ैर, आगे की बात….

मैंने दो-तीन दिनों तक जब ज़वाब नहीं दिया तो मंगलवार, 17 अक्टूबर को फिर एक अन्य लड़की ने फोन किया। वह भी ऊँचा पद सँभालने वाली ही थी।

“सर, क्या हम साथ आ रहे हैं? मेरा ख़्याल है, आपने अब तक मन बना लिया होगा? तो क्या मैं आपको पेपर्स मेल करूँ, साइन करने के लिए?”, उसने पूछा। मैं चाहकर भी ‘हाँ ’नहीं कह पाया।

‘चाहकर’ का मतलब ये कि अच्छे रचनात्मक काम को करने की चाहत हमेशा से ही मन में रही है। इसीलिए इस तरह के कामों में किसी न किसी तौर पर लगातार लगा भी रहता हूँ। इसे भी करने की मंशा हो गई थी। मगर ‘हाँ’ इसलिए नहीं कह पाया क्योंकि ‘चवन्नी-अठन्नी’ के लिए मैं उन लोगों के कामों के साथ क़ोताही करने की सोच भी नहीं सका, जो मेरी रचनाधर्मिता का, लेखन का, सही मूल्य आँक रहे हैं। वह भी बिना कहे।     

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