एक जेंटलमैन का पत्र, क्रिकेट के नाम

N इंडियन, दिल्ली से, 16/01/2022

Focus on your team as well and not just the opposition, always trying to catch people.

मैंने यह सुना तो इसके बैकग्राउंड में एक और आवाज़ सुनाई दी

Whole country playing against 11 boys… 

केपटाउन टेस्ट का लाइव प्रसारण देखते हुए जब मैंने यह दूसरा बयान सुना तो आवाज़ पहचान गया। और मुस्कुराकर रह गया। लेकिन फिर रीप्ले में देखा कि विराट कोहली स्टंप की ओर गए और झुककर पूरे होशो-हवास में कहा,

अपनी टीम पर फोकस करो, केवल प्रतिद्वंदी पर नहीं जो लोगों की टांग खींचने में लगे रहते हैं।

विराट कोहली। दो दिन पहले तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला खिलाड़ी। अपने वरिष्ठ  खिलाड़ियों से बिल्कुल अलग। शानदार बल्लेबाज, रन मशीन, किसी से नहीं दबने वाला और मन की करने वाला। लेकिन शायद उन्हें ख़ुद पर विश्वास से ज़्यादा घमंड था। कहीं ऐसा तो नहीं था कि वह इस भावना से भर गए थे कि “मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। 22 गज की पट्टी पर मुझे कोई मात नहीं दे सकता।” लेकिन, वक़्त किसी के वश में नहीं रहता। अपनी गति से चलता है। 

पिछले दो साल से विराट कोहली का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। उन्हें शतक लगाए न जाने कितने महीने हो गए। लेकिन, कोहली अपनी ख़ामियों को दुरुस्त करने के बजाय गाल बजाते रहे और इसका घिनौना स्वरूप केपटाउन में देखने को मिला। अफ्रीका की धरती मदीबा मंडेला की धरती है। हम दक्षिण अफ्रीका के साथ फ्रीडम सीरीज़ खेलते हैं। उनका साथ, हमारा भाईचारा है। क्रिकेटर अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। लेकिन क्या विराट कोहली का व्यवहार एक जेंटलमैन खिलाड़ी का था? क्या नेतृत्व ऐसा होता है? दुर्भाग्य की बात है कि यह सब राहुल द्रविड़ के सामने हुआ। 

मन खिन्न है। विराट के व्यवहार को लेकर पूर्व खिलाड़ियों तक ने निशाना साधा है। गिलक्रिस्ट और शेन वॉर्न ने इसकी कड़ी भर्त्सना की है। दक्षिण अफ्रीका की टीम बदलाव के दौर से गुज़र रही है। खिलाड़ी नए हैं। कप्तान को भी ज़्यादा समय नहीं हुआ है। लेकिन, उन्होंने एक मार्के की बात कही कि डीआरएस को लेकर हुए विवाद के बाद भारतीय खिलाड़ियों के ध्यान और धैर्य की जगह ग़ुस्से ने ले ली।

अगर आँकड़े देखेंगे तो पाएँगे कि विवाद के बाद भारतीय गेंदबाज़ों ने 5 ओवर में 35 रन लुटाए। जब आप टेस्ट में 200 रन को डिफेंड कर रहे होते हैं, तो 5 ओवर में 35 रन नहीं दे सकते। उस समय विराट कोहली कहाँ थे, जब रणनीति ठीक करनी थी? जब रन रोकने थे और प्रतिद्वंदी बल्लेबाज़ों पर दबाव बनाना था, आप नदारद थे विराट। 

आपके व्यवहार की वजह से संभवतः हम एक मैच ही नहीं, सीरीज़ गंवा बैठे। सालों बाद हम अफ्रीका में सीरीज़ जीत सकते थे। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका। कौन है ज़िम्मेदार? मज़ेदार बात यह है कि हम भारतीयों की समझ बहुत हल्की है। “पूरा देश 11 खिलाड़ियों के ख़िलाफ़ रहा है।” यह बयान ऋषभ पंत का था। पंत जूनियर हैं। उनका बल्ला कम, ज़ुबान ज़्यादा चलती है। ये क्रिकेटर किस संस्कृति से निकले हैं? क्या यही भारतीयता है? नहीं, हम इसकी वकालत नहीं करते हैं और न ही हम अपने कप्तान से इसकी उम्मीद करेंगे। एक कप्तान के तौर पर विराट का व्यवहार दक्षिण अफ्रीका में बहुत ख़राब था। फिर भी हम भारतीय उस पर बात नहीं कर रहे हैं।  

अच्छा हुआ कि आपने कप्तान के पद से इस्तीफ़ा दे दिया विराट। ऐसे व्यक्ति को भारत की अगुआई करने का हक़ नहीं होना चाहिए। आप कहेंगे मैं कठोर हो रहा हूँ। लेकिन, समय आ चुका था कि आपसे कड़े सवाल पूछे जाएँ। महान बल्लेबाज़ सुनील गावस्कर का बयान याद रखिए कि विराट कोहली ने संभवतः इस वजह से कप्तानी छोड़ दी कि उन्हें कप्तानी से हटाए जाने का डर था।” और जिस तरह से बीसीसीआई ने उनसे वनडे की कप्तानी छीनी, उसके बाद इसकी प्रत्याशा बढ़ गई थी। गावस्कर के बयान का एक तरह से संजय मांजरेकर ने भी समर्थन किया है। ऐसा नहीं है कि मेरा विराट के साथ पट्टेदारी का झगड़ा है, लेकिन विराट ने मेरा भरोसा बहुत जल्दी खो दिया था। जब उनका करियर शुरू हुआ था, तब मैं संशय में रहता था कि ये बंदा 50 ओवर बैटिंग कर पाएगा कि नहीं, संकट के समय जिता सकता है कि नहीं। लेकिन उन्होंने मेरा ही नहीं, दुनिया भर का विश्वास जीता। 

मुझे याद है, उस समय मैं दिल्ली में था और 2011 वर्ल्ड कप का फ़ाइनल मुक़ाबला चल रहा था। रात के 7 बजे के बाद का वक़्त था। टीम इंडिया लक्ष्य का पीछा कर रही थी। सचिन और सहवाग 31 रन के स्कोर तक पवेलियन लौट चुके थे। फिर विराट बल्लेबाज़ी करने आए। गंभीर के साथ मिलकर एक साझेदारी बनाई और भारत को संभाला। उस दिन उन्होंने मेरा दिल जीत लिया था। नए बल्लेबाज़ के तौर पर उन्होंने संकट के समय में ज़िम्मेदारी उठाई और 35 रन बनाए थे। इसके बाद विराट ने अपने प्रदर्शन से दुनिया जीत ली। हर कोई उनका मुरीद हो गया। लेकिन जैसे-जैसे वे बुलंदियों की ओर बढ़ते गए उनके व्यक्तित्व का दूसरा पहलू सामने आने लगा। वे झगड़ालू (दादा ने इस मुहर लगाई थी, मुझे तो सिर्फ़ महसूस होता था कि वे ऐसे हैं) और घमंडी कप्तान के तौर पर उभरे, जो प्रतिद्वंदियों को गाली देता है और उन पर धौंस जमाता है। 

ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट के गलियारे में तो यह खुलेआम कहा जाता है कि कंगारू क्रिकेटर सिर्फ़ इसलिए विराट की गाली सुनते हैं, क्योंकि आईपीएल की चिंता होती है। वरना सोचिए क्या ही होता है। ऐसी बातें पहले तो नहीं थीं। आईपीएल के 13 संस्करण हो चुके हैं। पहले भी क्या ऐसा कहा जाता था? नहीं, दरअसल भारतीय खिलाड़ियों का व्यवहार बहुत बदला है। और हम उन्हें दबंग कहकर प्रोत्साहित करते हैं। समय आ गया है कि भारतीय खिलाड़ियों के ख़राब व्यवहार पर खुलकर बात हो और इस जेंटलमेन गेम के शील को बचाया जाए, ताकि उसका रोमांच दो पड़ोसियों का झगड़ा ना बन जाए। 

(N इंडियन डायरी के नियमित पाठक रहे हैं। लम्बे समय से डायरी पढ़ते हुए उन्होंने भी तय किया है कि वह भी अब डायरी लिखेंगे। N इंडियन उनका ‘पेन नेम’ है, जिस नाम से वह लिखा करेंगे। उनका आग्रह है, “मैं नहीं चाहता कि लोग मेरी दुनियावी पहचान से रू-ब-रू हों। बेहतर है कि कलम ही मेरी पहचान बने”। उनके आग्रह का सम्मान करते हुए उनकी डायरी का यह पन्‍ना उनके पेन नेम से ही साझा किया जा रहा है।)

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