समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल, मध्य प्रदेश
जब मैंने तुमसे सिर्फ तुम्हारा समर्पण माँगा,
सच कहूं तो केवल अपना सुख ही चाहा था।
जो मैं सच्चा रिझवार हो जाता प्रियवर,
अगन में तुम्हारी जलकर फ़ना न हो जाता।।
तेरे सिवा मेरे लिए किसी और का होना,
बिन तेरे भी रात-दिन, मौसमों का बदलना।
सब करते इशारा कि क़ाबिल नहीं मैं तुम्हारे,
पर कहो, मैंने कब ऐसा दावा किया था।।
अपनी बेग़ैरती का खुद शिकार हूँ मैं।
कैसे करूँ शिक़वा या गुज़ारिश तुमसे।।
——–
(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)
आज रविवार, 18 मई के एक प्रमुख अख़बार में ‘रोचक-सोचक’ सा समाचार प्रकाशित हुआ। इसमें… Read More
मेरे प्यारे बाशिन्दे, मैं तुम्हें यह पत्र लिखते हुए थोड़ा सा भी खुश नहीं हो… Read More
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलाए गए भारत के ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ का नाटकीय ढंग से पटाक्षेप हो… Read More
अगर आप ईमानदार हैं, तो आप कुछ बेच नहीं सकते। क़रीब 20 साल पहले जब मैं… Read More
कल रात मोबाइल स्क्रॉल करते हुए मुझे Garden Spells का एक वाक्यांश मिला, you are… Read More
यह 1970 के दशक की बात है। इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई… Read More