बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 15/8/2021

भारत पर आक्रमण करने वाले मुसलिम आक्रांताओं में मुग़ल आख़िरी थे। यहाँ मुग़लिया सल्तनत की स्थापना बाबर ने की, 1526 में। मुग़लों ने पहले उत्तर भारत पर आधिपत्य जमाया। फिर धीरे-धीरे दक्खन के कुछ हिस्सों को छोड़कर पूरे हिंदुस्तान पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन मुग़ल उपनिवेशवादी नहीं थे। वे यहाँ टिकने आए थे। लिहाज़ा, उन्होंने भारत के धर्मांतरित मुसलिमों के साथ मिलकर शासक, प्रशासक, कारोबारी, जैसी हर भूमिका अख़्तियार की। फिर भी उनकी सल्तनत काफ़ी हद तक हिंदु दरबारियों के कार्य और क्षमता पर निर्भर थी। अधिकांश व्यापार और औद्योगिक उपक्रम भी हिंदुओं की मदद से चलते थे। इस तरह हिंदुस्तान में मुग़ल सल्तनत शासक (मुसलिम) और शासित (हिंदु) के बीच अलिखित समझौते से चल रही थी। सल्तनत के कुछ हिस्सों में यह समझौता स्पष्ट था, अलबत्ता। यह वे इलाके थे, जहाँ हिंदु शासकों को उनके अपने राज्य में शासन का अधिकार तो था, मगर सिर्फ़ मुग़ल सल्तनत के सूबेदार-जागीरदार की तरह। उनकी आज़ादी सीमित थी। वे शाही फौज को सैन्य मदद देने के लिए बाध्य थे। प्रजा से करों का संग्रह भी वे सल्तनत के लिए करते थे। 

उस दौर का एक बड़ा तथ्य यह भी है कि मुसलिम सत्ता के केंद्रीय स्थलों में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ। कई हिंदुओं ने जीवन और ज़मीन-जायदाद छिन जाने के डर से मुसलिम धर्म अपनाया। जबकि कई इसलिए मुसलिम बने कि ऐसा करके वे भेदभावपूर्ण कर-व्यवस्था से मुक्ति पा जाएँगे। वैसे, धर्मांतरित मुसलिमों की बड़ी आबादी वह रही, जो हिंदु समुदाय में सामाजिक भेदभाव से त्रस्त थी। ये लोग इस उम्मीद में मुसलिम बने कि विजेताओं (मुग़लों) का धर्म अपनाकर वे उनकी धार्मिक पहचान के लाभ में भागीदार हो सकेंगे।

इसके बावज़ूद मुसलिमों द्वारा जीते गए दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में धर्मांतरण की दर कम रही। हिंदु-मुसलमानों के बीच की बड़ी खाई इसका कारण थी। दरअसल, दोनों धर्मों में मौलिक अंतर है। मसलन, इसलाम में मूर्ति पूजा नहीं की जाती। इसीलिए मसज़िदों में कोई दैव-प्रतिमा नहीं होती। जबकि हिंदुओं के देवी-देवताओं को उनकी मूर्तियों से ही पहचाना जाता है। तिस पर भी ऐसे अंतर शायद ज़्यादा मायने न रखते, अगर हिंदु धर्म की अतिविशिष्टता उसमें न होती। यह थी, सामाजिक संरचना यानि वर्ण-व्यवस्था। यह संरचना हिंदु समाज की आत्मा थी। इसके आदेश, अध्यादेश समाज के लिए बाध्यकारी थे। सामुदायिक हिंदु जीवन के पूरे ढाँचे को ईश्वर द्वारा अनुमोदित माना जाता था। फिर चाहे वह संयुक्त परिवार की व्यवस्था हो, ग्रामीण सामुदायिक प्रबंधन या जाति-व्यवस्था। इसीलिए सामाजिक गतिविधियाँ मोटे तौर पर राजनीतिक मामलों से अप्रभावित रहती थीं। यही कारण रहा कि हिंदुस्तान का इतिहास भले आक्रमणकारी गतिविधियों, राजवंशों के उत्थान-पतन और राज्यों-रियासतों की अस्थिरता से भरा हो। लेकिन सामाजिक व्यवस्था पर शासन और शासकों के बदले जाने का ज़्यादा असर नहीं हुआ।

बल्कि राजनीतिक अस्थिरता तो एक मायने में इस सामाजिक व्यवस्था को मज़बूती देने में मददग़ार रही। हिंदु जीवनशैली की यांत्रिकी और राजनीति के बीच भेद बहुत स्पष्ट और सटीक था। इसीलिए उस समय व्यक्ति अपने समूह, परिवार, ग्राम और जाति के लिए ज़्यादा निष्ठावान होता था। राज्य के साथ उसका संबंध गौण था। यहाँ तक कि राज्य की रक्षा भी विशिष्ट पेशेवर जाति (क्षत्रिय) की चिंता का विषय था। समाज में कृषकों का बहुमत था लेकिन वे युद्धों और राजनीतिक घटनाक्रमों से दूर रहते थे। उनकी चिंता ये नहीं थी कि उन पर कौन शासन कर रहा है। बल्कि ये थी कि शासन कैसे किया जा रहा है। 

दूसरी तरफ़ मुग़ल इस सामाजिक व्यवस्था से अनभिज्ञ थे। वे अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शासन करने वाले शासक थे। इसीलिए अलग-थलग रहे। हालाँकि उनकी अपनी धार्मिक संस्थाओं पर हिंदु धर्म का कुछ असर पड़ा। क्योंकि अल्पसंख्यक कभी बहुसंख्य समुदाय के गुण-दोषों से अछूता नहीं रह सकता। फिर भी यह अल्प-प्रभाव उन्हें हिंदुओं के अधिक नज़दीक नहीं ला सका। अलबत्ता, दोनों धर्मों के बीच संवाद-सेतु बनाने के प्रयास हुए। इनका ही नतीज़ा था कि एक सांस्कृतिक-वैचारिक समुदाय ऐसा उभरा, जिसे हिंदु-मुसलमान के बीच का कह सकते हैं। शासन-प्रशासन में हिंदु-मुसलमानों की साझा भागीदारी से एक नई भाषा ‘उर्दू’ का जन्म हुआ। यह व्याकरण में हिंदी और लिखने में पारसी थी। उर्दू शिक्षित और संभ्रांत वर्ग की भाषा भी बनी। जैसे कभी मध्ययुगीन यूरोप में लेटिन थी। लेकिन दो अलग संस्कृतियों के घालमेल की ऐसी उपजों ने बहुतायत आबादी को प्रभावित नहीं ही किया। कारण कि उनकी चिंता का मुख्य विषय थी कर-प्रणाली। इससे भारतीय ग्रामीण आबादी की आर्थिक स्थिति सीधे प्रभावित होती थी। 

उस समय राजकोष में आने वाली रकम का मुख्य स्रोत ज़मीन से मिलने वाला राजस्व था। हिंदु परंपराओं के मुताबिक भूमि राजा (भूपति) की संपत्ति मानी जाती थी। इसलिए वह ज़मीन से होने वाली आय में से एक हिस्से का हक़दार होता था। भले उसे वह हिस्सा धन के रूप में दिया जाए या अन्न के तौर पर। हिंदु कानून के मुताबिक ज़मीन से होने वाली आय में पारंपरिक रूप से राजा का हिस्सा छठवाँ था। यानि लगभग 16 प्रतिशत। लेकिन मुग़ल सल्तनत के ‘सबसे बड़े शासक’ अकबर (1556-1605) ने ये हिस्सेदारी एक-तिहाई कर दी। मतलब 30 फ़ीसदी। वहीं, अकबर के बाद वाले शासकों ने इसे आधा कर दिया। यानी ज़मीन से होने वाली आमदनी का 50 फ़ीसद राजकोष में देना अनिवार्य कर दिया। इससे किसानों के पास बस जीवन-निर्वाह के लायक ही आय बचती थी। तिस पर फसल ख़राब या बर्बाद होने की स्थिति में उनके पास कोई सुरक्षा कवच भी नहीं था। नतीज़ा ये हुआ कि जब भी अकाल पड़ता, अन्न भंडारों का अभाव हो जाता। भुखमरी फैल जाती। ग्रामीण अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती। नागरिक-व्यवस्था गड़बड़ा जाती।  

शोषण दूसरे क्षेत्रों में भी ऐसा ही था। व्यापारियों और दुकानदारों, जो अधिकांश हिंदु थे, पर भी अक्सर कई शुल्क थोप दिए जाते थे। उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली जाती थी। कारीगरों, शिल्पकारों को बलपूर्वक उठवा लिया जाता था। उन्हें बड़े अधिकारियों के लिए काम करने पर मज़बूर किया जाता था। व्यापार, उद्योग करों के बोझ से दबे थे। स्थानीय सूबेदार-जागीरदार अपनी ही नीतियाँ चलाते थे। हालाँकि इस सबसे भी राजनीतिक स्थिति पर ज़्यादा असर न होता अगर इसमें हिंदु राजाओं-राजकुमारों के साथ मुग़लों के बिगड़ते व्यवहार का मसला शामिल न होता। (जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
——
(नोट : ‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

सनातन धर्म क्या है?

(लेखक विषय की गम्भीरता और अपने ज्ञानाभास की सीमा से अनभिज्ञ नहीं है। वह न… Read More

21 hours ago

‘जानवरख़ोर’ बुलन्द हैं! हाथी मार दिए गए-सजा किसी को नहीं, बाघ गायब हैं-देखा जाएगा!!

दुनिया में तो होंगे ही, अलबत्ता हिन्दुस्तान में ज़रूर से हैं...‘जानवरख़ोर’ बुलन्द हैं। ‘जानवरख़ोर’ यानि… Read More

1 day ago

वे ‘देवदूत’ की तरह आते हैं, मदद करते हैं और अपने काम में लग जाते हैं!

हम अपने नित्य व्यवहार में बहुत व्यक्तियों से मिलते हैं। जिनके प्रति हमारे विचार प्राय:… Read More

2 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’: मैं उसे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता, वह मुझसे प्यार करता था!

अंबा को यूँ सामने देखकर तनु बाकर के होश उड़ गए। अंबा जिस तरह से… Read More

4 days ago

भारत को एआई के मामले में पिछलग्गू नहीं रहना है, दुनिया की अगुवाई करनी है

“भारत को बुद्धिमत्ता (कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानि एआई) के आयात के लिए अपनी जानकारियों (डेटा) का… Read More

4 days ago

36 लाख का बाथटब, 12 लाख का कमोड…समझिए, नेता ऐसे बर्बाद करते हैं हमारा पैसा!

आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्‌टनम शहर से लगे एक गाँव की पहाड़ी पर 61 एकड़ के… Read More

6 days ago