अतिरात्र : जेष्ठ प्रतिपदा से दशमी तक विजयवाड़ा, आन्ध्र प्रदेश में होगा यह महायाग

समीर पाटिल, दिल्ली से

शुभकृत संवत्सर जेष्ठ प्रतिपदा से दशमी (20 से 30 मई 2023) तक आन्ध्रप्रदेश में विजयवाड़ा के पास स्थित चिन्नाकाशी श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती देवस्थानम् में द्विसहस्र ‘अतिरात्र महायाग’ का आयोजन किया जा रहा है। भारतभूमि पर लगभग 160 नित्य अग्निहोत्री विप्र देव विराजमान हैं, जिन्होंने पूर्व में यह अनुष्ठान किया है। उनमें से 20 आचार्य इस यज्ञ विधान के ज्ञाता हैं। इनमें से एक देन्दुकुरी ब्रह्मर्षि सदाशिव घनपाठी सोमयाजी के आचार्यत्व में यह एक पक्ष तक चलने वाला यज्ञ सम्पन्न होगा।

ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार पूरा जगत महापरिवर्तन काल से गुजर रहा है। इस संक्रमण काल की विभिषिका से भारत भी अछूता नहीं रहेगा। इसी को देखते हुए यह महायज्ञ किया जा रहा है। महायाग का लक्ष्य जगत में कल्याण का प्रसार है। यह धर्ममय कामनाएँ और स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है। अतिरात्र यज्ञ में विशेष प्रकार की यज्ञशाला, चमस आदि पात्र, याज्ञिक सामग्री और हविषान्न का प्रयोग होता है। यज्ञवेदी श्येन के आकार की होती है। यह विशेष आकार, प्रकार और पदार्थ से बनी 2,000 ईटों की होगी। संकल्पित ऋत्विक और यजमान अत्यन्त कठोर नियमों का पालन कर इस महायाग को पूर्ण करेंगे।

वैसे, यज्ञ क्या है? पिण्ड और ब्रह्माण्ड के मिलन की घटना का नाम यज्ञ है। वेद प्राकृत जगत के पसार को यज्ञ की दृष्टि से देखते हैं। यज्ञ परम तत्त्व के प्रति हवि, मंत्रादि पूर्ण अर्चना तो है। साथ ही ज्ञान, भाव और चेतना का यह योग जिस धरातल पर होता है, वह समग्र अस्तित्त्व का विशिष्ट और गुह्यतम विज्ञान भी है। वेद ज्ञान है। मंत्र रूप में ऋषियों को दृश्यमान हुए हैं। भगवान के श्वास-नि:श्वास हैं। मूल मंत्र भाग को संहिता कहा जाता है। संहिता से जुड़े ब्राह्मण भाग में यागों का विधान होता है। आरण्यक और उपनिषद भाग चिन्तन प्रधान भाग है, जो मंत्र, यज्ञ संस्था और सृष्टि-ब्रह्माण्ड के योग से उद्भुत है।

प्राय: तब से वर्तमान तक इसी तरह विशिष्ट काल मुहूर्त का शोधन, शुद्ध देश-भूमि, हविषान्न, ऋत्विक और यजमानों का चयन का यज्ञ होता आया है। मानव इतिहास के गर्भकाल से अब तक अविच्छिन्न चली आ रही ऐसी परम्परा की अन्यत्र कल्पना भी दुष्कर है। तुर्क और अंग्रेजों के शासन की बात तो छोड़ ही दें, गणराज्य भारत में भी तिरस्कार, शोषण के बावजूद यदि आज यह श्रौत याग परम्परा जीवित है, तो इसके पीछे वैदिक अग्निहोत्रियों की पीढ़ियों का त्यागमय दिव्यत्त्व ही है। वेद परम्परा संरक्षण के लिए अपना समग्र जीवन लगा देने वाले ऐसे महत् जन ही हमारी यथार्थ धरोहर हैं।

इस पवित्र अतिरात्र महायाग में पवित्र आहुति के रूप में जो श्रद्धालु भी चाहे, अपनी शुद्ध आय से श्रद्धानुरूप सहभाग कर सकता है। इच्छुक लोग उसके लिए ‘AMVSYSPC Trust’ से सम्बद्ध पदाधिकारी डी सदाशिव गणपति सोमयाजी (9440366904) और डी लक्ष्मीनरसिम्हा सोमयाजी (9849132500) से सम्पर्क कर सकते हैं।

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Neelesh Dwivedi

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