कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और इनसेट में महाराष्ट्र की चुनाव रैली का दृश्य।
नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
एक पौराणिक कथा है, भस्मासुर की। उसका असली नाम वृकासुर था। उसने बड़ी तपस्या से भगवान शंकर को प्रसन्न किया। फिर उनसे वरदान माँगा कि वह जिस पर हाथ रख दे, वह भस्म हो जाए। आगे चलकर इस वरदान का दुरुपयोग करने के कारण उसका नाम भस्मासुर हुआ। कालान्तर में उसने भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती को देखा और उन पर मोहित हो गया। उन्हें पाने के लिए वह भगवान शिव को ही अपने रास्ते हटाने के लिए उनके पीछे पड़ गया। तब शिवजी भागे-भागे भगवान विष्णु के पास मदद माँगने पहुँचे। उन्होंने मोहिनी रूप धारण किया। भस्मासुर को अपने साथ नचाया और ऐसी मुद्राएँ बनाईं कि वह राक्षस अपने ही सिर पर हाथ रखकर स्वयं भस्म हो गया।
इस पौराणिक के कथा कुछ अंश देश और दुनिया की राजनीति में देखे जा सकते हैं। जैसे- अभी आज 23 नवम्बर को ही महाराष्ट्र का चुनाव नतीजा आया है। वहाँ बालासाहब ठाकरे के परिवार की शिवसेना और शरद पवार की पारिवारिक पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस क्रमश: 20 और 10 सीटों पर सिमटती दिख रही है। जबकि एक दौर था जब इन दोनों पार्टियों के पारिवारिक मुखियाओं के इशारे पर महाराष्ट्र चलता था। इन परिवारों में से एक के मुखिया (अब नहीं रहे) को ‘हिन्दु ह्रदय सम्राट’ कहा जाता था। जबकि दूसरे परिवार के मुखिया ‘महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य’ कहलाते हैं।
इसके बावजूद आज इन परिवारों और उनकी पार्टियों को उन्हीं के राज्य की जनता ने इस तरह से नकार दिया, क्यों? क्योंकि उन्होंने भी अपने यहाँ भस्मासुर को शरण दी। ‘हिन्दु ह्रदय सम्राट’ कहे जाने नेता के पुत्र ने एक ऐसे व्यक्ति को सहयोगी बनाया, जिसने उनके भीतर स्वयं सरकार का मुखिया बनने की महात्वाकाँक्षा पैदा की। इसके कारण उन्होंने 2019 में जिस पार्टी के साथ चुनाव लड़कर जनादेश हासिल किया, उसे ही छोड़ दिया। फिर महात्वाकाँक्षा पैदा करने वाला वही नेता उन्हें उन दलों के पास ले गया, जिन्हें तब भी राज्य की जनता से नकार दिया था। इन सभी के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बना ली। ढाई साल चलाई भी लेकिन न वे जनता को प्रभावित कर पाए न ख़ुश।
इसी तरह ‘महाराष्ट्र के चाणक्य’ कहलाने वाले नेता ने भी बरसों-बरस एक ऐसे व्यक्ति को संरक्षण दिया, बढ़ाया, जो उन्हें ही झटका देकर बहुत आगे बढ़ गया। नतीज़ा? अपने-अपने भस्मासुरों के कारनामों से आज इन दोनों ही बड़े नेताओं की पारिवारिक पार्टियाँ चुनावी तौर पर धुआँ-धुआँ हो गईं। हालाँकि राजनीति है, हालात पलटते भी हैं। मगर आज की स्थिति तो यही है कि भस्मासुरों ने वरदान देनेवालों को ही भस्म कर दिया है।
ऐसी ही एक मौज़ूदा स्थिति देश से बाहर भी देखिए। कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रान्त में एक शहर है सरे। वहाँ इसी महीने की 15 तारीख़ को एक जुलूस निकला। इस जुलूस के वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब फैले। इसमें नारे लग रहे थे, “गोर लोगो, कनाडा छोड़ो। इंग्लैंड जाओ, यूरोप जाओ।” यही नहीं, आगे नारे लगाए गए, “गोरो लोगो, कनाडा तुम्हारा नहीं, हमारा है।” और दिलचस्प बात कि ये नारे लगाने वाले कौन हैं? ज़वाब वही- भस्मासुर। ये लोग हिन्दुस्तान में रहा करते थे। हिन्दुस्तान को तोड़कर अपना एक अलग मुल्क बनाने की माँग कर रहे थे, अब भी कर रहे हैं। मगर साथ ही अब कनाडा में भी अपना हक़ जताने लगे हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें वहाँ की मौज़ूदा सरकार ने अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए लगातार संरक्षण दिया। उनकी जाइज़-नाजाइज़ माँगों को पूरा भी किया।
कनाडा की मौज़ूदा सरकार की इन ग़लतियों की तरफ वहाँ के पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी भी दी है। अन्य नेताओं ने ऐसे ही चेताया है। शायद इन्ही चेतावनियों का असर हो सकता है कि वहाँ की मौज़ूदा सरकार ने अपने संरक्षित ‘भस्मासुरों’ से दूरी बनाने के संकेत भी दिए हैं। लेकिन राजनीति तो आख़िर वहाँ भी है। राजनीति में हर किसी को फौरी नफ़ा-नुक़सान दिखता है। इसलिए सम्भव है कि मौज़ूदा कनाडाई सरकार फिर भस्मासुरों को संरक्षित करती दिख आए। और यदि ऐसा हुआ तो उसका भी भस्म होना तय मानिए। अगले साल वहाँ भी चुनाव होने हैं।
इसीलिए, जिन्हें भी अपनी भलाई चाहिए वह इन दो उदाहरणों से सबक ले और भस्मासुरों से दूरी बनाए।
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