अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 1/6/2021
भगवान बुद्ध ने पंचवर्गीय भिक्षुओं को अपनी बात सुनने के लिए मना लिया। तथागत ने उन्हें समझाया। उनकी रुचि देख जो पहला उपदेश दिया वह धर्मचक्र प्रवर्तन ( संयुक्त निकाय 55।2।1 बुद्धचर्या ) कहलाया।
उन्होंने कहा : भिक्षुओ, दो अतियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
भिक्षु : वे कौन-सी हैं?
बुद्ध : प्रथम अति है हीन, ग्राम्य तथा पृथक्जनों के योग्य, अनार्य, अनर्थों द्वारा सेवित, काम-वासनाओं द्वारा प्रेरित काम-सुख में लिप्त नहीं रहना चाहिए।
भिक्षु : और दूसरी अति कौन सी है?
बुद्ध : जो अनार्य अनर्थों से युक्त हो, काय क्लेश में लगे। वह दूसरी अति है।
भिक्षु : तो क्या करना चाहिए?
बुद्ध : दोनों अतियों को त्याग कर मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
भिक्षु-: मध्यम मार्ग क्या है?
बुद्ध : वह मध्यम मार्ग है, जो प्रज्ञा चक्षु उन्मीलित करता है। अर्थात् ज्ञान की आँखें खोलता है। ज्ञान देता है। अभिज्ञा के लिए। संबोध के लिए। और निर्वाण के लिए।
भिक्षु : यह कैसे होगा?
बुद्ध : इसके लिए अष्टांगिक मार्ग है – सम्यक् दृष्टि, संकल्प, वचन, कर्म, जीविका, व्यायाम, स्मृति और सम्यक् समाधि।
और इनको आर्य सत्य कहते हैं, जो चार हैं – 1) दुःख, 2) दुःख समुदाय, 3) दुःख निरोध, 4) दुःख निरोध मार्ग।
बुद्ध कहते हैं : दुःख आर्य सत्य है। आर्य का अर्थ है- आराद् दूराघातः सर्वहेय धर्मेभ्यः इत्यार्या अर्थात जो सभी हेय धर्मों से दूर हो जाए वह आर्य है।
और सत्य किसे कहते हैं? “सतां साधुनां पदार्थानां’ अर्थात् जिसके द्वारा साधुओं को मुक्ति आदि प्राप्ति होती है। जिसके द्वारा समस्त पदार्थों के स्वरूप का यथार्थ चिन्तन होता है। जो सत्पुरुष के लिए हितकारी है। वह सत्य है।
दुःख क्या है? बुद्ध कहते हैं- जन्म ही दुःख है। जरा (बुढापा) दुःख है। मरण, शोक, रुदन, मन की खिन्नता, अप्रिय से संयोग, प्रिय से वियोग भी दुख है। पांच स्कन्ध दुःख हैं।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 13वीं कड़ी है।)
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अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं….
12वीं कड़ी : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन
11वीं कड़ी : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?
10वीं कड़ी :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?
नौवीं कड़ी : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!
आठवीं कड़ी : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?
सातवीं कड़ी : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?
छठी कड़ी : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है
पांचवीं कड़ी : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?
चौथी कड़ी : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?
तीसरी कड़ी : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!
दूसरी कड़ी : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?
पहली कड़ी :भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?
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