टीम डायरी
कुछ लोगों की आदत होती है कि वे अपने ही काम के प्रति बहुत संज़ीदा नहीं होते। उसे चलताऊ तरीक़े से किया करते हैं। इसलिए उसमें ख़ामियाँ रह जाती हैं। इतना ही नहीं, उन ख़ामियों की वज़ह से अगर उन्हें टोका जाए तो वे लोग उल्टा आँखें दिखाने लगते हैं। हालाँकि इसका असर ये होता है कि इस क़िस्म को लोगों को अक्सर कहीं न कहीं से अपनी जगह खोनी पड़ती है। सादा भाषा में कहें तो उनका पत्ता साफ़ हो जाता है। लेकिन उन पर शायद इसका भी ज़्यादा असर नहीं पड़ता। नतीज़े में वक़्त के साथ-साथ उनकी प्रतिष्ठा भी कम होने लगती है।
अपनी डिजिटल डायरी (#ApniDigitalDiary) के पॉडकास्ट ‘डायरीवाणी’ (#DiaryWani) की इस कड़ी में आज ऐसा ही एक दिलचस्प क़िस्सा। सुनिएगा…
….और कोशिश कीजिए कि हम इस तरह के लोगों की भीड़ में शामिल न हों।
डायरीवाणी की पिछली कड़ियाँ (सुन सकते हैं)
3- एक-दूसरे के साथ हमारी संगत या संगति कैसी हो, इस मिसाल से समझिए!
2- ज़िन्दगी में ‘मूड’ नहीं, बल्कि हमारा ‘मूव’ मायने रखता है
1- अहम मौक़ों अपने ज़मीर की सुनिए, तारीख़ में नायक बनेंगे!
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