क्या हम पर्यावरण जैसे विषय पर इतने गैर-ज़िम्मेदार हैं?

टीम डायरी, 5/6/2021

जूही चावला अपने समय की लोकप्रिय अभिनेत्री हैं। उन्होंने अभी हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। समाजसेवी, स्तम्भकार वीरेश मलिक और टीना वाचानी भी उनके साथ थे। याचिका में एक अहम मसला उठाया गया। दूरसंचार क्षेत्र में 5जी तकनीक के परीक्षण का। इस तकनीक के फ़ायदों पर जितनी चर्चा है, उतनी ही पूरी दुनिया में इसे लेकर आशंकाएँ भी तमाम हैं। याचिका में बताया गया कि बेल्जियम ने ब्रशेल्स शहर में इस तकनीक के परीक्षण पर अप्रैल-2019 में रोक लगा दी थी। वहाँ की संसद ने इसी साल पांच मई को फिर इस मसले पर विचार किया और 5जी तकनीक के परीक्षण की अनुमति न देने का निर्णय किया। ऐसे ही कदम कुछ अन्य देशों में भी उठाए गए हैं। कारण स्पष्ट हैं। इस तकनीक से बहुत अधिक मात्रा में रेडियाधर्मी विकिरण (Radioation) होता है। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान होने की आशंका है। पशु, पक्षी, ज़मीन, पानी, पेड़, पौधे और मानव स्वास्थ्य, हर कहीं इस तकनीक का प्रतिकूल असर देर-सवेर नज़र आ सकते हैं। लिहाज़ा इन्हीं आधार पर याचिका में माँग की गई कि भारत में किसी भी कम्पनी को 5जी तकनीक के परीक्षण की अनुमति न दी जाए। यह माँग तब की गई जब भारत सरकार मई महीने में ही चार कम्पनियों को देश में 5जी तकनीक के परीक्षण की अनुमति दे चुकी थी। ये कम्पनियाँ हैं- रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और सरकार की अपनी कम्पनी- महानगर दूरसंचार निगम लिमिटेड (एमटीएनएल)।  

मुद्दा अच्छा था, बेशक। इस पर बहस होनी चाहिए थी। विशेषज्ञ से लेकर, सरकार और आम जनता तक इस पर विचार-विमर्श करते, तो कहीं कुछ बेहतर हासिल होता। लेकिन हुआ क्या? जूही चावला और उनके साथियों की याचिका पर अभी दो जून, बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए यह सुनवाई तय थी। जूही चावला ने इस सुनवाई की लिंक अपने ट्विटर और इंस्टाग्राम पेज पर साझा कर दी। उन्होंने प्रशंसकों से अपील की कि वे इस सुनवाई से जुड़ें। सम्भवत: वे अपने विचार के पक्ष में माहौल बनाने की मंशा रखती होंगी। लेकिन उनकी मंशा और मंसूबा, दोनों ही पूरे नहीं हुए। उनके प्रशंसकों में से कुछ सुनवाई के दौरान जूही की फिल्मों के गाने गाते हुए पाए गए। ‘घूँघट की आड़ से’, ‘हम हैं राही प्यार के’, आदि। इससे अदालत की कार्यवाही में बार-बार व्यवधान पड़ा। साथ ही, न्यायाधीश जेआर मीढ़ा भी भड़क गए सो अलग। उन्होंने याचिका सिरे से ख़ारिज़ कर दी। गाना गाने वाले प्रशंसक की पहचान कर मामला दर्ज़ करने का दिल्ली पुलिस को निर्देश दे दिया। साथ में जूही चावला और साथियों पर 20 लाख रुपए का हर्जाना भी ठोक दिया। अदालत का समय बर्बाद करने के एवज़ में। जज ने हालाँकि फ़ैसला देने से पहले अन्य दलीलों और पक्षों को भी सुना। लेकिन मोटे तौर पर पूरी कार्यवाही के दौरान उनकी धारणा यही बनी कि यह मामला सिर्फ़ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए दायर किया गया है। याचिका दायर करने वालों को विषय के बारे में कोई गम्भीर जानकारी नहीं है।

जिन परिस्थितियों के आधार पर अदालत ने यह फ़ैसला दिया, वे अपनी जगह सही हो सकती हैं। लेकिन विचार करके देखें कि इतने गम्भीर और अहम मसले का क्या यह हश्र होना चाहिए था? क्या यह पर्यावरण जैसे बेहद सम्वेदनशील मसले पर, समाज के हिस्से के रूप में, हम सभी के ग़ैर-ज़िम्मेदार रवैये की मिसाल नहीं है? क्या ये अच्छा नहीं होता कि कुछ विशेषज्ञ आगे आते या अदालत उनसे राय लेती? वे बताते कि 5जी तकनीक से जुड़ी आशंकाओं को लेकर दुनिया में क्या चल रहा है? ये कितनी सही या ग़लत हैं? कितना अच्छा होता अगर याचिका लगाने वाले और उनके समर्थक मसले की गंभीरता को समझते? अपने आचरण से उसे साबित करते? या अदालत ही अपनी ओर से कोई पहल कर लेती? भले याचिका लगाने वालों को विषय की गहरी जानकारी नहीं थी? पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

आज ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर ये तमाम बातें विचार करने लायक हो सकती हैं। इस दिवस पर बड़ी बातें बघारने, आयोजन करने और चिन्ताएँ जताने के बज़ाय अगर हम सब अपने आचार-व्यवहार की समीक्षा करें, पर्यावरण के लिए ख़ुद को अधिक ज़िम्मेदार बनाएँ तो शायद इसकी सार्थकता ज़्यादा हो।

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