प्रतीकात्मक तस्वीर
टीम डायरी
पिता ने बेटी को उसकी स्नातक डिग्री पूरी होने पर बधाई दी। फिर कहा, “बहुत पहले मैंने एक कार ली थी जो उस समय की बेहतरीन कारों में से थी। मुझे बहुत ही प्यारी है। मैं चाहता हूँ कि अब तुम यह कार चलाओ। मगर इसके पहले कि ये कार मैं तुम्हें दूँ, तुम इसे किसी कार-विक्रेता के पास ले जाओ और उससे इसकी क़ीमत समझो।”
बेटी ने वैसा ही किया और लौटकर पिता से बोली, “चूँकि कार पुरानी है, इसलिए कार-विक्रेता ने मुझे इसकी क़ीमत 10,000 रुपए बताई है।” यह सुनकर पिता ने कहा, “कोई बात नहीं। अब इसे किसी पुरानी कार बेचने वाले के पास ले जाओ और उससे इसकी क़ीमत पूछो।” बेटी ने फिर वही किया और वापस आकर बताया, “पुरानी कार बेचने वाले तो क़ीमत 1,000 रुपए ही बताई। उसने कहा कि इसमें उसे बहुत काम कराना पड़ेगा।”
पिता ने इसके बाद बेटी से कहा, “अब इस कार को ऐसे लोगों के पास ले जाओ, जो पुरानी कारों के शौक़ीन हैं।” बेटी इस बार भी पिता की बात मानकर कार एक निश्चित जगह पर ले गई। लेकिन जब वहाँ से लौटी तो वह अचरज से भरी हुई थी। उसने पिता को बताया, “पुरानी कार के शौक़ीन लोगों के क्लब में कुछ लोग मुझे इसके लिए एक लाख रुपए तक क़ीमत देने को तैयार थे। वे कह रहे थे कि यह दुर्लभ कार है। अपने ज़माने में बेहद लोकप्रिय रही है। अब भी बहुत अच्छी स्थिति में है। चलने लायक है। इसे वह कभी भी हाथों-हाथ ख़रीद सकते हैं।”
यह सुनकर पिता ने बेटी से कहा, “मैं बस, तुम्हें यही समझाना चाह रहा था। तुम्हारी क़ीमत हमेशा हर किसी को समझ आएगी, यह ज़रूरी नहीं है। इसलिए अगर कहीं तुम्हारी, तुम्हारे काम की, तुम्हारी भावनाओं की क़द्र नहीं हो रही है, तो कभी निराश न होना। सिर्फ़ इतना समझ लेना कि तुम ऐसी जगह, ऐसे लोगों के बीच हो, जिन्हें तुम्हारी एहमियत पता ही नहीं है। इसलिए जितनी ज़ल्दी हो, इस क़िस्म की जगह और ऐसे लोगों से दूर हो जाना।”
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