सोशल मीडिया और मीडिया किस तरह किसी की सामग्री के साथ व्यवहार करता है, यह लोकप्रिय कविता इसका ताज़ा उदाहरण है। चीरहरण के कुअवसर पर द्रौपदी के कोप को ‘कुपित याज्ञसैनी’ शीर्षक से लिखी कविता में भावपूर्ण शब्द दिए उत्तर प्रदेश के जाने-माने कवि सतीश सृजन जी ने। इसे आवाज़ दी उतनी ही पहचानी गायिका वैष्णवी शर्मा जी ने। वैष्णवी जी के अपने यूट्यूब चैनल ‘राग वैष्णवी’ पर पिछले महीने यानि अक्टूबर की तीन तारीख़ को इस कविता का वीडियो (नीचे वही मूल वीडियो है। उसे देखा जा सकता है।) आम लोगों के लिए जारी किया गया। तब से लेकर सिर्फ़ उसी चैनल पर उसे 40 हजार से अधिक बार देखा जा चुका है।
यहाँ तक तो सब ठीक। लेकिन दिक़्क़त तब होना शुरू हुई जब इस वीडियो के सम्पादित अंश अन्यान्य यू-ट्यूब चैनलों, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर चलाए जाने लगे। कुछ मीडिया पोर्टलों पर भी। इन सभी में कहीं आधी-अधूरी कविता। तो किन्हीं में सतीश सृजन जी की जगह महाकवि ‘रामधारी सिंह दिनकर’ का नाम। कहीं-कहीं पूरे मनोभाव के साथ काव्य-पाठ करने वाली वैष्णवी जी का ही नाम गायब। और कहीं दोनों का ही अता-पता नहीं। ऐसा अक्सर अन्य तमाम मामलों में भी होता है। सोशल मीडिया कम्पनियाँ अपने स्तर पर ऐसे मामलों में कार्रवाई करती हैं। लेकिन वह अमूमन पर्याप्त नहीं होती। और गड़बड़ी जारी रहती है। जो इस वीडियो के मामले में भी जारी है।
लिहाज़ा, #अपनीडिजिटलडायरी ने अपने ‘सरोकारों’ के चलते, अपनी तरफ़ से सही वीडियो और वह भी वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी के साथ अपने इस मंच पर जारी करने का निर्णय लिया। ताकि थोड़ी-बहुत ही सही, कहीं तो ‘गन्द की धुन्ध’ छँट सके।
बहरहाल, यह कविता, शुरू से अन्त तक पूरी सुनी जाने योग्य है। चीरहरण के कुअवसर पर द्रौपदी के मनोभावों का ऐसा जीवन्त शब्द चित्र खींचना हर किसी के वश की बात नहीं। और फिर उस शब्द चित्र को उतनी ही जीवन्तता के साथ आवाज़ में पिरो देना। वाक़ई प्रशंसा योग्य शब्दों की सीमा से परे का काम है यह, जो सतीश जी, वैष्णवी जी और उनके साथियों के सहयोग से यूँ साकार हुआ है।
सुनिएगा, सोचिएगा, तमाम पहलुओं को समझिएगा और महसूस कीजिएगा।
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