टीम डायरी
अभी बीते शनिवार, 21 दिसम्बर को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की। ‘भारत के वनों की स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर)- 2023’ इसका नाम है। इसमें बताया गया है कि भारत में वर्ष 2021 से 2023 के दौरान (क्योंकि रिपोर्ट हर दो साल में जारी होती है) 1,289 वर्ग किलोमीटर वृक्षावरण (Tree Cover) बढ़ गया है। जबकि इसी अवधि में वनावरण (Forest Cover) वैसे तो 156 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। अलबत्ता उसके मुकाबले इसी अवधि के दौरान क़रीब 3,656 वर्ग किलोमीटर के घने जंगल पूरी तरह ख़त्म भी हुए हैं। मतलब सीधे शब्दों में कहें तो जंगल कम और पेड़ कुछ ज़्यादा बढ़ गए हैं।
अब इससे पहले कि कोई भ्रमित हो, वनावरण और वृक्षावरण का फर्क समझ लेते हैं। दरअसल, एक हेक्टेयर से कम क्षेत्र में लगे पेड़ों को ‘वृक्षावरण’ या ‘ट्री-कवर’ के तहत गिना जाता है। जबकि एक हैक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्र में पूरे पारिस्थितिक तंत्र (इसमें सभी जंगली जानवर आदि शामिल होते हैं) के साथ लगे पेड़ों को ‘वनावरण’ या फॉरेस्ट-कवर माना जाता है। और इनमें भी, ये जो दूसरी श्रेणी है, वनावरण वाली, वही पर्यावरण के लिए सबसे अच्छी और सर्वाधिक अनुकूल मानी जाती है। कारण कि वृक्षावरण में पेड़-पौधे, पक्षी आदि तो होते हैं, लेकिन जंगल की पूरी पारिस्थितिकी वहाँ विकसित नहीं हो पाती।
इसी कारण पर्यावरणविदों की चिन्ता बढ़ी ही है। चिन्ता बढ़ने के कारण इसी रिपोर्ट में कहीं दबे हुए हैं। इनके मुताबिक, बीते 10 साल (2011-2021) में 93,000 वर्ग किलोमीटर के ‘घने जंगल’ ख़त्म हो गए। इनमें से, इसी अवधि में 46,000 वर्ग किलोमीटर के जंगल तो ऐसे हो गए, जो अब ‘जंगल’ नहीं कहे जाते। उन्हें ‘वृक्षावरण’ की श्रेणी में शामिल किया जाने लगा है। इस मामले में अरुणाचल प्रदेश (6,539 वर्ग किलोमीटर जंगलों का नुक़सान), मध्य प्रदेश (5,353 वर्ग किमी) और महाराष्ट्र (4,052 वर्ग किलोमीटर) की हालत देश में सबसे बुरी है।
इस रिपोर्ट के बाद बेंगलुरू जैसे शहरों के बारे में दावा किया जा रहा है कि वहाँ ‘वनावरण’ यानि फॉरेस्ट कवर बढ़ गया है और यह देश का सबसे हरा-भरा महानगर हो गया है। जबकि समझने की बात है कि भाई, शहरों में ‘फॉरेस्ट कवर’ यानि जंगल नहीं हुआ करते। वहाँ सिर्फ़ ‘वृक्षावरण’ अर्थात् ट्री-कवर होता है। हालाँकि जंगलों में शहर ज़रूर हो सकते हैं, होते हैं, हो रहे हैं। इसीलिए तो देश का वनारवरण लगातार घट रहा है क्योंकि जंगली जानवरों के घरों, जंगलों में इंसान ने लगाताार घुसपैठ की है। ताज़ा रिपोर्ट का सीधा मतलब यही है।
यही वजह है कि सिंह, बाघ, चीता, जैसे जंगली जानवर देश के कई हिस्सों में अक़्सर जंगलों की सरहद लाँघकर इंसानी बस्तियों के आस-पास घूमते नज़र आ जाते हैं। इसका ताज़ा उदाहरण है, श्योपुर के कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य का। वहाँ अभी कुछ दिन पहले वायु और अग्नि नाम के दो चीतों को खुले जंगल में छोड़ा गया था। अब ख़बर है कि दोनों चीते इस वक़्त कूनो से क़रीब 60 किलोमीटर दूर श्योपुर शहर की सीमा में दिखे हैं।
अब ये जानवर बेचारे करें भी तो क्या? इंसान उनके घरों में अतिक्रमण कर लेगा, उनका भोजन (विभिन्न अन्य जानवर) खा जाएगा, तो वे क्या करेंगे? भोजन आदि की तलाश में कहाँ जाएँगे? इंसानी बस्तियों के पास ही न? और इस दौरान अगर वे भूख मिटाने के लिए इंसान पर ही हमला कर दें, तो भी उनका क्या दोष?
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