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न जन्मदिवस, न पुण्यतिथि, फिर गूगल ने आज ज़ोहरा सहगल को क्यूूँ याद किया?

टीम डायरी, 29/9/2020

इन्टरनेट के माध्यम से गूगल पर जब हम कुछ तलाशने जाते हैं तो ‘सर्च बॉक्स’ (जहाँ खोजी जा रही चीज के बारे में कुछ लिखा जाता है) के ऊपर एक तस्वीर सी होती है। इस पर अक्सर अंग्रेजी में गूगल ही लिखा होता है। इसे ‘डूडल’ कहा जाता है। ‘डूडल’ का अर्थ वैसे तो कामचोर, आलसी आदि से लगाया जाता है। लेकिन एक अन्य अर्थ ‘मसक’ यानि राजस्थानी बीन भी होता है। सम्भव है, गूगल ने इसी मसक बाजे को ध्यान में रखकर इसे ‘डूडल’ नाम दिया हो। यह काम भी ‘मसक’ की तरह ही करता है। जैसे बीन हमारा ध्यान खींचती है। वैसे ही ‘डूडल’ भी अधिकांश मौकों पर इन्टरनेट का इस्तेमाल करने वालों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। वह भी रचनात्मकता के साथ। अक्सर इस ‘डूडल’ पर विशेष अवसरों को समर्पित कलाकृतियाँ ही डाली जाती हैं। जैसे- किसी हस्ती का जन्मदिवस, पुण्यतिथि आदि। 

इस गूगल ‘डूडल’ पर मंगलवार, 29 सितम्बर को भी ऐसी एक कलाकृति डाली गई है। यह कलाकृति फिल्मों में अधिकांशत: चरित्र भूमिकाएँ निभाने वाली अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल की है। कई मायनों में यह दिलचस्प है। क्योंकि 29 सितम्बर को न तो उनका जन्मदिवस है और न ही पुण्यतिथि। उनका जन्म 27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हुआ था। जबकि निधन नई दिल्ली में 10 जुलाई 2014 को। तिस पर एक और दिलचस्प बात ये कि 29 सितम्बर पूरी दुनिया में ‘विश्व ह्रदय दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। फिर भी गूगल ‘डूडल’ पर दिल से सम्बन्धित कोई कलाकृति न होकर ज़ोहरा सहगल हैं। उनकी कलाकृति गूगल की अतिथि कलाकार पार्वती पिल्लई ने बनाई है। वह भी एक खास मकसद से। उसी में इस प्रश्न का उत्तर भी है कि आज ‘डूडल’ पर आख़िर ज़ोहरा सहगल क्यों हैं? 

दरअसल, 29 सितम्बर वह तारीख़ है, जब किसी भारतीय फिल्म कलाकार को पहली बार किसी बड़े वैश्विक मंच पर सराहा गया था। वह कलाकार ज़ोहरा सहगल थीं और साल 1946 का था। उस वक़्त उनकी फिल्म आई थी ‘नीचा नगर’। वह फ्रांस के प्रतिष्ठित फिल्म समारोह ‘कान्स’ में शामिल की गई थी। विशेष तौर पर ज़ोहरा सहगल की भूमिका को काफी प्रशंसा मिली थी। इस फिल्म को समारोह के सबसे बड़े सम्मान ‘पाम डी’ओर पुरस्कार’ से नवाज़ा गया था। ज़ाहिर तौर पर इस घटना के बाद से साहिबज़ादी ज़ोहरा बेगम मुमताज़ उल्ला खान (पूरा नाम) दुनियाभर में जाना-पहचाना नाम हो गई थीं। इतना कि 1962 में ब्रिटिश टेलीविज़न के लोकप्रिय धारावाहिक ‘डॉक्टर हू’ (Doctor Who) में भी उनके अभिनय ने खूब तारीफ़ें बटोरीं। उन्हें 2010 में भारत के दूसरे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद़म विभूषण’ से भी सम्मानित किया गया था।

तो आज गूगल का यह प्रयोग निश्चित रूप से ‘राेचक-सोचक’ बन पड़ा न?

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