टीम डायरी
अभी 29 जुलाई को ‘अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस’ मना। मध्य प्रदेश के लिए इस दिवस के मायने बहुत हैं क्योंकि यह राज्य पूरे देश में सर्वाधिक बाघों (785) को अपने जंगलों में सुरक्षित रखता है। इसीलिए इसे ‘टाइगर स्टेट’ का दर्ज़ा भी मिला हुआ है। देशभर में 3,682 बाघ हैं। इसमें लगभग 28% हिस्सेदारी मध्य प्रदेश के बाघों की है।
इसी तरह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के लिए भी ‘बाघ दिवस’ बहुत एहमियत रखता है। कारण कि भोपाल देश का इक़लौता शहर है, जहाँ आस-पास लगे जंगलों में करीब 25 ‘अर्बन टाइगर’ यानी ‘शहरी बाघ’ बेख़ौफ़ घूमते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ‘शहरी बाघ’ उन्हें कहा जाता है, जो शहर की आब-ओ-हवा, वहाँ की आबादी, दिनचर्या, भाग-दौड़, वाहनों की रेलमपेल, आदि सभी चीज़ों के साथ तालमेल बिठाकर रहने का हुनर सीख चुके होते हैं।
अच्छी बात है। मध्य प्रदेश और भोपाल वालों के लिए यह गर्व करने का विषय है। उस पर वे गर्व करते भी हैं। लेकिन इसी सन्दर्भ और अवसर से जुड़ती एक ख़बर शायद किसी के लिए गर्व का कारण न हो। इस ख़बर में बताया गया है कि बाघों ने ख़ासकर ‘शहरी बाघों’ ने इंसान से तालमेल बिठाते-बिठाते अपना इलाक़ा काफ़ी समेट लिया है। इलाक़ा, जिसे अंग्रेजी भाषा में बाघों की टेरिटरी कहते हैं। ख़बर की मानें तो एक बाघ पहले 25 वर्गकिलोमीटर में राज करता था। वहाँ किसी को आसानी से घुसने की अनुमति नहीं होती थी। मगर अब बाघों ने प्रति बाघ के हिसाब से 5 वर्गकिलोमीटर के इलाक़े में ख़ुद को समेट लिया है। मतलब उनका शासनक्षेत्र अब एक-चौथाई बचा है।
इस बदलाव को सब अपने हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं। कोई कहता है, जंगलों में छोटे इलाक़े में ही बाघों के लिए भोजन-पानी का पर्याप्त बन्दोबस्त हो रहा है। इसीलिए उन्होंने अपना इलाक़ा समेट लिया है। हो सकता है, यह तर्क सही हो। लेकिन इस परिवर्तन का दूसरा पहलू भी तो सम्भव है। यह कि जिस तेजी से इंसान जंगलों में घुस रहा है, वहाँ अपनी गतिविधियाँ बढ़ा रहा है, उसे देखते हुए सम्भवत: ‘जंगल के राजा’ ने अपनी रियासत समेट लेने में ही भलाई समझी हो। आख़िर जब वे शहरों के साथ तालमेल बिठा सकते हैं, तब यह तो कर ही सकते हैं।
सो, अब इस दूसरे पहलू यानि इंसानी दख़लंदाज़ी से जुड़े कुछ आँकड़ों पर ग़ौर करें। एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है, ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’। इसके आँकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में 2001 से 2023 के बीच 9.11 किलो हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल काटे गए हैं। यहाँ किलो हेक्टेयर से बात न समझ आए तो बता दें कि 1 किलो हेक्टेयर करीब 1 करोड़ वर्गमीटर के आस-पास होता है। तो इस हिसाब से 9.11 किलो हेक्टेयर लगभग 9.11 करोड़ वर्गमीटर के बराबर हुआ। देश का हाल तो इससे ज़्यादा चिन्ताजनक है। ‘यूटिलिटी बिडर’ नामक एक अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2015 से 2020 के बीच 5 सालों में ही 6,68,400 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल ख़त्म हो चुके हैं।
अलबत्ता, कहानी यहाँ पर ख़त्म नहीं होती। जंगलों और जंगली-जानवरों के प्रति जागरूकता रखने वालों को मार्च-2024 का एक वाक़िआ भूला नहीं होगा। तब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास चल रही व्यावसायिक गतिविधियों पर सख़्त टिप्पणी की थी। इस राष्ट्रीय उद्यान में भी अच्छी ख़ासी संख्या में बाघ रहते हैं और उन्हें देखने की इच्छा से बड़ी तादाद में पर्यटक भी आते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए कारोबारियों ने राष्ट्रीय उद्यान से लगे इलाक़ों में बड़े-बड़े रिज़ॉर्ट बना लिए। वहाँ शादी-ब्याह भी होने लगा। इसी के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त टिप्पणी तो की ही, जिम कॉर्बेट में ‘टाइगर सफारी’ पर भी रोक लगा दी थी।
तो अब बताइए, कौन ज़्यादा समझदार हुआ, इंसान या बाघ?
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