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ट्रम्प किस तरह दुनिया को बदलकर रख देने को बेताब हैं?

समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश

पहले #अपनीडिजिटलडायरी के इन्हीं पन्नों पर अमेरिका के वोक कल्चर और अतिउदारवाद के दुष्परिणामों पर संकेत किया गया था। वहाँ चुनावी परिणाम ने उदारवाद की विचारधारा को आर्थिक और सामाजिक विपन्नता के मुहाने पर खड़ा करने के लिए जिम्मेदार माना है। महाशक्ति अमेरिका को कैंसर की तरह खा रहे सबसे बड़े दुश्मन संस्थागत भ्रष्टाचार के कारनामे सामने आ रहे हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्राध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के बाद इसके खिलाफ मोर्चा खोला है। अमेिरका को फिर से उत्पादक और ‘ग्रेट’ बनाने के चुनावी वादे पर जीते ट्रम्प द्वारा अतिवादी वोक कल्चर के खिलाफ जंग के ऐलान से अमेरिका के प्रशान्त संस्थानों में एक भूचाल आ गया है। अब इसकी सुनामी का असर पूरी दुनिया में पड़ने जा रहा है।

डोनाल्ड ट्रम्प ने आते ही गैरकानूनी अप्रवासियों पर नकेल कसने की कवायद शुरू की। इसके लिए उन्होंने न केवल सीमाओं को बन्द कर आपातकाल लागू किया है, बल्कि इनके माध्यम से चलने वाले ड्रग माफिया को आतंकवादी घोषित कर दिया है। साथ ही जन्म से मिल जाने वाली नागरिकता पर रोक लगाने का आदेश दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिकी भागीदारी हटा ही ली है। और अब सबसे बड़ा कदम उठाते हुए उन्होंने अमेरिका के सबसे बड़े सहायता संगठन यूएसएड (यूनाईटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) को धरातल पर लाने की तैयारी कर ली है। यूएसएड की जिन आधारों पर कटाई छँटाई की जा रही है, वह अमेरिका के आन्तरिक और अन्तरराष्ट्रीय दृष्टि से बेहद डरावने हैं। यह कई उन आशंकाओं को सही साबित करता है, जो अमेरिका प्रधान विश्व-व्यवस्था के घृणित पक्षों को सामने ला रहा है।

यूएसएड अमेरिकी खुफिया एजेंसी- सीआईए के लिए कार्यरत संगठन है, यह किसी से छिपी बात नहीं। वह दुनिया भर में अमेरिकी हितों के लिए काम करता है और चिकित्सा, नैसर्गिक आपदा, शिक्षा, औषधि, मानव-अधिकारों के लिए अरबों डाॅलर बाँटता है। इस संस्था पर ट्रम्प सरकार द्वारा बनाए विभाग डोजे (डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट इफिशिएंसी) प्रमुख एलन मस्क ने तख्ता-तलट और सरकारों को गिराने जैसे गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप लगाया है। यह सर्वविदित है ही और इससे अमेरिका को कोई हानि भी नहीं है – फिर भले वह यूक्रेन में एक लोकतांत्रिक सरकार को अपदस्थ कर जेलेन्सकी को राष्ट्राध्यक्ष बनाना हो या बांग्लादेश में शेख हसीना को अपदस्थ कर मोहम्मद यूनुस के हाथों सत्ता सौंपना। इससे अमेरिकी को कोई फर्क नहीं पड़ता।

फिर सवाल उठाता है अमेरिका के लिए समस्या कहाँ से पैदा हुई? तो अब तक जो हकीकत सामने आती है, उससे यह बात स्पष्ट हो रही है कि संस्थागत भ्रष्टाचार से अमेरिकी स्वप्न एक दु:स्वप्न साबित हो रहा है। इस संस्थागत आन्तरिक भ्रष्टाचार ने उदारवादी वैश्विक वाेक कल्चर के तहत दुनिया भर में ऐसे आर्थिक हितों का नेटवर्क खड़ा किया है जो कि अमेरिका के हितों के साथ समझौता कर अविश्वसनीय धन कमा रहा है।

वर्षों से विश्व मुद्रा डॉलर की हैसियत का लाभ उठाते हुए अमेरिका अनाप-शनाप डॉलर छाप कर अपनी मुद्रास्फीति को दुनियाभर में मुफ्त में बाँटकर मौजमस्ती कर रहा था। इस बंदरबाँट से लाभान्वित होने वाले अमेरिकी संस्थानों के प्रमुख, बड़े उद्योगपति, नेता, अर्थशास्त्री और महान पत्रकारिता के पुरस्कारों से नवाजे जाने वाले मीडिया समूहों ने एक ऐसा आभासी तंत्र पैदा कर दिया है, जिसके बोझ तले आम मेहनतकश अमेरिकी पिस रहा है। ट्रम्प आरम्भिक दौर के अमेरिकी मूल्यों जैसे, कठोर परिश्रम, उत्पादकता और पारम्परिक ईसाई पारिवारिक और सामाजिक नैतिक मूल्यों के माध्यम से अमेरिका को महान बनाना चाहते हैं। अब ट्रम्प और डोजे टीम ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ा अभियान छेड़ा है। इससे पूर्व के तंत्र से लाभान्वित होने वाले लोगों में कोहराम मचा है। जार्ज सॉरस, गेट्स फाउंडेशन, ओमिडि्यार नेटवर्क और ऐसे तमाम वैश्विक संगठनों के हितों पर इससे बड़ी चोट लगना लाजिमी हैै।

ठीक भारत की ही तरह अमेरिका में भी ये लोग अदालतों में अपने मददगार और तकनीकी पेचीदगियों की मदद से इस प्रयासों को रोकने के लिए जी-जान का जोर लगा रहे हैं। हाल ही में न्यूयाॅर्क के एक जज ने डोजे के कर्मचारी और यहाँ तक ट्रेजेरी सेक्रेटरी को ही ट्रेजरी का वह पुराने डेटा देखने पर रोक लगा दी है, जो पुराने भ्रष्टाचार को उजागर कर सकता है। वहीं वहाँ के स्थापित मीडिया ऐसे मामलों में जिस तरह से भ्रष्टाचार के पक्ष में मौन सहमति दे रहा है, उससे अमेरिकी नागरिकों की नजर में आज नामी-गिरामी मीडिया समूहों की विश्वसनीयता कम हो रही है। एक बेहद चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिका का प्रधान प्रतिद्वन्द्वी चीन इन बातों का लाभ उठाकर विश्व में अपनी स्थिति मजबूत करता जा रहा है। यानी कई अमेरिकी संस्थान चीन के हितों के पक्ष में काम कर रहे हैं। चीन सरकार ने अमेरिकी मुख्यधारा और संगठनों में घुसपैठ कर ली है और उसने यूएस ट्रैजरी की साइट भी हैक कर ली है।

डोनाल्ड ट्रम्प नागरिकों द्वारा उन पर दिखाए विश्वास के लिए हर सीमा तक जाने को तैयार है। यह विशिष्टता उन्हें अन्य नेताओं से बहुत आगे ले जाकर खड़ी करती है। उनके सामने बहुत खतरे भी हैं। लेकिन यूएसएड पर ट्रम्प के आक्रमण के साथ अमेरिका की विदेश नीति और दुनियाभर के देशों की स्थिति अभूतपूर्व रूप से बदलने जा रही है। थिंक टैंक, हथियार निर्माता, दवा और औद्योगिक कृषि संगठनों की मदद सीआईए जो दुनियाभर में गतिविधियाँ चला रही है। अब उसे अमेरिकी सरकार का समर्थन सीमित होगा। इन बदलावों के महत्व का आकलन करना भी अभी मुश्किल लगता है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि यदि अमेरिका अब अपना दिशासूचक ठीक करने जा रहा है तो इसका दुनियाभर में असर होगा। अमेरिका चीन का संघर्ष तेज होगा।

‘अमेरिका फर्स्ट’ का रुख यूरोप, गल्फ समेत भारत को भी प्रभावित करेगा। इसके लिए भारत को सबसे पहले अपनी उत्पादकता को सुधारना होगा, लेकिन उसका नैतिक आधार क्या होगा यह सोचने की बात है। अमेरिका और यूरोप के लिए उत्पादन केन्द्र बनने की नीति हमारे लिए कितनी उपयोगी होगी? और क्या भारत अपने पारम्परिक नीति मूल्यों के आधार पर कोई अपनी नीति बना सकता है, यह एक बेहद गम्भीर प्रश्न है। 

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(नोट : समीर #अपनीडिजिटलडायरी की स्थापना के समय से ही जुड़े सुधी-सदस्यों में से एक हैं। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं। सनातन धर्म, संस्कृति और परम्परा पर समीर ने हाल ही में डायरी पर सात कड़ियों वाली अपनी पहली श्रृंखला भी लिखी है।)

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