कुमार गन्धर्व : जिनके गाए ‘निर्गुण’ से गुण-अवगुण परिभाषित कर पाता हूँ!

संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से, 8/4/2021

भारतीय मनीषा, विलक्षण संगीतकार और महान गायक पंडित कुमार गंधर्व का आज जन्मदिन है। कर्नाटक से मालवा के देवास में आ बसे। फिर यहीं जीवनभर संगीत और सुरों की आराधना करते रहे। आज उनके गाए कबीर को सुनकर ही मेरे जीवन की गुत्थियाँ सुलझती हैं। उन्हीं के निर्गुण (भजन) से जीवन में गुण-अवगुण को परिभाषित कर पाता हूँ। उन्हीं से सीखा है, “जब होवेगी उमर पूरी, तब टूटेगी हुकुम हुजूरी। उड़ जाएगा हंस अकेला।”

सौभाग्यशाली हूँ कि उन्हें देखने, सुनने और उनके साथ लम्बी-लम्बी बातचीत के साथ उनकी मित्र मंडली की गप्प सुनने का अवसर मिला है। याद है, जब महाराष्ट्र समाज में पहली बार सुना था, उन्हें। सत्तर के दशक में 1974-75 की बात होगी। ‘बाबा’ (कुमार जी को कई लोग इसी नाम से बुलाते थे) ने पहला आलाप लगाया और मैं हाल के बाहर। पर धीरे-धीरे फिर एक अभ्यस्त श्रोता ही नही बना, संगीत को सुनने-समझने की भी विधिवत शिक्षा ‘बाबा’ से मिली। देवास के छत्रपति गणेश मंडल के सभी सालाना उत्सवों में देश-विदेश के शीर्षस्थ कलाकारों को सुनना और अगले दिन सुबह उनके घर उनसे बातचीत और समझना, यह सब अपने आप में बड़ी पाठशाला थी, जो आज दुर्लभ है। 

इस पाठशाला के अनुभवों को कभी शब्दों में पिरोने की कोशिश करता, तो इस सारे को हरे पेन से राहुल (बारपुते) जी सुधारते और नईदुनिया में छापते थे। आज सोचता हूँ तो दुखी होता हूँ कि “कहाँ गए वो दिन”। आज कोई सम्पादक किसी नवोदित के साथ इतनी मेहनत भला करता है कि “पिता और पीता” लिखने-समझने में, उच्चारण या आवाज के उतार-चढ़ाव के साथ धैर्य रखते हुए यह अन्तर सिखाएँ। वरना, ‘अपुन सरकारी स्कूल से पढ़कर निकले थे और भाषा नि:सन्देह माशा-अल्लाह ही थी।’

बहरहाल, राहुल बारपुते, बाबा डीके, गुरुजी विष्णु चिंचालकर और कुमार जी की चौकड़ी से जीवन में जो सीखा, वो दुनिया का कोई स्कूल, विश्व-विद्यालय नही सिखा पाया, सिखा ही नहीं सकता।

कुमार जी को नमन।

यहाँ लेख के साथ ही, वीडियो में उनका गाया कबीर का निर्गुण भजन और नीचे उसके बोल। महसूस कर के देखें, एक-एक शब्द, एक-एक सुर, एक-एक बोल, जैसे हमारे मन की गाँठें खोलता चलेगा। 

‘उड़ जाएगा हंस अकेला 
जग दर्शन का मेला।। 

जइसे पांत गिरे तरुवर से
मिलना बहुत दुहेला।
न जानूँ, किधर गिरेगा
लग्या पवन का रेला।। 

जब होवे उमर पूरी
जब छूटेगी हुकुम हुज़ूरी। 
जम के दूत बड़े मज़बूत
जम से पड़ा झमेला।। 

दास कबीर हरख गुन गावे
बाहर को पार न पावे। 
गुरु की करनी गुरु जाएगा
चेले की करनी चेला।। 

उड़ जाएगा हंस अकेला
जग दर्शन का मेला।।
——–

(सन्दीप जी स्वतंत्र लेखक और पत्रकार हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

8 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

1 day ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago