समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
तेरी नज़र जब मुझे अपने से ज़ुदा करती है
मेरी नज़र तुझे भूलने की ख़ता करती है
न देखा, न समझा, न सुना ही है कभी तुम्हें
सिर्फ़ तेरी सिफत सुनकर मैंने लाग लगाई है
न सही तेरी किसी भी इनायत के काबिल मैं
पर लगी निभाने की सौगंध नहीं क्या तुम्हारी है
क्या छोर से पहले नहीं हो सकता ऐसा कभी, किसी दिन
न तेरी नजर जुदा करे मुझे, न मैं तुझे भूलने की खता करूं…
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इस कविता को ‘डायरीवाणी’ पर सुनिए…
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(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)
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