प्रतीकात्मक तस्वीर
टीम डायरी
कला, साहित्य, संगीत, आदि के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को समाज में सम्मान की निग़ाह से देखा जाता है। क्यों? क्योंकि वे बरसों-बरस की साधना के बाद इन क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाते हैं। नाम और शोहरत अर्जित करते हैं। अपनी विधा से वे सामान्य जनों का सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं करते, बल्कि जब-तब समाज को नई दिशा देने की भी कोशिश करते हैं। यह प्रतिष्ठा आम तौर पर राजनेताओं को नहीं प्राप्त होती। भले वे चुनाव जीत जाते हों, चुनावों में जीतकर सरकारों में बड़े पदों पर बैठ जाते हों, लेकिन उनके प्रति जनभावनाओं में हमेशा सन्देह घुला रहता है।
हो सकता है, यही कारण हो कि राजनेता जब भी सरकार में पद सँभालते हैं, अपने से श्रेष्ठ लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। ताज़ा मिसाल कर्नाटक से आई है। वहाँ के उपमुख्यमंत्री हैं, डीके शिवकुमार। वह इसी शनिवार, एक मार्च को बेंगलुरू अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में गए थे। इस समारोह में फिल्म कलाकारों की उपस्थिति कम रही। यह देखकर वह बुरी तरह भड़क गए। उन्होंने खुलेआम कलाकारों को चेतावनी दे डाली।
शिवकुमार ने कहा, “अगर सरकार फिल्मों की शूटिंग करने की अनुमति न दे, तो ये लोग (फिल्म कलाकार) फिल्में नहीं बना सकते। मैं यह भी जानता हूँ कि इन लोगों के नट-बोल्ट कहाँ से कैसे कसना है। इस बात को समझ लें तो अच्छा है। फिल्म समारोह कोई निजी आयोजन नहीं है। यह पूरे फिल्म उद्योग का कार्यक्रम है। फिर भी इसमें कुछ लोगों ने ही हिस्सा लिया। अगर अभिनेता, निर्माता-निर्देशक, फिल्म वितरक-प्रदर्शक ही रुचि नहीं लेते तो सरकार ऐसे समारोह करे ही क्यों? फिल्म जगत के लोग मेरी बात समझ लें। चाहे अपील समझें या चेतावनी।”
जानी-मानी अभिनेत्री रश्मिका मन्दाना भी समारोह में नहीं गईं थीं। इस पर अपने उपमुख्यमंत्री की देखा-देखी सत्ताधारी दल के विधायक रविकुमार गौड़ा तो इतने गुस्सा हो गए कि उन्होंने कह दिया, “वह कर्नाटक में पैदा हुईं और पली-बढ़ीं। कन्नड़ फिल्मों से ही उन्होंने फिल्म-यात्रा की शुरुआत की। उन्हें बुलाने के लिए हमारे एक विधायक उनके घर तक गए। इसके बावज़ूद वे नहीं आईं। अब ऐसे लोगों को सबक सिखाया जाना चाहिए या नहीं?”
हालाँकि इन बयानों के बाद शिवकुमार और उन्हीं जैसी भाषा बोलने वाले उनकी पार्टी के विधायकों की आलोचना होने लगी है। जैसे- कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आर अशोक ने कहा, “कलाकार किसी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं हैं। उपमुख्यमंत्री उनके साथ वैसा व्यवहार नहीं कर सकते, जैसा वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ करते हैं। उनके साथ सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।” इसी तरह रश्मिका मन्दाना की ओर से कहा गया, “मेरे बारे में ग़लत धारणा बनाने के लिए झूठी बात कही जा रही है। जबकि मेरे कार्यक्रम पहले से ही तय थे।”
यहाँ एक बात और। डीके शिवकुमार के बारे में कहा जा रहा है कि वे जल्दी ही राज्य के मौज़ूदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की जगह सरकार के मुखिया बन सकते हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने बाक़ायदा ऐलान किया है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता। बताया जाता है कि शिवकुमार को राज्य सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद मुख्यमंत्री बनाने का वादा उनकी पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्त्व ने किया है। दिसम्बर-2025 में मौज़ूदा सिद्धारमैया सरकार के ढाई साल पूरे हो रहे हैं। शिवकुमार अभी अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।
अलबत्ता, सोचने-समझने की बात अधिक यह नहीं है कि शिवकुमार मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं? बनेंगे तो कब बनेंगे, कब नहीं? बल्कि विचारणीय यह है कि उनके या उनकी तरह के अन्य नेताओं के हाथ में यदि अधिक ताक़त सौंपी गई। उन्हें सरकारोंं में बड़े-ऊँचे पदों पर पहुँचने का मौक़ा दिया गया, ताे वे आम जनता का, समाज का, समाज के सम्मानित वर्गों का भी, क्या हाल करेंगे? जागरूक नागरिक के नाते यह हम सबको सोचना है।
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