सुनिए…आप उनको “सुन-भर” लेंगे, तो वे “जी-भर जी” लेंगे

अनुज राज पाठक, दिल्ली से

“सर क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?” ऐसा सुनने के बाद मेरे लिए “हाँ” कहना बड़ा ही कठिन होता। फिर भी बहुत आत्मविश्वास से मैं कहता हूँ, “हाँ ज़रूर, बताइए, ज़रूर आप की मदद करूँगा।” 

अक्सर मेरे पास ऐसी सहायता के लिए फोन आते हैं। “मनोदर्पण कॉल सेंटर” मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एनसीईआरटी द्वारा चलाए जाने वाले मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक सहयोग हेतु स्थापित किया गया है। वहाँ से फॉरवर्डेड कॉल्स होती हैं ये। वहाँ मेरा नंबर भी काउंसलर के तौर पर उपलब्ध है।

दुर्भाग्य से कई बार इन कॉल्स पर कोई सहायता नहीं हो पाती। क्योंकि सहायता चाहने वाला अपनी पहचान छुपी होने पर भी अपनी बात रखने में बहुत ज्यादा संकोच महसूस करता है। इतना संकोच महसूस करता है कि वह बस “मदद कर सकते हैं”, इससे आगे भी नहीं कह पाता। और मैं सोचता रह जाता हूँ कि न जाने कितनी मानसिक पीड़ा में होगा। उसके पास इतना साहस भी नहीं बचा कि एक जोर सी आवाज़ मदद के लिए उठा सके।

उसको आख़िर चाहिए ही क्या? बस, छोटी सी मदद कि कोई उसे “सुन” भर ले। उसका “मन” अपनी बात “कह” भर ले। उसका दिल बस “हल्का” हो जाए। इस सबके बदले में उसे चाहिए क्या? बस, “एक गहरी साँस”। ऐसी साँस, जैसी कि तेज दौड़कर आने के बाद हम फेफड़ों में भरने की कोशिश किया करते हैं। इस एक गहरी साँस लेने के लिए उसे क्या-क्या जतन करने पड़ते हैं। लेकिन वे भी कम पड़ जाते हैं। जतन करते करते उसकी साँस ही उखड़ जाती है।

और मेरी भी! हाँ, मेरी भी साँस उखड़ जाती है, जब देखता हूँ ऐसे तमाम लोगों को, जो उखड़ी साँस लिए मेरे चारों तरफ़ घूमते रहते हैं। मुझे याद है उस “बच्ची की आँखों के आँसू” जब वह क्लास में पूछती है, “सर क्या डिप्रेशन हँसते-खेलते लोगों को भी होता है” और वह छुपकर आँसू बहा देती है। मेरा दिल भर आया। उसे मैं पिछले चार सालों से पढ़ा रहा था। उसको जानता था। कितनी हॅंसमुख, कितनी मिलनसार और कितनी मेहनती बच्ची। उस रोज़ वह किसी और के बहाने से न जाने कितना साहस बटोर पूछ पाई थी। और छुपकर रो पड़ी। ऐसे बच्चे हमारे आसपास ही हैं, जिनसे हमारा मिलना रोज होता है। फिर भी न वे कह पाते हैं, न हम सुन पाते हैं।

ऐसा ही एक दिन बहुत व्यस्तता भरा रहा, मैं देर शाम घर पहुँचा, तभी फोन बज उठा। देखा ‘मनोदर्पण’ वाली कॉल। मुझमें भी साहस नहीं था, लेकिन यह कॉल रिसीव करता ही हूँ… “हैलो, सर आप से बात करनी थी। सर, क्या आप मेरी मदद करेंगे?” इतना सुनने के बाद मैं आगे उसकी प्रतीक्षा करने लगा। कुछ कहेगा। कुछ बोलेगा। लेकिन मेरे कई बार “कहिए, बोलिए, क्या बात है। आप बोलो हम ज़रूर आपकी मदद करेंगे।” लेकिन यह क्या फोन कट चुका था। मेरी थकान गहरी हो चली। क्योंकि उखड़ती हुई सी साँस को एक गहरी सी साँस में तब्दील करने का में अवसर खो चुका था। इसलिए अपने आस-पास मिलिए, उन तमाम लोगों से जो हँसते-खेलते हुए दिखाई देते हों या न देते हों। लेकिन वे चाहते हैं, भले कह न पाते हों कि कोई उन्हें सुने।

तो सुनिए, उन्हें जो अपने घर में हैं। सुनिए, उनकी जो अपने पास हैं। सुनिए, उनकी जो आपसे बात करना चाहते हैं। क्योंकि आप उनको “सुन-भर” लेंगे, तो वे “जी-भर जी” लेंगे।

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

View Comments

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

ये कैसा साम्प्रदायिक सद्भाव कि कोई जानकर गाय की तस्वीर डाले, बकरीद की बधाई दे?

दोहरे चरित्र वाले लोग लोकतांत्रिक प्रणाली और अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसी सुविधाओं को किस तरह… Read More

7 minutes ago

आरसीबी हादसा : उनकी नज़र में हम सिर्फ़ ‘कीड़े-मकोड़े’, तो हमारे लिए वे ‘भगवान’ क्यों?

एक कामकाजी दिन में किसी जगह तीन लाख लोग कैसे इकट्‌ठे हो गए? इसका मतलब… Read More

2 days ago

आरसीबी के जश्न में 10 लोगों की मौत- ये कैसा उत्साह कि लोगों के मरने की भी परवा न रहे?

क्रिकेट की इण्डियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के फाइनल मुक़ाबले में मंगलवार, 3 जून को रॉयल… Read More

3 days ago

‘आज्ञा सम न सुसाहिब सेवा’ यानि बड़ों की आज्ञा मानना ही उनकी सबसे बड़ी सेवा है!

एक वैष्णव अथवा तो साधक की साधना का अनुशीलन -आरम्भ आनुगत्य से होता है, परिणति… Read More

5 days ago

फिल्मों में अक़्सर सेना और पुलिस के अफ़सर सिगरेट क्यों पीते रहते हैं?

अभी 31 मई को ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस’ मनाया गया। हर साल मनाया जाता है।… Read More

6 days ago

कभी-कभी व्यक्ति का सिर्फ़ नज़रिया देखकर भी उससे काम ले लेना चाहिए!

कभी-कभी व्यक्ति का सिर्फ़ नज़रिया देखकर भी उससे काम ले लेना चाहिए! यह मैं अपने… Read More

1 week ago