भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

आज, 10 अप्रैल को भगवान महावीर की जयन्ती मनाई गई। उनके सिद्धान्तों में से एक ‘अपरिग्रह’ का सिद्धान्त बहुत अहम है। इसका मतलब होता है किसी भी चीज, व्यक्ति, स्थान, आदि के प्रति अधिकार का भाव न रखना। उससे कोई आसक्ति न रखना। इस सिद्धान्त ने पूरी ज़िन्दगी मेरा मार्गदर्शन किया। मेरी बहुत मदद की। भला कैसे? 

जैसा कि पहले ही बताया कि यह सिद्धान्त किसी के साथ भी जुड़ाव-लगाव न रखने की भावना को प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार यह सादगीपूर्व जीवन को भी बढ़ावा देता है। इसका अर्थ क्या हुआ? यही कि हम-आप सामान्य जीवनचर्या में सब कुछ कर सकते हैं। पैसे कमाना, सुख-सुविधाएँ जुटाना, रिश्ते-नाते बनाना, सब कुछ। लेकिन उनके प्रति चूँकि कोई आसक्ति भाव नहीं रखते तो इसीलिए उनके मोह और उनकी माया में भी नहीं उलझते। सहज रहते हैं। 

मेरी यह बात किन्हीं सन्त के प्रवचन जैसी लग सकती है। लेकिन मेरा यक़ीन कीजिए कि अगर हम सभी प्रकार की चीजों से अनासक्ति रखते हुए अपना काम करते रहें, तो कई और बुराईयों से भी बच सकते हैं। जैसे- राजनीति, लालच, ईर्ष्या, और ऐसी ही व्यवहार सम्बन्धी अन्य बुराईयाँ। अब उदाहरण देखिए, मैं पेशेवर क्रिकेटर रहा हूँ। इस लिहाज़ से मेरे भीतर प्रतिस्पर्धा की भावना हमेशा रहती है। साथ ही लगातार बेहतर करने की भी। लेकिन इसके लिए मैं ओछे हथकंडे कभी नहीं अपनाता। हमेशा प्रतिभा और कौशल के आधार पर दूसरों से आगे निकलने की कोशिश करता हूँ। 

अपरिग्रह सिद्धान्त में निहित अनासक्ति भाव की वजह से ही व्यक्ति ख़ूब सारा पैसा कमाकर भी घमंड में चूर नहीं होता। उस पर  पैसे का, जीत का, सफलता का नशा भी नहीं छाता। इसी तरह, जब कभी पैसों का नुकसान हो जाए, हार जाए, किसी काम में विफल हो जाए, तब भी वह टूटता नहीं। कमजोर नहीं पड़ता, निराश नहीं होता। इस प्रकार, यह सिद्धान्त जीवन में हमेशा सन्तुलन बनाए रखता है। यह सब स्थिति मेरे साथ रही है। हर किसी के साथ रह सकती है। इसीलिए मेरा सुझाव है कि आज महावीर जयन्ती के अवसर पर हम सबको इस अपरिग्रह सिद्धान्त पर विचार करना चाहिए। इसे अपनाना चाहिए। और सिर्फ़ यही एक सिद्धान्त क्यों? भगवान महावीर के अन्य सिद्धान्तों को भी अपनाएँ। 

महावीर जयन्ती की सभी को शुभकामनाएँ!

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निकेश का मूल लेख 

One of the teachings of Lord 𝗠𝗮𝗵𝗮𝘃𝗶𝗿 is “𝗔𝗽𝗮𝗿𝗶𝗴𝗿𝗮𝗵𝗮” (अपरिग्रह ) which means 𝗻𝗼𝗻-𝗽𝗼𝘀𝘀𝗲𝘀𝘀𝗶𝘃𝗲𝗻𝗲𝘀𝘀 𝗼𝗿 𝗡𝗼𝗻-𝗮𝘁𝘁𝗮𝗰𝗵𝗺𝗲𝗻𝘁….

This principle has been a guiding torch of my life.. and it has helped in a big way.

How?

This teaching encourages 𝗱𝗲𝘁𝗮𝗰𝗵𝗺𝗲𝗻𝘁 from material possessions and worldly attachments and it helps in promoting 𝘀𝗶𝗺𝗽𝗹𝗶𝗰𝗶𝘁𝘆 and non-possessiveness.

You still do everything that others do, earn money, buy things and enjoy life in a usual way but because you are detached, you are not 𝗳𝗲𝘃𝗲𝗿𝗶𝘀𝗵 about such things or 𝗽𝗼𝘀𝘀𝗲𝘀𝘀𝗶𝗼𝗻𝘀.

I might sound like a Saint but trust me detachment keeps you away from 𝗽𝗼𝗹𝗶𝘁𝗶𝗰𝘀, 𝗴𝗿𝗲𝗲𝗱, 𝗷𝗲𝗮𝗹𝗼𝘂𝘀𝘆 and other negative behaviors/feelings.

I am as competitive as anyone can be (I am a cricketer) but I will always play fair and will try to win on merits.

Because of detachment, money (lots of it) does not make one very happy and at the same time lack of it does not make one sad!

It helps you keep your life in a good balance.

On the auspicious day of Mahavir Jayanti, I suggest we all introspect and see if we can adopt any of those teachings of Lord 𝗠𝗮𝗵𝗮𝘃𝗶𝗿!

Happy Mahavir Jayanti!

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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

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निकेश के पिछले 10 लेख

52 – “अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!”
51 – क्रिकेट में जुआ, हमने नहीं छुआ…क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश अच्छे से की!
50 – मेरी इतिहास की किताबों में ‘छावा’ (सम्भाजी महाराज) से जुड़ी कोई जानकारी क्यों नहीं थी?
49 – अमेरिका में कितने वेतन की उम्मीद करते हैं? 14,000 रुपए! हम गलतियों से ऐसे ही सीखते हैं!
48 – साल 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य क्या वाकई असम्भव है? या फिर कैसे सम्भव है?
47 – उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाने को कहा तो एआई ने सीधे हाथ वाले की बना दी!
46 – ‘ट्रम्प 20 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाते, तो हमारे बच्चे ‘भारतीय’ होते’!
45 – 70 या 90 नहीं, मैंने तो हफ़्ते में 100 घंटे भी काम किया, मगर उसका ‘हासिल’ क्या?
44 – भोपाल त्रासदी से कारोबारी सबक : नियमों का पालन सिर्फ़ खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए
43 – ध्याान रखिए, करियर और बच्चों के भविष्य का विकल्प है, माता-पिता का नहीं!

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