ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा, दिल्ली से
बचपन से कोई भी अच्छा या बुरा काम करने पर हमने अपने बड़ों से अक्सर सुना है कि इंसान जैसा बोता है, वेसा ही काटता है। प्रश्न ये है कि क्या हम अपने रोज़मर्रा के कामों में दुष्कर्म या सत्कर्म करते वक्त ये बात ध्यान रखते हैं? क्या हम ये सोचते हैं कि किसी का बुरा, चोरी, अत्याचार वगैरह करने का फल हमें या हमारे घरवालों को भुगतना होगा?
इसका जवाब है, ‘नहीं।’ इंसान अब इतना स्वार्थी होता जा रहा है कि उसे अपने फ़ायदे के आगे कुछ नजर नहीं आता। दया, पुण्य, दान, मदद जैसे भाव तो जैसे मृत्यु की चौखट पर खड़े हैं। किसी की मज़बूरी और लाचारी हमें एक ढोंगमात्र लगने लगी है। किसी की मदद करने के बजाय इंसान आज गरीबों और लावारिसों का मज़ाक बनाने में ज़्यादा यक़ीन रखता है।
हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। हमारी संस्कृति ने हमें सिखाया है, ‘दूसरे पर दया और मदद करना।’ संस्कृत भाषा का एक मशहूर श्लोक है, ‘मा कुरु धनजनयौवनगर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वं।’ ये श्लोक हमें बता रहा है कि मनुष्य अपने धन, जन और स्वास्थ्य पर घमंड न करे। वक्त का पाहिया किसी भी पल ये सब मनुष्य से छीन सकता है। व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर कर सकता है।
मुश्किल में दूसरे की मदद करना ही इंसान की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। दूसरे का साथ देने से ही कर्म हमारा साथ देंगे। आइए, मिलकर प्रण लें कि ज़रूरत पर हर क़रीबी, रिश्तेदार, ग़रीब, और ज़रूरतमन्द का साथ देंगे। ताकि दुनिया में इंसानियत बाकी रहे। इंसान और हैवान के बीच एक फ़र्क रहे। जो है, स्नेह का भाव।
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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
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सही बात है... जैसा कर्म वैसा फल...🙂
Be positive... Do positive...
अच्छे कर्म ही इंसान को बेहतर बनाते हैं ।...