ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
“डर के साए में, और मैं? साली, हरामजादी, मैं इस पूरे इलाके का बादशाह हूँ, बादशाह…, समझी तू!”
“अभी वक्त है, सँभल जा। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि हमारी जमीन हमारे पास रहे। हम उसकी देखभाल करना चाहते हैं। जबकि तुम सब इस जमीन को हड़पना चाहते हो। इसे लूटना, बरबाद करना चाहते हो। हमें हमेशा यहीं रहना है क्योंकि हम होरी के बच्चे हैं। और तुम लोग जितना हड़प सकोगे, उतना डकार कर यहाँ से चले जाओगे। लेकिन हम ये नहीं होने देंगे। इसलिए तेरे लिए बेहतर यही होगा कि अपने आदमियों को लेकर तू यहाँ से चला जा।”
“डायन मुझे आदेश दे रही है! सुना तुम लोगों ने!” मैडबुल ने तंज भरे लहजे में कहा। यह सुनकर अंबा के होंठों पर मुसकान तैर गई।
“इसमें हँसने वाली क्या बात है, चुड़ैल?”, उसकी दिलेरी देखकर एक बार मैडबुल भी हैरान रह गया।
“मुझे तेरी बेवकूफी और कमअक्ली पर हँसी आ रही है। तू जानता नहीं है कि तू भी अणु-परमाणुओं के मेल से ही बना हुआ है। पर धूर्त मेल-मिलाप से। और जिन हबीशियों से तू इतनी नफरता करता है न, उनमें और तुझमें कोई फर्क नहीं है। फिर भी तू इस दौर की ‘बादशाहत’ के लिए हाय-तौबा कर रहा है। तुझे पता नहीं है कि एक वक्त आएगा, जब तेरी ही कोशिकाएँ तेरे इस शरीर की मशीन को आदेश देंगी कि बस, अब काम बंद।” अंबा यह सब बोलना नहीं चाहती थी, लेकिन उसके भीतर उबलते जीवंत आक्रोश ने जैसे उसे उकसा दिया था।
“तेरी इतनी हिम्मत कि तू इनसे ऐसे बात करे?”, ऐसा कहते हुए वहीं खड़े पहरेदार ने उसे जोर से लात मारी। साथ ही रात को देख लेने की धमकी भी दी।
“अरे नहीं, नहीं, मत रोको इसे, बोलने दो। आखिर ये कॉलेज तक पढ़ी हुई है”, मैडबुल ने अपने आदमी को रोका।
“तो सुन। तेरी ये ताकत बेकार है क्योंकि जब तेरा वक्त पूरा होगा न, तो तू अपने ही शरीर के किसी एक हिस्से को भी काबू नहीं कर पाएगा। वहाँ से तेरे शरीर के बाकी हिस्सों को काम बंद करने का हुक्म मिलेगा और सब वही बात मानेंगे। तेरी नहीं सुनेंगे। तब, सब कुछ ठहर जाएगा। तो सोच कि तूने इतना जतन कर के ये जो ताकत जुटाई है, वह किस काम की? वैसे, मुझे ज्यादा हँसी इस बात पर आती है कि इंसान को यह सोचना चाहिए कि मौत क्या है? लेकिन नहीं। पर तू सोच कर देख फिर भी, कि मौत का दर्द क्या होता है। जब पूरा शरीर खोखला हो जाता है न, गल जाता है, और जब कोई अंग ऐसी भयंकर यातना सह रहा होता है कि लगता है, मौत आ जाए तो बेहतर, वह होता है मौत का दर्द! ध्यान रख, यह सब तेरे साथ होने वाला है, जब तू ऐसे ही मौत की भीख माँगेगा।”
अंबा के बोल ऐसे लग रहे थे, जैसे वह आने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी कर रही हो। साथ ही, मैडबुल और उसके लोगों को अभिशाप दे रही हो। उसका एक-एक शब्द रोजी मैडबुल के दिमाग में घर कर गया था शायद। तभी तो उस रात अंबा उसके सपने में आई। सपने में उसने उसके इंसानी खोल पर थूक दिया। इससे उसके जिस्म में एक लहर सी उठी और वह उस खोल से जिंदा बाहर निकल आया। बाहर निकले उस शख्स को अंबा ने आड़ा कर के अपने दोनों कंधों पर लाद लिया। फिर कुछ दूर ले जाकर उसे किसी दूसरे खोल में डालकर सिल दिया। वह खोल किसी भयानक जंगली जानवर का था। यह देखते ही मैडबुल हड़बड़ाकर नींद से उठ बैठा। उसकी साँसें तेज-तेज चल रही थीं। पसीने से लथपथ था वह। हालाँकि थोड़ी देर बाद ही उसे याद आया कि अंबा तो जेल में बंद है। तब कहीं उसने चैन की साँस ली। वह रात मैडबुल के लिए बहुत लंबी थी।
इधर, पहरेदार फिर अंबा की कोठरी में आ चुका था।
वह इस बार पहले से ज्यादा खूँख्वार लग रहा था। शराब भी पी रखी थी। आते ही उसने पहले अपने पैर से अंबा की छातियाँ टटोलीं। फिर खास जड़े हुए चमड़े के जूते की नोक से उन्हें धकियाया। इसके बाद उन्हें एड़ी तले जोर से दबा दिया। अंबा के मुँह से दर्दभरी आह निकल गई। नींद उसकी पहले ही टूट चुकी थी और अब पहरेदार लगातार अपने उपक्रम से उसे जागे रहने पर मजबूर कर रहा था।
“जो औरतें डायन होने का नाटक करती हैं, उनका यही हाल होता है। अपनी हैसियत याद रख, जो किसी छिनाल से ज्यादा नहीं है।”
पहरेदार ने अंबा की छातियों को पहले की तरह कुरेदते हुए कहा था। इससे वह भीतर तक काँप गई। वह उसके कामुक इरादों को भाँप चुकी थी।
“रहम करो भईया! भगवान के लिए, मुझे सोने दो”, उसने आर्त स्वर में पहरेदार से विनती की।
“चुप साली, कुतिया! मैं भाई-वाई नहीं हूँ तेरा”, पहरेदार अब पहले से ज्यादा सख्त हो गया था। वह अपने जूते से उसकी छातियों को एक तरह से मसलने ही लगा था।
वह पैर; किसी सवाल की तरह उसके शरीर में चुभ रहा था। बार-बार चोट कर रहा था। वह पैर; काश! वह उस पैर को काटकर अलग कर पाती। वह पैर उसकी नींद में लगातार खलल डाल रहा था। उस राक्षसी पैर के जूते की नोक ने उसकी जाँघों, कूल्हों और कंधों से खुरच-खुरच कर माँस नोच डाला था। मानो उस पैर को पता था कि जब भी वह थोड़ा सोने को हो, ठीक तभी उसे लौट आना है। फिर अपनी हरकतों से उसका दिमागी संतुलन बिगाड़ देना है। नींद में इस तरह खलल डाले जाने से अंबा को अब यूँ महसूस होने लगा था, जैसे कोई राक्षस उसे जिंदा निगले जाता हो। लगातार जागना अब उसके बूते से बाहर हो रहा था। इस कैद में समय बीत जाने के रास्ते में यही सबसे बड़ी रुकावट थी। वह पैर; अक्सर बीच-बीच में आ जाता था। कभी-कभी हाथ भी उसके साथ आते। वे उसके मुँह में ठूँसा हुआ कपड़ा हटाते और जबरन उसके हलक के नीचे पानी उड़ेल देते थे।
वह पैर, अब उसके लिए किसी भयानक राक्षस से कम नहीं था। वही जज था, जो उसका मुकद्दमा सुनकर वहीं उस पर फैसला दे रहा था। वही जल्लाद था, जो लगातार उसे मौत सरीखी सजा दे रहा था। वह पैर, अपने जूते की नोक से रगड़-रगड़ कर उसके जिस्म के तमाम नाजुक हिस्सों से माँस उधेड़ रहा था। वह पैर अब उसे भूख, बलात्कार और यहाँ तक कि मौत से भी ज्यादा भयावना लगने लगा था। बंदूक की गोली से ज्यादा ताकतवर…..। और अचानक उसकी तंद्रा टूट गई। किसी ने उसकी ओढ़नी खींच ली थी। फिर एक हाथ ने उसके हाथों को बंधनों से आजाद कर दिया। तभी, उसे पास ही, कुर्सी या स्टूल फर्श पर घसीटे जाने की आवाज सुनाई दी। किसी की साँसें उसकी साँसों से टकरा गईं। इससे उसके नथुनों में सुअर के जैसी गंध भर गई। ऐसा लगा, जैसे वह आदमी कई सालों तक बूचड़खाने में काम करने के बाद सीधे वहाँ आ गया हो।
“मैं सोना चाहती हूँ, भगवान के लिए मुझे सोने दो”, वह उस आदमी के सामने गिड़गिड़ाई।
“न, न। तू अच्छी तरह जानती है कि मैं तुझे सोने नहीं दे सकता”, पहरेदार ने घुड़की दी। “मुझे तेरे मुँह से सभी राज उगलवाने हैं। उनकी आखिरी जड़ तक पहुँचना है।”
“अच्छा बताओ, तो मैं क्या कुबूल कर लूँ।”
“ये ले! अगर मैं ही बता दूँ कि तुझे क्या कुबूल करना है तो ये कोई कुबूल करवाना हुआ भला? हुँह!”
इसके बाद कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई।
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
23- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुना है कि तू मौत से भी नहीं डरती डायन?
22- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अच्छा हो, अगर ये मरी न हो!
21- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह घंटों से टखने तक बर्फीले पानी में खड़ी थी, निर्वस्त्र!
20- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : उसे अब यातना दी जाएगी और हमें उसकी तकलीफ महसूस होगी
19- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : फिर उसने गला फाड़कर विलाप शुरू कर दिया!
18- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ऐसे बागी संगठन का नेतृत्त्व करना महिलाओं के लिए सही नहीं है
17- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सरकार ने उनकी प्राकृतिक संपदा पर दिन-दहाड़े डकैती डाली थी
16- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अहंकार से ढँकी आँखों को अक्सर सच्चाई नहीं दिखती
15- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ये किसी औरत की चीखें थीं, जो लगातार तेज हो रही थीं
14- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मैडबुल को ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ से सख्त नफरत थी!
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