जो मीडिया आपके मुद्दे नहीं उठाता, वह सिर्फ़ आपकी ग़फ़लत को बेचकर खीसे भर रहा है!

समीर पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश

यूँ तो मौत, मौत ही होती है, लेकिन परिवार, समाज और राष्ट्र पर उसका असर मुख़्तलिफ़ होता है। कभी कोई एक ही मौत पूरी क़ौम को झझकोर देती है। कभी भीषण नरसंहार भी कोई असर छोड़े बगैर इतिहास में दफ़न हो जाता है। इसलिए मौत पर सियासत भी हुआ करती है। मौत की कोई ख़बर हमें कैसे प्रभावित करती है या किसी की मौत को हम निजी और सामूहिक रूप से किस प्रकार अनुभव करते हैं, इसे मुख्यधारा में स्थापित नैरेटिव (कथा, कहानी) तय करता है। इसीलिए दुनिया भर में सरकारें, बहुराष्ट्रीय संगठन और कम्पनियों की ताक़त नैरेटिव पर नियंत्रण हासिल करने में लगी रहती है। मीडिया और तकनीक की ताक़त के पीछे की असली वजह यही है। ख़बरनुमा अफ़वाहें सरकारों को गिरा सकती हैं। सच को झूठ और झूठ को सच दिखाया जाता है। जब तक हक़ीक़त की गहराई से सच बाहर आता है तब तक वाइरल फ़रेब अपना काम कर हो चुका होता है।

मीडिया अपने लैंस किस मुद्दे पर फोकस करता है? किस पक्ष को कवर कर तवज़्ज़ो देता है, किसको वह छोड़ देता है? किन मामलें में वह पीड़ित और उसके परिजनों के हाथों में माइक देता है? किन मामले में वह आरोपी को पक्ष रखने का मौक़ा देता है? किस मामले में वह दूरबीन और किस मामले में वह सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग करता है – सारा नैरेटिव कुछ ऐसी प्रवंचनाओं से गढ़ा जाता है। इनकी बारीकियों को बेहद सतर्कता से गौर करने की ज़रूरत होती है। मसलन- आपका मीडिया बर्बर अपराधों में संलिप्त किसी अखलाक, पैलू खान या बुरहान वानी के घर जाकर उनके परिजनों पर मानवीय स्टोरी कर सकता है। लेकिन गोधरा या नूंह में बृज जलाभिषेक यात्रा पर किए गए दंगे फ़साद में प्राण खोने वाले बेक़सूर लोगों के घरों का रास्ता वही मीडिया भूल जाता है।

दरअस्ल, हमारी-आपकी सरपरस्ती में पनपने वाला मीडिया सच के साथ खिलवाड़ करता है। अपराधियों की पहचान छिपाने के लिए समुदाय-विशेष जैसे जुमले गढ़ता है। इसीलिए हमें, आपको उसके पीछे की समझ और गहरे व्यवसायिक हितों को समझना होगा। उसे इस ग़लती से उबारना होगा। मीडिया आपके मसाइल, परेशानियाँ और ख़ौफ़ को नज़रअंदाज़ करता है। आपको गाफ़िल (ग़फ़लत में) रखने के लिए राजनीतिक क़िरदारों की नूराकुश्ती, शोषण की जज़्बाती कहानियाँ या विचारधाराओं पर बेवजह की बहस-मुबाहिसा परोसता है। तब हम, आप उसे किसी पार्टी का विरोधी या पक्षधर मान लेते हैं। जबकि हक़ीक़त में वह हमारा, आपका शिकारी है। वह हमारी, आपकी ग़फ़लत बेचकर खीसे (जेब) भर रहा होता है।

सो, ऐसे मीडिया को सबक सिखाकर सही मार्ग पर लाना हमारे, आपके जीवन-मरण का सवाल होना चाहिए। अलबत्ता, अधर्म को बर्दाश्त कर लेने की शर्त पर भी अगर हम ज़िन्दा रहने के लिए तैयार हैं, तो फिर किसी परमात्मा की बात छोड़ दीजिए, सरकार, अफ़सरशाही, अदालत या मीडिया को दोष देने के लिए भी कोई वाज़िब वज़ह नहीं रह जाती। इसीलिए सोचिए। क्योंकि यहाँ बात स्वयं के द्वारा अपनी कीमत की है। उन आचार, मूल्य और आदर्शों की है, जिनकी एहमियत हम अपने योगक्षेम के लिए लगभग भूल चुके हैं।
——- 
(नोट: समीर #अपनीडिजिटलडायरी के साथ शुरुआत से जुड़े हुए हैं। लगातार डायरी के पन्नों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं और भोपाल में नौकरी करते हैं। पढ़ने-लिखने में स्वाभाविक रुचि है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

3 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

5 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

6 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

7 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

1 week ago