संगीत के विद्यार्थियों को मंज़िल की तलाश में नहीं रहना चाहिए, यात्रा का आनन्द लेना चाहिए!

चेतन जोशी, (देश के ख़्यात बाँसुरी वादक) दिल्ली से

संगीत सीखना प्रारम्भ करते हुए मन में स्वाभाविक ही प्रश्न उठता है कि यह यात्रा कब अपनी परिणति को पहुँचेगी। यह सहज मानव स्वभाव है कि जो कार्य अभी उसने प्रारम्भ भी नहीं किया, उसके अन्त के विषय में पहले ही जानकारी ले लेना चाहता है। औपचारिक विद्या ग्रहण करने से पहले भी ऐसे ही सवाल मन में उठते हैं, पर उनके सहज उत्तर भी उपलब्ध हैं। आपको स्नातक की डिग्री चाहिए तो तीन साल लगेंगे, यह कोई भी बता सकता है। आप अपने गन्तव्य तक लगभग कितने बजे तक पहुँच जाएँगे यह गूगल मैप पहले ही बता देता है। राम मन्दिर निर्माण शुरू करते ही पूरा होने की तिथि बहुत पहले से सभी को पता थी। अपने लक्ष्य कि प्राप्ति में कितना समय लगेगा, यदि यह पता रहे तो यात्रा आसान हो जाती है। परन्तु कला के क्षेत्र में हम इसे थोड़ा अलग ढंग से देखते हैं।

कुछ कला विधाओं में यात्रा का अन्त ही सुखद होता है, जैसे बिल्डिंग का बनना, चित्र या मूर्ति का पूर्ण होना इत्यादि। चित्र या मूर्ति बनाते समय कलाकार की स्केचिंग, आउटलाइन या छेनी हथौड़ी लेकर पत्थर को तराशने की यात्रा अधिक रुचिकर नहीं होती। कलाकार तो इस पूरी प्रक्रिया का आनन्द लेता है मगर इन क्षेत्रों में चल रही कला यात्रा में रसिकजन शामिल नहीं रहते। वे किनारे खड़े होकर उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं कि कब यात्रा पूरी हो। कलाकृति के पूरी होने के बाद ही उसका रसास्वादन किया जाता है। पूर्ण हुई कलाकृति को देखने के बाद उसकी तारीफ़ भी अलग तरीके से होती है। अगर चित्र बहुत अच्छा बना हो तो लोग कलाकार की प्रशंसा करते हुए कहेंगे कृपया अपना एक और चित्र दिखाइए। वे यह नहीं कहेंगे कि इसी चित्र को दुबारा से दिखाइए। इस क्षेत्र में “वन मोर” होता है, “वन्स मोर” नहीं।

जबकि, संगीत, नाटक, फिल्म इत्यादि कई कलाएँ इस मामले में थोड़ी अलग हैं। इन कला क्षेत्रों में रसिकजन कला-यात्रा में कलाकार के साथ-साथ ही चलते हैं। यात्रा के प्रारम्भ से ही पूरी यात्रा रससिक्त होती है। उदाहरण के लिए नाटक या फिल्म के पहले ही सीन से दर्शकों का जुड़ाव कलाकृति के साथ हो जाता है। शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम के प्रारम्भ में केवल तानपुरा बजते ही कलाकार के साथ लोग अपना भी षड्ज मिलाने लगते हैं। पूरे समय लोग चाहते हैं कि यह सुन्दर यात्रा जारी रहे। यात्रा समाप्त हो जाए तो लोग दुबारा उन क्षणों को जीना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि वही यात्रा फिर शुरू हो जाए और चलती ही रहे। यहाँ वे अपनी इच्छा का इजहार “वन्स मोर” के माध्यम से करते हैं।

इसीलिए संगीत विधा में बड़े से बड़े कलाकार को आप कला-यात्रा करते हुए ही पाएँगे। मैंने आज तक किसी संगीतकार को यह कहते हुए नहीं सुना कि उसने मंज़िल पा ली है। इसलिए संगीत के विद्यार्थियों को मंज़िल की तलाश में नहीं रहना चाहिए। उन्हें तो यात्रा का आनन्द लेते रहना चाहिए, जब तक ईश्वर साथ दें।

सो, संगीत के विद्यार्थियों के लिए सूत्र वाक्य होगा –

हर क्षण का आनन्द लें, इसके पहले कि वह इतिहास बन जाए।
(Enjoy every moments before they become memories)

‘विश्व संगीत दिवस’ की सभी संगीत-रसिकों, कलाकारों, विद्यार्थियों को बधाई, शुभकामनाएँ। 
—– 
(चेतन जोशी जी देश के जाने-माने बाँसुरी वादक हैं। संगीत दिवस पर उन्होंने यह लेख फेसबुक पोस्ट की शक़्ल में लिखा है। इसे उनकी पूर्व अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी के पन्नों पर दर्ज़ किया गया है।) 

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