प्रिय मुनिया, मेरी लाडो, आगे समाचार यह है कि…

दीपक गौतम, सतना, मध्य प्रदेश, 23/3/2022

प्रिय मुनिया, 

आज तुम्हें इस क़ायनात में कदम रखे हुए पूरे 3 दिन होने वाले हैं। 27 जनवरी की शाम 7.23 बजे तुमने इस खूबसूरत दुनिया में अपनी आँखें खोली हैं। ये वो दौर है जब सारी दुनिया बीते 2 सालों से कोविड महामारी से जूझ रही है। अब जब हालात 2 साल बाद धीरे-धीरे सुधर रहे हैं, तो तुम्हें तुम्हारी पैदाइश के वक्त दुनिया का हाल बताने के लिए ये पत्र लिखने का सिलसिला शुरू कर रहा हूँ। मैं बखूबी जानता हूँ कि तुम्हें ये पाती पढ़ने में अभी कुछ सालों का वक्त लगेगा। लेकिन मैं शब्दों के कारोबार में 15 साल रहा हूँ। इसलिए चाहता हूँ कि तुम जब भी पढ़ने लायक हो, मेरी लिखी कुछ चिट्ठियाँ तुम्हारे पास हों। इनमें मेरे शब्दों में लिपटी इस वक्त की इबारतें कुछ कतरनों की शक्ल में तुम्हारे पास होंगी। ये कोविड महामारी का दौर बड़ा ज़ालिम है। न जाने कितने अपनों को इसने अपनों से अनायास मौत बनकर छीन लिया है। कल क्या हो किसे पता? मैं नहीं चाहता कि मुझे जानने-समझने के लिए तुम्हें किसी का भी रुख करना पड़े। तुम मुझे इन लिखावटों से महसूस कर सको मेरी बस यही कोशिश है, क्योंकि मैं लिखकर ही अपने जज़्बात बयाँ कर सकता हूँ। 

प्रिय मुनिया, मेरी बच्ची, मैंने तुम्हारी माँ से अपने प्रेम का इज़हार भी लिखकर किया था। ज्यादातर कहना मेरे लिए लिखना ही होता है। इसलिए मैं बस शब्दों के सहारे ही झर सकता हूँ। कल भले ही तुम्हारा पिता अपने इश्क और आवारगी के लिए जाना जाए या फिर जीवन की नाकामी, कामयाबी, नफ़रत और प्रेम के लिए पहचाना जाए। तुमसे मेरा वजूद हमेशा जुड़ा रहेगा। इसलिए ये बेहतर है कि तुम हमारे बीच की डोर को मेरे लिखे से महसूस करो। 

प्रिय मुनिया, मेरी जान, एक बेटी का पिता होना कितना बड़ा स्वार्गिक अनुभव है। मैं इसकी अनुभूतियों को जाया नहीं जाने देना चाहता हूँ। मैं अपने अल्फाज़ों के सहारे तुम्हारे साथ गुजरे वक्त को उकेर लेना चाहता हूँ। तुम जीवन की वो सुखद स्मृति हो, जिसे मेरी रूह ने ताउम्र के लिए जज़्ब कर लिया है। आज 3 रातों के रतजगे के बाद भोर की पौ फटते ही तुम्हें ये पहली पाती लिखते हुए मुझे बड़ा हर्ष हो रहा है। तुम्हारे साथ गुजरा हर एक लम्हा इश्किया जिंदगी की ज़रदोज़ी शफ़क़ है। मेरी जान तुम्हारे इस धरा पर आने से पहले इस दुनिया का हाल कुछ और था। लेकिन कोविड महामारी ने दुनिया को किस कदर ठप कर दिया और अब क्या हाल हैं। ये सब मैं तुम्हें धीरे-धीरे बताऊंगा, क्योंकि अभी मैं गुजरे वक्त की काली रातों का फ़िजूल जिक्र करने के मूड में नहीं हूँ। अभी तुम्हारे आने की खुशी ने मुझे अपनी गिरफ़्त में ले रखा है। मैं अभी तुम्हारे स्पर्श से अपनी आत्मा की चिकित्सा कर रहा हूँ। 

प्रिय मुनिया, मेरी लाडो, आगे समाचार यह है कि अस्पताल के ये 3-4 दिन तुम्हारे लिए ठीक रहे हैं। तुमने अपनी माँ की छुअन 12 घंटे बाद महसूस की, क्योंकि तुम्हें पैदा करने के लिए उसने अपनी देह पर पहला चीरा सहा है। इसके पहले इतने वर्षों में तुम्हारी माँ ने सलाइन और अस्पताल को इतने करीब से कभी महसूस नहीं किया था। ठीक अभी जब तुम उसके आँचल में लिपटकर गहरी नींद में हो। तुम्हें ये नींद की झप्पी देने के लिए तुम्हारी माँ लगातार जागती रहती है। तुम्हें ये बता देना भी मुनासिब है कि तुमने गर्भ में रहकर ही महज चन्द दिनों में कोविड से जंग जीत ली थी। तुम्हारे जन्म के ठीक 20 दिन पहले लगभग हम सभी ने मिलकर कोविड का सामना किया है। तुम बहुत बहादुर हो मेरी प्रिंसिस। अपने शौर्य दादा की तरह तुम भी लिटिल फाइटर हो। 

प्रिय मुनिया, तुम्हारी माँ मेरे जीवन में सवेरा बनकर आई थी और तुम उसी सवेरे की वो गुनगुनी धूप हो, जिसे मैं देह में नहीं मेरी आत्मा में मल रहा हूँ। मेरी नन्हीं सी जादू की पुड़िया, तुमने आते की एक साथ ढेर सारी ज़िंन्दगियों को रौशन किया है। मैं विज्ञान की भाषा नहीं जानता और न ही ये कि तुम्हारे रोम-रोम को बनाने में हम माँ-बाप का क्या हाथ है? लेकिन एक बात दावे से कह सकता हूँ कि तुम्हारे जन्म के साथ-साथ हमारा भी नया जन्म हुआ है।   

प्रिय मुनिया, आज की पाती में बस इतना कहना चाहता हूँ कि अभागे होते हैं वो लोग जो बेटियों को गर्भ में ही मार देते हैं। बेटियाँ तो वो तारा हैं, जो आसमान में सदा चमकती रहती हैं। वो तो जन्म-जन्मान्तर की तपस्या का फल हैं, जो हर एक के लिए फलीभूत नहीं होती हैं। मैं तुम्हारा पिता होने के नाते बस इतना कह सकता हूँ कि जिसने अपनी माँ से प्रेम किया हो, उसकी छाती से चिपटकर आँचल का दूध पिया हो, उसे ही अपनी बेटी में माँ की छवि नज़र आ सकती है। वास्तव में वही तो अपने पुत्र को तारने चली आती हैं। क्योंकि वो तो मातृशक्ति का स्वरूप हैं, सृजन का वरदान हैं और संहार का प्रतिबिम्ब भी हैं। बेटियाँ तो सौभाग्य की वर्षा हैं, जो बूँद-बूँद जीवन भर बरसती रहती हैं और अमरत्व की ओर ले जाती हैं।

मेरे लिए तो तुम ज़िन्दगी की शहद हो, जिसने सारी कड़वाहटों को अपनी मिठास से धो दिया है। इसलिए मैं तुम्हारी किलकारियों, रुलाई, हँसी और तुम्हारे हृदय में गूँज रही प्रेम चुप्पियों के लिये तैयार हूँ। तुम्हें ढेर सारा प्यार मुनिया।   

तुम्हारा पिता……..30/1/2022 
दीपक गौतम
——— 
(दीपक, स्वतंत्र पत्रकार हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस तथा लोकमत जैसे संस्थानों में मुख्यधारा की पत्रकारिता कर चुके हैं। इन दिनों अपने गाँव से ही स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। इन्होंने बेटी के लिए लिखा यह बेहद भावनात्मक पत्र के ई-मेल पर #अपनीडिजिटलडायरी तक भेजा है। यह 4 हिस्सों में है। यह उनमें से पहला है।) 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है

आज, 10 अप्रैल को भगवान महावीर की जयन्ती मनाई गई। उनके सिद्धान्तों में से एक… Read More

9 hours ago

बेटी के नाम आठवीं पाती : तुम्हें जीवन की पाठशाला का पहला कदम मुबारक हो बिटवा

प्रिय मुनिया मेरी जान, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूँ, जब तुमने पहली… Read More

1 day ago

अण्डमान में 60 हजार साल पुरानी ‘मानव-बस्ती’, वह भी मानवों से बिल्कुल दूर!…क्यों?

दुनियाभर में यह प्रश्न उठता रहता है कि कौन सी मानव सभ्यता कितनी पुरानी है?… Read More

3 days ago

अपने गाँव को गाँव के प्रेमी का जवाब : मेरे प्यारे गाँव तुम मेरी रूह में धंसी हुई कील हो…!!

मेरे प्यारे गाँव तुमने मुझे हाल ही में प्रेम में भीगी और आत्मा को झंकृत… Read More

3 days ago

यदि जीव-जन्तु बोल सकते तो ‘मानवरूपी दानवों’ के विनाश की प्रार्थना करते!!

काश, मानव जाति का विकास न हुआ होता, तो कितना ही अच्छा होता। हम शिकार… Read More

5 days ago

ये नई उभरती कम्पनियाँ हैं, या दुकानें?…इस बारे में केन्द्रीय मंत्री की बात सुनने लायक है!

इस साल के जनवरी महीने की 15 तारीख़ तक के सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत… Read More

6 days ago