किसी की क्षमताओं को कम आँकना हमेशा ग़लत ही होता है!

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

दो भारतीय कम्पनियों की छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। लेकिन दोनों कहानियों का निष्कर्ष एक, ‘किसी की क्षमताओं को कम आँकना हमेशा ग़लत ही होता है।” 

पहली कहानी ज़ोमैटो की। यह भारतीय कम्पनी ऑनलाइन ऑर्डर लेकर तैयार भोजन की घर-घर आपूर्ति करती है। इस कम्पनी ने तीन साल पहले शेयर बाज़ार में प्रवेश किया। उस समय लोग लगातार इस कम्पनी, इसके प्रबन्धन और इसके संस्थापकों के बारे में ग़लत बातें लिख रहे थे। क्योंकि शेयर बाज़ार में प्रवेश करते ही इसके शेयरों की कीमत काफ़ी नीचे चली गई थी। तब लोगों ने इस कम्पनी के आईपीओ (इनीशियल पब्लिक ऑपरिंग यानि शेयर बाज़ार में उतरने के लिए शुरुआती सार्वजनिक प्रस्ताव) को घोटाला तक कह दिया था। लेकिन आज स्थिति क्या है? ज़ोमैटो के शेयर तीन साल के भीतर ही 109 प्रतिशत ऊपर चल रहे हैं। 

इसी तरह की दूसरी कहानी हल्दीराम चिप्स की। पैकेटबन्द आलूचिप्स बेचने के मामले 2016 तक भारतीय बाज़ार में अमेरिकी कम्पनी लेज़ का दबदबा था। उसकी बाज़ार हिस्सेदार 50 फ़ीसद तक थी। लेकिन अब लेज़ की हिस्सेदारी 30 फ़ीसदी से भी नीचे हो गई है। कैसे? हल्दीराम और बालाजी जैसी भारतीय कम्पनियों ने पैकेटबन्द चिप्स के बाज़ार में अपना हिस्सा बढ़ा लिया है।

हल्दीराम ने तो दो साल में ही सात प्रतिशत बाज़ार हिस्सेदारी अपने नाम कर ली है। जबकि हल्दीराम और बालाजी जैसी कम्पनियाँ इतनी तेजी से अपनी हिस्सेदारी बढ़ा पाएँगी, ऐसा कई लोगों को लगता नहीं था। क्योंकि अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी पेप्सीको के मालिकाने वाली लेज़ प्रचार-प्रसार और वितरण पर भारी रकम ख़र्च करती है। और आलूचिप्स के बाज़ार में प्रचार-प्रसार और वितरण ही सबसे बड़ी चुनौती है।      

इसके बावज़ूद हल्दीराम और बालाजी भारतीय बाज़ार में लेज़ को तगड़ी चुनौती दे रही हैं। यही नहीं, उनके आलूचिप्स जैसे कई उत्पाद गाँव-गाँव में अपनी पैठ बना चुके हैं। 

यानि इन दोनों कहानियों का सबक क्या? यही कि नकारात्मक बातें करने वाले लोग, हमारी क्षमताओं को कम आँकने वाले लोग हर जगह मिलेंगे। लेकिन उन पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं होती। हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखना होता है और अपने उत्पाद या सेवाओं को लगातार बेहतर बनाते जाना होता है। 

क्या सोचते हैं? 

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निकेश के मूल लेख

Zomato shares have given over 100% return in just about 3 years! 😎

I remember there were tons of people writing bad about the company, the management, and the founders post IPO when stock tanked below the offer price….

Some of them called the IPO an scam 🤔

Now, when stock is up109%, that too in just 3 years, there is no one talking about this 🤫 ??

What’s the moral of the story?

There will always be naysayers out there no matter what. We just need to focus on positive and keep adding value!

Ola Electric also is a similar story. Give it 2-3 years and this dust will also settle down.

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In 2016 Lay’s owned 50% of potato chips market in India but now it is reduced to just 30%.

How?

Indian companies like Haldiram and Balaji wafers have entered packaged snacks market and grabbing market share quickly.

Haldiram has acquired 7% of the potato chips market within just 2 years!!

Is this market big enough?

Yes, the potato chips market in India is $1.35B currently and growing at 9% annually.

Making potato chips is not a big deal but marketing and distribution is and that’s where Haldiram and Balaji are giving tough time to PepsiCo owned Lay’s despite PepsiCo spending huge money on advertising.

Haldiram chips have reached nook and cranny and available in small shops as well in villages – that’s all you need.

Never underestimate a marwadi or a bania 😁

They taught India how to do business!

Thoughts? 

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(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

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निकेश के पिछले 10 लेख

35 – इकोसिस्टम तब बनता है, जब एक सफल इकाई दूसरी को सफल बनाने में लग जाए!
34 – ये कहना झूठ है कि जहाँ लड़ाई हो रही है, काम वहीं हो रहा है!
33 – कर्मचारियों से काम लेते हुए थोड़ा लचीलापन तो हर कम्पनी को रखना चाहिए, बशर्ते…
32 – …तब तक ओलिम्पिक में भारत को पदक न मिलें तो शिकायत मत कीजिए!
31 – देखिए, कैसे अंग्रेजी ने मेरी तरक़्क़ी की रफ्तार धीमी कर दी !
30 – हिंडेनबर्ग रिपोर्ट क्यों भारत के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा हो सकती है?
29 – ‘देसी’ जियोसिनेमा क्या नेटफ्लिक्स, अमेजॉन, यूट्यूब, जैसे ‘विदेशी’ खिलाड़ियों पर भारी है?
28 – ओलिम्पिक में भारत को अमेरिका जितने पदक क्यों नहीं मिलते? ज़वाब ये रहा, पढ़िए!
27 – माइक्रोसॉफ्ट संकट में रूस-चीन ने दिखाया- पाबन्दी आत्मनिर्भरता की ओर ले जाती है
26 – विदेशी है तो बेहतर ही होगा, इस ‘ग़ुलाम सोच’ को जितनी जल्दी हो, बदल लीजिए!

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