संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से, 8/3/2021
सुबह उठो, अपने आपको च्यूँटी काटो
जागो, अपने उन दो पाँवों को निहारो जो आगे बढ़ते हैं सदैव
इन्हीं पाँवों पर तन – मन और आत्मा के साथ सपनों का बोझ डालो
अपने मुँह के भीतर जुबाँ घूमाओ और खुद का नाम पुकारो, जोर से
खिड़की खोलो, दरवाज़े को धक्का मारकर खोलो, रोशनी का स्वागत करो
आँखों को मलो और दीदें फाड़कर सूरज को घूरकर देखो
चूल्हे की आग को अपने आँचल में सामने रखो ताकि जलती हुई अग्निप्रभा सबको दिखाई दें, और फिर सबके सामने से सिर ऊँचा करके निकलो
पीछे सुनाई दे रहे शोर की उपेक्षा करो – हम लोग सिर्फ शोर ही कर सकते हैं और कुछ नहीं
बाहर निकलो, रोज यही करो, इसी तरह से हरेक दिन को सार्थक बनाओ
कभी किसी को ‘महिला दिवस की बधाई’ कहने का मौका मत दो
एक दिन होने, मनाने से बाकी सबको खारिज करता है समाज
ये सब जाल है, इनसे बचो
हर दिन तुम्हारा है, हर पल तुम्हारा है
अपने निर्णय खुद लो, सीखने-सिखाने से लेकर आने-जाने, खर्च करने और मनमर्जी से जीने के, नई गलियों में झाँकने के, गहरे कुओं में उतरने के, नदी- समुन्दर लाँघने के, पहाड़ से ऊँचा उठने के और आसमान पार जाने के
जब लगे उदासी, निराशा, संत्रास, उलझन या पछतावा – भोग्या होने का तो और जोर से च्यूँटी काटो – खुद को नही – उन सबको जो राह के रोड़े बन रहे है
इन सबको लताड़ते हुए निकल जाओ दूर, सबको पछाड़ते हुए – ऐसे में दिल नही, दिमाग नही, हौसले से काम लो, ऊँची उड़ान भरो – कोई नही रोक सकता तुम्हें – क्योकि तुम आजाद हो
सृष्टि दोनों से है – दोनों साथ निकले थे, दोनों ने संसार रचा था, दोनो ही घटक थे महत्वपूर्ण, फिर ऐसा क्या हुआ, किस छल-बल से करामात हुई कि तुम पीछे-पीछे और सबसे पीछे रह गई?
..पर अब सब भूलकर आगे-आगे और आगे जाना है, इतना आगे कि फिर दोनो बराबर हो जाएँ और कोई किसी को छल न सकें और इसके लिए ताक़त तुम्हे ही जुटाना होगी
कोई दिवस – महिला दिवस नहीं है – हर दिन तुम्हारा है
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(संदीप नाईक, स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी की टीम को प्रोत्साहन देने के लिए यहाँ नियमित लेखन से भी जुड़ रहे हैं।)
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