टेस्ला के संस्थापक एलन मस्क की भारतीय वेशभूषा में एआई से बनाई गई तस्वीर।
समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन ने जिस तेजी से ‘डीप स्टेट’ (जनतांत्रिक नीतियों में हेरफेर करने वाला संस्थागत परिवेश में कार्यरत सेवानिवृत्त नौकरशाह-सेनाधिकारी, गुप्तचर संगठन के कर्मचारी और उद्योग समूह के प्रतिनिधि आदि का नेटवर्क) के विखंडन का कार्यक्रम अपने हाथों में लिया है, उससे दुनिया एक नई दिशा में जाने को मजबूर हो गई है। इससे उस संगठित विश्व-व्यवस्था पर आघात हुआ है, जिसके किरदार दुनिया की तमाम अच्छी-बुरी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं। यह विश्व-व्यवस्था के बदलाव का क्षण है।
इससे पहले कि निवृत्तमान विश्व-व्यवस्था के आन्तरिक विरोधाभास और उसकी नीतियों के परिणाम अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अपने आगोश में ले डूबे, अमेरिका वर्तमान विश्व-व्यवस्था को ही बदल देना चाहता है। पुरानी विश्व-व्यवस्था में आकंठ डूबे और उससे लाभान्वित हो रहा तथाकथित अतिउदारवादी तबका इससे इत्तिफाक नहीं रखता। शायद इसीलिए अमेरिका के बदलावों से यूरोप में राजनीतिक दल अपने उन मूल्यों की प्रासंगिकता को बनाए रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं। यह वे कितने दिन कर पाएँगे यह आने वाला समय ही बताएगा क्योंकि जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरवी अमेरिका कर रहा है उसके मुख्यधारा में आते ही जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन सहित यूरोप के तमाम देशों में राइटविंग शक्तियों के लिए सत्ता का द्वार खोल देगा।
इसी तरह एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के देश भी बदली परिस्थितियों में खुद को ढालने के लिए अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थानीय परम्पराओं की ओर उन्मुख होंगे। यह स्थानीय लोकतांत्रिकरण यूरोप की श्वेत-ईसाई मूल्यों की कृत्रिम उदारवादी एकता को धराशायी कर के रख देगी। इसके साथ ही दुनिया में बड़े स्तर पर विऔपनिवेशीकरण का आगाज होगा। विऔपनिवेशीकरण के इस युग में सभी राष्ट्रों पर गहरी जिम्मेदारी भी डाल दी है कि वे सब निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र रहेंगे, लेकिन किसी को काेई अकारण कोई छूट या सहायता नहीं मिलेगी।
अमेरिका विश्व व्यवस्था और अर्थ तंत्र पर से अपना प्रभुत्व छोड़ देगा तो अन्य राष्ट्रों को मिलने वाली मदद, छूट भी नहीं मिलेंगी। हर राष्ट्र अपने लिए खुद जवाबदेह होगा। देखने वाली बात यह होगी कि श्वेत ईसाई प्रभुत्ववादी चर्च और उसके अन्धभक्त जो ट्रम्प के भी बड़े समर्थक हैं, बदली परिस्थितियों में अपने शिकंजे को बनाए रखने के लिए क्या करेंगे। हम जानते हैं कि मुस्लिम – यूरोपीय उपनिवेशवाद की जड़ें अब्राहिमी मतान्तरकारी मजहबों में निहित हैं। अतिउदारवादी वामपन्थी मुख्यधारा से दूर होने के बाद वे नए परिवेश में अपने मतान्तरण गतिविधियों के लिए ट्रम्प शासन में क्या रास्ते अख्तियार करेंगे। इन परिस्थितियों में ईसाई यूरोपीय और पड़ोसी इस्लामी अरब-अफ्रीकी देशों के बीच जो सांस्कृतिक और मजहबी विवाद गहराएँगे, वह यूरोपीय सभ्यता के लिए घातक सिद्ध होंगे। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस स्थिति में चीन और भारत की भूमिका निर्णयकारी होने जा रही है।
म्यूनिख में अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने यूरोपीय मूल्यों में व्याप्त धुर वामपन्थी अतिउदारवाद के जनतंत्र विरोधी पक्ष की आलोचना की। इस तरह यूरोपीय राष्ट्रों को जगाने के लिए जबरदस्त धक्का दिया है। लेकिन सबसे आधारभूत कार्य एलन मस्क अपनी युवाओं की टीम के साथ कर रहे हैं। वे अमेरिकी संस्थागत तंत्र और नैतिक मूल्यों में दीमक की तरह लगे भ्रष्टाचार के मामलों को एक-एक कर बेनकाब कर रहे हैं। मस्क का हर ट्वीट अमेरिकी नागरिकों के साथ ही दुनिया भर मेें उन संस्थानों पर का अन्धविश्वास को तोड़ रहा है।
शिक्षा तंत्र के माध्यम से अमेरिका और दुनिया में अनैतिक भोगवादी वोक कल्चर के खिलाफ भी बड़ी कार्रवाई की जा रही है। वे सभी लोग जो वर्तमान विश्व-व्यवस्था के सर्वेसर्वा होने से हर दोष और आलोचना से परे थे, आज अपनी प्रासंगिकता ढूँढ़ रहे हैं। एलन मस्क उस परिवर्तनकारी विचार के प्रतीक है जो डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के लिए चाहते हैं और जिसके लिए उन्हें अमेरिकी जनता ने चुना है। अमेरिकी बदलावों का नेतृत्व कर रहे डोनॉल्ड ट्रम्प ने जेडी वेंस, एलन मस्क, तुलसी गबार्ड और काश पटेल और विवेक रामास्वामी जैसे लोगों को चुनकर अपना निर्णय बता दिया है। वैसे, अगर इस पूरी टीम का भारत से सम्बन्ध यदि संयोग है, तो यह तथ्य भी कम रोचक नहीं।
अब मुद्दे की बात यह है कि अमेरिका ने जो बदलाव के कदम उठाए हैं, वहीं बदलाव उन सभी देशों में भी होंगे, जो अमेरिकी प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था से वैचारिक, संस्थागत और लोकतांत्रिक रूप से जुड़े हैं। वेंस-मस्क आदि जिस तरह अमेरिका में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, अकर्मण्यता और चरित्रहीनता को खत्म करने के लिए जुट हैं, उसी तरह भारत, फ्रांस, जर्मनी,आदि देशों को भी नई उभरती विश्व-व्यवस्था में ऐसे चरित्रों को नेतृत्व देना होगा जो भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता को खत्म करें। यही नहीं, अपने देश के नैतिक-सामाजिक-धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों के अनुरूप नीतियों का निर्धारण भी करें। सांस्कृतिक संक्रमण काल में यह नेतृत्व उन देशों के मूल्य, सभ्यता की आकांक्षाओं के अनुरूप काम करेंगे। उनके नैतिक और चारित्रिक नीतियाँ भी उनके अनुरूप रहेंगी।
तो ऐसे में अब स्वाभाविक है कि भारत को भी ‘अपने भारतीय एलन मस्क’ की जरूरत है। एक ऐसा चरित्र जो मस्क के समकक्ष हो। जो भारतीय संस्कृति के अनुरूप नीति, तंत्र और व्यवस्था निर्धारण में नेतृत्व दे। क्या भारत में है, ऐसा कोई व्यक्तित्व?
—-
(नोट : समीर #अपनीडिजिटलडायरी की स्थापना से ही साथ जुड़े सुधी-सदस्यों में से एक हैं। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि हैं। विशेष रूप से धर्म-कर्म और वैश्विक मामलों पर वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं। समीर ने सनातन धर्म, संस्कृति, परम्परा पर हाल ही में डायरी पर सात कड़ियों की अपनी पहली श्रृंखला भी लिखी है।)
यह वीडियो मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का है। देखिए गौर से, और सोचिए। शहर… Read More
रास्ता चलते हुए भी अक्सर बड़े काम की बातें सीखने को मिल जाया करती हैं।… Read More
मध्य प्रदेश में इन्दौर से यही कोई 35-40 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर है… Read More
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भारी हिंसा हो गई। संसद से 4 अप्रैल को वक्फ… Read More
भारतीय रेल का नारा है, ‘राष्ट्र की जीवन रेखा’। लेकिन इस जीवन रेखा पर अक्सर… Read More
आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा, शनिवार, 12 अप्रैल को श्रीरामभक्त हनुमानजी का जन्मोत्सव मनाया गया। इस… Read More