जयन्ती : गुरु गोलवलकर मानते थे- केवल हिन्दू ही पन्थनिरपेक्ष हो सकता है!

अनुज राज पाठक, दिल्ली

बात साल 1973 की है, राँची की। कार्यकर्ताओं के मध्य बैठक में अपने भाषण में श्री गुरुजी अर्थात् मा. गोलवलकर जी ने अपने भाषण में मातृभूमि के प्रति उत्कट भक्ति का उदाहरण देते हुए बताया कि पुडुचेरी में स्थित अरविन्द आश्रम की एक दीवार पर अखंड भारत का चित्र अंकित है। एक बार जब उस आश्रम के प्रतिनिधि केन्द्र सरकार से अनुदान माँगने हेतु गए तो सरकार के प्रतिनिधि ने आश्रम के प्रतिनिधियों के समक्ष दो शर्तें रखीं। पहली- यह कि आश्रम में अखंड भारत का जो चित्र लगा है, उसकी जगह आधुनिक राजनैतिक भारत का चित्र लगा दिया जाए। दूसरी शर्त- महर्षि के ग्रन्थों में जहाँ-जहाँ हिन्दू धर्म, हिन्दू राष्ट्र, सनातन धर्म जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है, उन्हें हटा दिया जाए। स्वाभाविक तौर पर आश्रम के प्रतिनिधियों ने ये दोनों शर्तें अस्वीकार कर दी। उन्होंने बताया कि संघ भी भारतीय नागरिकों में ऐसी ही उत्कट देशभक्ति के प्रसार में योगदान दे रहा है। जब से संघ की स्थापना हुई, तभी से।

संघ मातृभूमि की आराधना में निरन्तर अपनी ऊर्जा लगाए हुए है। इसे संघ की प्रार्थना में भी देख सकते हैं। वैसे, यह वर्ष संघ का जन्मशताब्दी वर्ष है। संघ ने अपने 100 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। और इन 100 वर्षों के अन्तराल में हुए संघ प्रमुखों में द्वितीय संघ प्रमुख गुरुजी अर्थात् माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी की आज जयन्ती है। गुरुजी संघ में सबसे अधिक समय तक प्रमुख के तौर पर कार्यरत रहे। जिस विचार वृक्ष का रोपण हेडगेवार जी ने किया, उसको वट वृक्ष के रूप में श्री गुरुजी ने पुष्पित-पल्लवित किया। उसी का परिणाम है कि आज संघ दृढ़ता से राष्ट्र निर्माण में अपनी महती भूमिका निभा रहा है। संघ पर जब-तब हिन्दुओं को लामबन्द करने के आरोप लगते रहे हैं। सरकारों की ओर से प्रतिबन्ध भी लगते रहे। लेकिन संघ ने राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह नहीं छोड़ा क्योंकि संघ मातृभूमि के प्रति श्रद्धा व भक्ति को राष्ट्रजीवन का आधार मानता है।

यह श्रद्धा और भक्ति तभी सम्भव है, जब मातृभूमि को कंकड़-पत्थर न मानकर उसे चेतनामयी माता के रूप में स्वीकार किया जाए। संघ ने हमेशा उसी भाव के साथ समाज में एकात्मकता, चारित्रिक सम्पन्नता और शुद्ध राष्ट्रप्रेम के भावों को अनुशासन के माध्यम से जागृत करने का प्रयास किया है। कोई भी समाज इन भावों के बिना नष्ट हो जाता है। हिन्दू समाज में आए शैथिल्य को दूर करने हेतु संघ ने हिन्दू को एकत्र करने के प्रयास किए। जिसे विविध लोगों ने अपने विरोध के तौर पर देखा। लेकिन इस बाबत श्री गुरु जी बेंगलुरु की एक जनसभा में कहते हैं, “संघ का कार्य अपने हिन्दू समाज का एकात्मकता युक्त संगठित जीवन खड़ा करने के एकमेव लक्ष्य को सामने रखकर प्रारम्भ हुआ है।” 

किसी भी समाज के महान् व्यक्तित्त्व अपने समाज को एकत्र करने साथ-साथ उसे वैभव सम्पन्न करने का कार्य भी करते हैं। इसी तरह गुरुजी भी सैकड़ों वर्षों से परतंत्र रहे समाज को पुनर्जागृत करने हेतु प्रयास करते रहे। बहुत व्यक्ति उन पर अतिवादी हिन्दू होने का आरोप लगाते रहे। इस  पर एक उत्तर स्वयं उन्हीं के शब्दों में जानना उचित होगा। एक बार त्रिवेन्द्रम में किसी कार्यक्रम के दौरान किसी सज्जन ने उनसे कहा, “मैं संघ से सम्बन्ध नहीं रखता, क्योंकि मैं धर्मनिरपेक्ष हूँ।” तब श्री गुरुजी ने कहा “केवल हिन्दू ही ऐसा कर सकता है। दूसरे लोग अधार्मिक हो सकते हैं। परन्तु पन्थनिरपेक्ष नहीं बन सकते। हिन्दू समाज बहुत उदार हृदय समाज है। सभी उपासना – मार्ग एक ही ईश्वर के पास पहुँचाते हैं, ऐसी उसकी धारणा है।”

इस कथन से समझा जा सकता है कि लोगों द्वारा लगाए गए आरोप कितने निरर्थक हैं। वास्तव में हिन्दू समाज अतिवादी नहीं, अपितु अपने मूल से जुड़ा है। उसे संगठित करने में संघ ने अपना अप्रतिम योगदान दिया है। यह एकत्रीकरण बहुत से लोगों के लिए समस्या है। भारतीय समाज उदार नहीं होता, तो यह समाज विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा दमित नहीं होता। हिन्दू समाज ने हमेशा सभी का स्वागत किया और बदले में हिन्दू समाज को आघात मिले। संघ ने इस समाज को फिर से अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य किया। श्री गुरु जी ने अपने समाज के उत्थान हेतु राष्ट्र निर्माण हेतु अपने जीवन को होम कर दिया। ऐसे राष्ट्रऋषि की जयन्ती पर उन्हें शत शत नमन।

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

हँसिए…,क्योंकि पश्चिम के मीडिया को लगता है कि मुग़लों से पहले भारत में कुछ था ही नहीं!

लगता है, पश्चिम का मीडिया चुनिन्दा चीज़ों को भूल जाने की बीमारी की शिकार है।… Read More

2 hours ago

बाबा साहेब से प्रेम और तिरंगे की मर्यादा…, सब दो दिन में ही भुला दिया!! क्यों भाई?

यह वीडियो मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का है। देखिए गौर से, और सोचिए। शहर… Read More

1 day ago

‘चिन्ताएँ और जूते दरवाज़े पर छोड़ दीजिए’, ऐसा लिखने का क्या मतलब है?

रास्ता चलते हुए भी अक्सर बड़े काम की बातें सीखने को मिल जाया करती हैं।… Read More

2 days ago

राजनैतिक दबाव में हँसकर माँगी माफ़ी से क्या ‘देवास की मर्यादा’ भंग करने का पाप कटेगा?

मध्य प्रदेश में इन्दौर से यही कोई 35-40 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर है… Read More

3 days ago

“संविधान से पहले शरीयत”…,वक़्फ़ कानून के ख़िलाफ़ जारी फ़साद-प्रदर्शनों का मूल कारण!!

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भारी हिंसा हो गई। संसद से 4 अप्रैल को वक्फ… Read More

4 days ago

भारतीय रेल -‘राष्ट्र की जीवनरेखा’, इस पर चूहे-तिलचट्‌टे दौड़ते हैं…फ्रांसीसी युवा का अनुभव!

भारतीय रेल का नारा है, ‘राष्ट्र की जीवन रेखा’। लेकिन इस जीवन रेखा पर अक्सर… Read More

5 days ago