प्रतीकात्मक तस्वीर
नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
बहुत मधुर राग है। राग झिंझोटी। खमाज थाट के अन्तर्गत इसे वर्गीकृत किया गया है। रात के दूसरे पहर (नौ से 12 बजे के बीच) इसे गाना-बजाना अधिक उपयुक्त माना जाता है। इस राग में श्रृंगार रस की प्रधानता कही जाती है।
कई मशहूर फिल्मी गीतों की धुनें इस राग को आधार बनाकर रची गई हैं। मसलन- ‘तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है’ (फिल्म – चिराग, 1969)। एक अन्य – ‘कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा’ (फिल्म – झुमरू, 1961)।
गुरु श्री हिमांशु नन्दाजी के मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से प्रशिक्षु बाँसुरी वादक नीलेश द्विवेदी ने यह राग थोड़ा बजाने की कोशिश की है। ग़लतियाँ होंगी। पर बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं न, कोशिश करते रहनी चाहिए फिर भी। सो वही जारी है।
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