प्रतीकात्मक तस्वीर
टीम डायरी
श्रीराम और श्रीकृष्ण की कहानी इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है। घर-घर में रामायण, रामचरित मानस, गीता और महाभारत की कहानियाँ पढ़ी-सुनी जाती हैं। पर अफ़सोस कि इस देश को चलाने का दम भरने वाले नेता इन कहानियों से वाक़िफ़ नहीं लगते। वह भी ऐसे नेता, जो ख़ुद को देश के प्रधानमंत्री का सबसे प्रबल प्रतिद्वंद्वी बताते हैं। अपने अधिक पढ़े-लिखे होने का दम्भ कभी भी जता दिया करते हैं। अकादमिक तौर पर पढ़े-लिखे हैं भी क्योंकि ‘नेतागिरी’ से पहले वह भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं।
दिल्ली के उन ‘बड़े नेताजी’ का पहला वीडियो देखिए, नीचे दिया गया है। इसमें वह कह रहे हैं कि माता “सीता का हरण करने के लिए रावण सोने का हिरण बनकर आया था… माता सीता ने उस सोने के हिरण की माँग लक्ष्मण से की थी।” यही नहीं, तथ्यात्मक रूप से तो ग़लती की ही उन्होंने, उनकी भाषा पर भी ग़ौर कीजिएगा। वह लक्ष्मणजी और माता सीता के बीच के संवाद को कैसे बोल रहे हैं। मानो वह दिल्ली के मोहल्ले में रहने वाले किसी परिवार के दो सदस्यों के बीच हुई बातचीत का ज़िक्र कर रहे हों।
इतने पर भी इन ‘नेताजी’ का मन नहीं भरा। ग़लती पर उन्होंने माफ़ी नहीं माँगी। ख़ेद नहीं जताया। बल्कि अगले दिन बाक़ायदा ख़बरनवीसों से बात करते हुए बिना संकोच या शर्म के अपनी ग़लती पर राजनीतिक रंग चढ़ाने की क़ोशिश की। इस बाबत दूसरा वीडियो देखा-सुना जा सकता है।
दु:खद बात यह कि ये ‘नेताजी’ अपने ‘ज्ञान’ और ‘राजनैतिक हुनर’ का इतना स्तरहीन प्रदर्शन तब कर रहे हैं, जब देश अंग्रेजी महीने की तारीख़ के हिसाब से आज, 22 जनवरी को अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण की पहली वर्षगाँठ मना रहा है। लेकिन ‘नेताजी’ को लगता है, यह तारीख़ भी याद नहीं रही। उन्हें याद रहा तो सिर्फ़ दिल्ली का चुनाव, जिसके होने में 14 दिन का समय (पाँच फरवरी को मतदान) बाकी है।
तो अब सवाल उठते हैं हम पर, देश के मतदाता पर कि हम ये कैसे नेताओं को अपना देश-प्रदेश चलाने की ज़िम्मेदारी सौंप रहे हैं? जिन्हें देश की मूलभूत संस्कृति का भी ज्ञान नहीं है? जाे ग़लती मानने के बज़ाय उस पर राजनीतिक मुलम्मा चढ़ाने की क़ोशिश करते हैं? क्या ऐसे नेताओं के भरोसे देश का सांस्कृतिक पुनर्जागरण होगा? क्या ऐसे नेता भारत को उसकी खोई हुई ‘विश्वगुरु की साख़’ वापस दिलाएँगे?
और याद रखिए, ऐसे नेता किसी एक पार्टी में ही नहीं है। देश में सरकार चलाने वाले से लेकर विपक्ष के हर राजनैतिक दल में ऐसे नेताओं की भरमार है। वे शीर्ष पदों पर, नेतृत्त्व में मोज़ूद हैं। उन्हें वहाँ तक हमने, देश के मतदाता ने पहुँचाया है। हम ही उन्हें वहाँ से हटा सकते हैं, हटाना चाहिए।
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