विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 3/3/2022
एंडरसन की गिरफ्तारी के बाद अमेरिका ने अपना री-प्रजेंटेशन दिया, उसे ही केंद्र ने दबाव समझ लिया। अमेरिकी सरकार की ओर से सीधे तौर पर किसी दबाव के सबूत भी नहीं हैं। न तो रीगन ने राजीव से बात की और न ही व्हाइट हाऊस प्रवक्ता ने अपने बयान में ऐसी कोई जानकारी दी। केवल अमेरिकी आग्रह के बाद यहां हर स्तर पर आंखें बंद करके फैसले होते चले गए। कहीं से भी यह आवाज नहीं उठी कि एंडरसन को छोड़ना गैरकानूनी है।… आइए विस्तार से समझें कि कौन किससे बंधा था, जुड़ा था, प्रभाव या दबाव में था और किन किरदारों ने एंडरसन को बाइज्जत जाने का मौका दिया।…
फ्रेम-दर-फ्रेम यह कहानी कुछ इस अंदाज में बयां हुई
एक : वारेन एंडरसन, चेयरमैन केशुब महिंद्रा, नॉन एक्जिक्यूटिव चेयरमैन विजय गोखले, मैनेजिंग डायरेक्टर: यूनियन कार्बाइड प्रबंधन की आपस में जुड़ी तीन अहम कड़ियां। एक साथ भोपाल आईं। इन पर न किसी का कोई दबाव था और न ही ये किसी के प्रभाव में थे। इनके कारण भोपाल में भले ही लाशों का ढेर लग गया हो, लेकिन गिरफ्तार होने के बावजूद ये तीनों वाशिंगटन से लेकर दिल्ली और भोपाल की सरकारों पर असर डालने में पूरी तरह सफल रहे, जैसा कि बाद की घटनाओं से साबित भी हुआ।
एंडरसन का मकसद भारत पर अमेरिकी दबाव और स्थानीय अधिकारियों पर प्रभाव डालने का था। इसकी पूरी तैयारी के साथ ही वह यहां आया कि मामले की जांच उसके हितों के मुताबिक हो। जरा तथ्यों को एक दूसरे से मिलाएं- व्हाइट हाऊस प्रवक्ता ने यह खुलासा किया कि एंडरसन मामले में दूतावास ने भारतीय अधिकारियों से बात की थी। दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के प्रभारी राजदूत गॉर्डन स्ट्रीब ने भी कहा कि सुरक्षा की गारंटी के बाद ही एंडरसन ने भोपाल जाने का फैसला लिया था। साफ है कि एंडरसन यहां किसी आरोपी की तरह आया ही नहीं था। स्ट्रीव ने ही आगे कहा था कि वह पीड़ितों के प्रति अपनी सदाशयता प्रकट करने व राहत और जांच में हाथ बटाने आया था। हुआ भी यही वह हमारी पूरी व्यवस्था को अपने प्रभाव में लेने में कामयाब रहा और सिर्फ छह घंटे में ही भोपाल से निकल गया।
…ध्यान देने योग्य है कि एंडरसन ने अमेरिका रवाना होने के पहले दिल्ली के साउथ ब्लाक में 20 मिनट गुजारे थे। यहीं प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री बैठते हैं। एंडरसन ने बाहर निकलकर मीडिया से कहा था-नो हाउसअरेस्ट, नो बेल, आई एम फ्री टू गो होम..। (कोई नजरबंदी नहीं, कोई जमानत नहीं, मैं घर जाने के लिए आजाद हूं।)
दो : जेम्स बेकर, अमेरिकी वाणिज्य दूत: मुंबई में अमेरिकी सरकार का यह प्रतिनिधि दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से जुड़ा था और एंडरसन के प्रभाव में था। एंडरसन का उसको साथ लाने का खास मकसद स्थानीय अधिकारियों पर दबाव डालना ही था। उसे मालूम नहीं था कि भोपाल में उसके तीनों साथी गिरफ्तार हो जाएंगे। …बेकर ने गिरफ्तारी के बाद चौंकने के अंदाज में कहा ऐसा कभी कहीं नहीं देखा। हम तो जांच और राहत में मदद करने आए थे और यह हो गया। उसके बयान से जाहिर है कि वे लोग तो मददगार की हैसियत से पधारे थे। इसलिए किसी किस्म का अपराध बोध उनमें था ही नहीं। उनके पास सुरक्षित वापसी की गारंटी भी थी, इसलिए भी वे गिरफ्तारी से चौंके थे।…वहां के अधिकारियों को भी एंडरसन की गिरफ्तारी पर आश्चर्य हुआ। मतलब गिरफ्तारी उनके ख्याल में भी नहीं थी। इधर, अचानक गिरफ्तारी पर बेकर ने तुरंत दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास को खबर दी थी। उसने भोपाल के अफसरों से अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से बात की। यहा से ही एंडरसन को छुड़ाने का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम शुरू हुआ।
तीन : गॉर्डन स्ट्रीब, दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में प्रभारी राजदूत (चार्ज डि अफेयर्स) : भारत में अमेरिकी सरकार के ये प्रतिनिधि, दिल्ली में विदेश सचिव एमके रसगोत्रा से जुड़े थे, अमेरिकी विदेश मंत्री से बंधे थे और एंडरसन के प्रभाव में थे। भोपाल से अमेरिकी वाणिज्य दूत के जरिए सूचना मिलने पर अमेरिका में विदेश सचिव को गिरफ्तारी की जानकारी दी। एंडरसन की सुरक्षित वापसी का वादा भारत सरकार ने इनसे ही किया था। इसलिए वह तुरंत वादाखिलाफी को लेकर दिल्ली में सक्रिय हुए। रसगोत्रा से संपर्क किया। रसगोत्रा उनके जरिए आए अमेरिकी री-प्रजेंटेशन को अमेरिकी दबाव मानकर आगे बढ़े। यहाँ से मामला अलग ट्रैक पर चला गया।
चार : महाराज कृष्ण रसगोत्रा, विदेश सचिव : एंडरसन की रिहाई के फैसले में दिल्ली के ये सबसे अहम किरदार हैं। भारत व अमेरिका के बीच ये एक प्रभावी कड़ी थे। तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास ही विदेश मंत्रालय था। रसगोत्रा उनसे बंधे थे और उनके करीबी थे। स्ट्रीब के बयान से स्पष्ट है कि सुरक्षित वापसी का वादा इन्होंने ही किया था। स्ट्रीब की वादाखिलाफी की शिकायत के बाद ये दबाव में आ गए और समझ लिया कि यह व्हाइट हाऊस का आदेश है। इन्होंने तुरंत तत्कालीन गृह मंत्री पीवी नरसिंहराव और केबिनेट सचिव सीआर कृष्णास्वामी राव से बात की।… हालांकि वे यह कहकर इस कहानी को नया मोड़ भी दे रहे हैं कि मुमकिन है कि रोनाल्ड रीगन ने राजीव गांधी बात की हो।
विदेश मंत्रालय के जानकार बताते हैं कि सुरक्षित वापसी की गारंटी विदेशमंत्री की अनुमति के बिना देना संभव नहीं है। लेकिन रसगोत्रा इस बात से परदा नहीं उठा रहे कि गारंटी किसने पर दी?…रसगोत्रा के मामले में एक और अहम बात है कि भोपाल से रिहाई के बाद अमेरिका जाने से पहले एंडरसन इनसे मिला था और गैस पीड़ितों के लिए बड़े राहत पैकेज देने का वादा करके गया था।
पांच : पीवी नरसिंहराव, गृहमंत्री : प्रधानमंत्री राजीव गांधी से बंधे रसगोत्रा ने बताया है कि एंडरसन को लेकर अमेरिका से आए संदेशों से उन्होंने राव को अवगत कराया और प्रधानमंत्री/विदेशमंत्री स्तर पर हुई बातचीत के बारे में बताया था। यानी प्रधानमंत्री का नाम सुनते ही एंडरसन के अनुकूल फैसले में यहां भी देर नहीं हुई। इसीलिए मध्यप्रदेश से भी अनुकूल राय ली गई कि एंडरसन को भोपाल में रखना उसकी सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं होगा। डीजीपी बीके मुखर्जी आज भी यही कह रहे हैं कि एंडरसन को यहां रखना तो दूर अगर गेस्ट हाऊस की जगह पुलिस स्टेशन भी जाया जाता तो नाराज भीड़ कुछ भी कर सकती थी।…हालांकि इसका जवाब मुखर्जी के पास भी नहीं है कि ऐसी हालत में एंडरसन को मध्यप्रदेश के ही किसी दूसरे शहर में क्यों नहीं रखा गया? इधर, नरसिंहराव के सुपुत्र रंगाराव कह रहे हैं कि सिर्फ मेरे पिता को जिम्मेदार बताना गलत है। कई अन्य मंत्री भी इसके लिए बराबर जिम्मेदार हैं। मेरे पिता तो जल्दबाजी में कोई फैसला लेते ही नहीं थे, बल्कि उनका स्वभाव फैसलों को लंबे समय तक टालने का था।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार…
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह!
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
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