बिहार की इस बेटी को एक कड़क सैल्यूट तो बनता है

टीम डायरी, 11/6/2021

उसने एक बँधी हुई छवि को तोड़ा है। जिस समुदाय में लड़कियों की शिक्षा ही विवाद का विषय हो जाया करता है, उसी समाज से निकलकर उसने पढ़-लिखकर ऊँचा मुकाम हासिल किया है। नाम- रज़िया सुल्ताना। बिहार की पहली मुस्लिम महिला उप-पुलिस अधीक्षक। 

उम्र अधिक नहीं है रज़िया की। अभी महज 27 साल की हैं। लेकिन उन्होंने इतनी कम उम्र में बिहार के इतिहास में अपना नाम दर्ज़ करा लिया है। क्योंकि उनसे पहले मुस्लिम समुदाय की कोई महिला, उप-पुलिस अधीक्षक जैसे पद पर पहुँची नहीं है। रज़िया बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए उन 40 प्रतिभागियों में शुमार हैं, जो उप-पुलिस अधीक्षक पद के लिए इस बार चयनित हुए हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए शुक्रवार, 11 जून को देशभर में उनका नाम सुर्ख़ियों में छाया रहा। बहुत सम्भव है, आगे भी छाया रहे। लेकिन उनकी उपलब्धियों की इबारत पर यहाँ पूर्ण विराम नहीं लगता। रज़िया सुल्ताना, बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा की ऐसी प्रतिभागी हैं, जिन्होंने पहली बार में सफलता पाई है। उन्होंने हिन्दीभाषी राज्य में अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा दी। उससे पहले उसकी तैयारी भी घर पर रहकर अपने आप से ही की। क्योंकि बिहार  की राजधानी पटना में अधिकांश या कहें कि लगभग सभी कोचिंग संस्थान हिन्दी माध्यम से ही परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं। 

वैसे, बिहार सरकार में यह उनकी पहली नौकरी नहीं है। वे 2017 में राज्य के बिजली विभाग में सहायक अभियन्ता (Assistant Engineer) के पद पर चुन ली गई थीं। तब से वहीं नौकरी कर रही हैं। राजस्थान के जोधपुर से उन्होंने विद्युत अभियांत्रिकी (Electrical Engineering) में स्नातक डिग्री ली हुई है। छह बहनों और एक भाई के बीच सबसे छोटी हैं। पिता मोहम्मद असलम अंसारी झारखंड के बोकारो में स्थित एक इस्पात संयंत्र में आशुलिपिक (Stenographer) थे। उन्होंने बच्चों को अच्छी तालीम दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन उनकी, ख़ास तौर पर सबसे छोटी बेटी रज़िया की उपलब्धि देखने के लिए वे रुक नहीं पाए। साल 2016 में ही उनकी साँसें ठहर गईं। हालांँकि रज़िया ठहरना नहीं चाहती। वे महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध करने वालों को ख़ास तौर पर सबक सिखाना चाहती हैं। अपने समाज की महिलाओं को पढ़ाई के लिए, जीवनस्तर बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हैं। उनकी मदद करना चाहती हैं। ऐसा उन्होंने मंसूबा बाँधा है। उम्मीद की जा सकती है कि वे अपने मंसूबे को अमलीज़ामा पहना सकेंगी। और अगली मर्तबा की सुर्ख़ियों में ऐसी ही किसी अच्छी वज़ह से मिसाल की तरह पेश आएँगी।

फिलहाल, उनके लिए, उनकी उपलब्धियों के लिए, उनके जज़्बे के लिए, उनसे आला मंसूबों के लिए एक कड़ सैल्यूट तो बनता ही है।

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