भारत की केंद्रीय विधायी परिषद में सबसे पहले कौन से तीन भारतीय नियुक्त हुए?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 1/10/2021

विद्रोह के बाद भारत की सरकार की कार्यशैली और उसकी सोच भी बदली थी। पहले यह यक़ीन हुआ करता था कि अंग्रेजों और भारतीय मध्यवर्ग के बीच कामकाजी समन्वय, सहयोग की स्थिति बन जाती है तो सुधार भी तेज हो सकते हैं। लेकिन बग़ावत ने इस यक़ीन का अंत कर दिया। अब उन कानूनों का स्वरूप भी बदला जाने वाला था, जो 1860-70 के दशक में बनाए गए थे। ये अब आक्रामक होने वाले थे। यह नई कार्यशैली पंजाब में लागू व्यवस्था से मिलती-जुलती थी। कठोर और हर चीज को अपनी बपौती मानने वाली। सरकार की कोशिश थी कि अब अधिक सक्षम, आधुनिक शासन-व्यवस्था लागू की जाए। इसे विशेषज्ञ संचालित करें, जो संहिताबद्ध नियम-कानून से लैस हों। 

जॉन लॉरेंस ने इस बारे में 1858 में लिखा था, “हमें यहाँ के लोगों ने सत्ता नहीं दी है। हम न ही उनके चुने हुए प्रतिनिधि हैं। हम यहाँ अपनी नैतिक श्रेष्ठता की वज़ह से हैं। परिस्थितियों के जोर पर और ईश्वर की इच्छा से हैं। सिर्फ़ इतने से ही भारत पर शासन करने के हमारे अधिकार की स्थापना हो जाती है। इसीलिए जितना हो सके, लोगों का भला करने के लिए हम अपनी चेतना से बँधे हैं, उनकी नहीं।” लॉरेंस 1864 से 1869 तक भारत के वायसराय रहे। वह एकाधिकार वाली सोच के इंसान थे। उन्होंने बंगाल में कार्यकारी परिषद के पुनर्गठन का भी विरोध किया था। यह परिषद 1854 में तत्कालीन वायसराय ने अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए भंग कर दी थी। परिषद के पुनर्गठन को लेकर लॉरेंस का विरोध इस विचार पर आधारित था कि सरकार का सबसे बेहतर स्वरूप वह होता है, जिसमें प्रशासक को अपने हिसाब से काम करने की इजाज़त हो। इसमें केंद्रीय प्राधिकरण के पास सर्वोच्च व निर्णायक शक्ति निहित होती है। उनका मानना था, “भारत में सशक्त केंद्रीय सत्ता की ज़रूरत है। वह स्थापित भी की जा सकती है। उसके लिए अन्य सभी सत्ता केंद्रों को ख़त्म कर देना चाहिए।” 

हालाँकि भारत में केंद्रीयकृत सत्ता के विचार का ब्रिटेन में विरोध था। इसीलिए जब कंपनी शासन का अंत हुआ और भारत सरकार का नियंत्रण ब्रिटेन के गृह मंत्री के हाथ में आया तो ‘काउंसिल ऑफ इंडिया’ बनाई गई। इसमें ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्य-मुख्य पूर्व निदेशकों और कर्मचारियों को सदस्य बनाया गया। गृह मंत्री को सभी फ़ैसलों पर इस परिषद के साथ सलाह-मशविरा करना होता था। इसके बाद वह भारत सरकार के लिए कोई दिशा-निर्देश जारी कर पाते थे। अलबत्ता, आपातकालीन स्थितियों में उन्हें छूट थी कि वे परिषद से मशविरे के बिना भी फ़ैसले कर सकते थे। ब्रिटिश संसद का भी भारत सरकार पर प्रभावी नियंत्रण था। भारत सरकार का सालाना बजट ब्रिटिश संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ कॉमंस’ में आता था। समय-समय पर विभिन्न रिपोर्टें भी वहाँ पेश की जाती थीं। 

ब्रिटिश संसद इस उम्मीद में भी थी कि भारत की विधायी परिषद अपनी अहम भूमिका अदा करे। सरकार द्वारा लाए गए कानूनों पर चर्चा के लिए ‘सार्वजनिक मंच’ की तरह काम करे। डलहौजी ने केंद्रीय विधान सभा के रूप में प्रतिनिधित्व आधारित संस्थान की संभावनाएँ पहले ही देख ली थीँ। लेकिन जब 1861 में भारतीय परिषद अधिनियम पारित हुआ तो ऐसी हर संभावना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। इस कानून के जरिए भारतीय और यूरोपीय समुदाय के ‘ग़ैर-अधिकारी’ वर्ग के सदस्यों को विधायी परिषद में जगह दी गई। नामित सदस्य के रूप में। लेकिन उन्हें सिर्फ़ सलाह-मशविरा देने का ही अधिकार दिया गया। इस तरह तानाशाही पर बहस-चर्चाओं के जरिए संतुलन साधने की कोशिश ज़रूर की गई मग़र उस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं लगाया गया। यह ऐसी कार्रवाई थी, जिसमें एक राजनीतिक विचार की झलक थी। साथ में यह सोच भी कि जो लोग विद्रोह (1857) के समय अंग्रेजों के वफ़ादार रहे, उन्हें कुछ इनाम दिया जाए। लिहाज़ा, केंद्रीय विधायी परिषद में जो शुरुआती तीन भारतीय मनोनीत किए गए, उनमें पटियाला के राजा नरेंदर सिंह का नाम सबसे ऊपर था। उन्होंने विद्रोह दबाने के लिए अंग्रेजों को सैन्य मदद दी थी। दूसरे- ग्वालियर के दीवान (प्रधानमंत्री) राजा दिनकर राव रघुनाथ थे। तीसरे- बनारस के राजा ईश्वरी प्रसाद नारायण (देवनारायण) सिंह थे। इस तरह 1892 के प्रशासनिक सुधारों तक अधिकांश भारतीयों को अपनी या पिता की वफादारी के इनाम के रूप में विधायी परिषद की सदस्यता मिली। 

हालाँकि विधायी परिषद की मौजूदगी ने सरकार के कामकाज़ पर ख़ास असर नहीं डाला। वह पहले की तरह ही काम करती रही। इसलिए यह प्रश्न अब भी एक तरह से बना ही हुआ था कि भारत में कैसी सरकार हो? कानून के शासन वाली या निजी कार्य-स्वतंत्रता वाली? इस बाबत सर जेम्स फिट्ज़जेम्स स्टीफन ने नई व्याख्या दी। वे 1869 से 1872 तक केंद्रीय विधायी परिषद में कानून के जानकार सदस्य थे। उनका तर्क था कि आधुनिक “राज्य बेहद सक्षम और उच्च स्तर के समन्वयपूर्ण संगठन जैसा होना चाहिए। उसके नियम-कानून सटीक हों। वह व्यक्तिगत सनक आदि से मुक्त हो। उसकी कार्यपालिक शाखा अनावश्यक नियम-कानूनों के बोझ, उनकी कठोरता से त्रस्त न हो। फौजदारी (आपराधिक) कानून से संबंधित शासन कार्यपालिका के हाथ में हो। यानि जो लोग शासन कर रहे हैं, दंड देने का अधिकार भी उन्हीं के पास हो। वहीं, दीवानी (सामान्य नागरिक विवाद आदि) मामले न्यायपालिका के पास रहें।”

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
45. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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