निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश सरकार भोपाल के यूनियन कार्बाइड परिसर का जहरीला रासायनिक कचरा ठिकाने लगाने की प्रक्रिया में है। इसके लिए कचरे को भोपाल से इन्दौर के पीथमपुर भेज दिया गया है। वहाँ इसे वैज्ञानिक तरीके से जलाया जाएगा। तो क्या इसके बाद 40 साल पुरानी त्रासदी का अध्याय समाप्त हो जाएगा? मुझे सन्देह है।
सन्देह इसलिए है क्योंकि भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित आज भी कष्ट झेल रहे हैं। वास्तव में, पिछले महीने मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला भी हूँ, जिनकी आँखें जहरीली गैस के प्रभाव से ख़राब हो चुकी हैं। वे बुजु़र्ग अभी लगभग 80 बरस के होंगे। ऐसे और भी तमाम लोग हैं, जिनके लिए यह अध्याय कभी समाप्त नहीं हो सकता।
तो सवाल ये कि यह स्थिति पैदा किसने की? ज़ाहिर है, यूनियन कार्बाइड के प्रबन्धन और गैस त्रासदी के वक़्त प्रदेश तथा देश में रही सरकारों ने। वरना, दुनिया की इतनी भीषण त्रासदी होती ही क्यों? त्रासदी के बाद कंपनी के अफ़सरों और प्रबन्धन को यूँ ही जाने कैसे दिया जाता? वह भी बिना एक पैसे का हर्ज़ाना दिए!
तो अब अगला सवाल कि क्या देश ऐसी त्रासदियों से आज बेहतर तरीक़े से निपट सकता है? और क्या देश में संचालित कम्पनियों ने ऐसी दुर्घटनाएँ रोकने के पर्याप्त बन्दोबस्त किए हैं? इन दोनों सवालों का ज़वाब ‘हाँ’ हो सकता है। हालाँकि, यूनियन कार्बाइड के मामले में निश्चित ही ऐसा नहीं था। उस कम्पनी ने कई स्तरों पर नियमों का उल्लंघन किया। उसकी लापरवाहियों की ओर किसी ने ध्यान भी नहीं दिया। नतीज़ा लोगों को भुगतना पड़ा।
इसी कारण आज अगर भोपाल गैस त्रासदी से निकले सबसे बड़े कारोबारी सबक की बात करें तो वह यही हो सकता है कि नियमों का पालन सिर्फ़ खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। इस विषय को (कॉरपोरेट) प्रशिक्षण प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। उम्मीद करनी चाहिए कि यह सबक अब तक सभी ने ले लिया होगा। ध्यान रखिएगा, होशियार लोग वही होते हैं, जो दूसरों की ग़लतियों से भी सीख लिया करते हैं।
क्या ख़्याल है?
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निकेश का मूल लेख
MP government is cleaning Union Carbide waste by moving it to Pithampur in Indore from Union Carbide plant in Bhopal. They plan to dispose it of by burning it in a controlled scientific way.
Will this bring closure to this 40 years old tragedy?
I sincerely doubt it.
People are still suffering – In fact I met someone just last month whose eyes got impacted and this person now in his 80s is still suffering. There are so many people like him for whom there is no closure possible.
Who created this mess?
Obviously Union Carbide (the company) and the government (both state and center) of that time.
How did they let go authorities and management without paying any price?
Will India handle such mishaps better today?
Can companies do anything to prevent such accidents? Of course yes!
Union carbide plant was uncompliant at so many levels yet no one paid attention and people paid the price.
The compliance should not be a checkmark 😕! It must be integral part of your training process.
Hope the lesson is learnt.
Remember – smart people learn from other’s mistake!
Thoughts?
#BhopalGasTragedy
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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)
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