वाल्मीकि रामायण में ‘जोड़ा गया उत्तरकाण्ड’, जो एक बार लगता है जैसे ‘रावणकाण्ड’ हो!

कमलाकांत त्रिपाठी, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश से

बालकाण्ड की रामकथा के लिए वाल्मीकीय रामायण से इतर एक बना-बनाया ढाँचा उपलब्ध है। तुलसी का रामचरितमानस तो है ही, अनगिनत देशी-विदेशी राम-कथाओं में भी भिन्न-भिन्न रूपों में यह ढाँचा मिल जाता है। पद्मभूषण फ़ादर कामिल बुल्के की प्रसिद्ध पुस्तक ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ एक श्रमसाध्य, सुचिन्तित और यथासम्भव वस्तुपरक शोध ग्रन्थ है, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर माताप्रसाद गुप्त के निर्देशन में किए गए शोध का प्रतिफल है। इस पर उन्हें पीएचडी की उपाधि मिली थी। कामिल बुल्के बेल्जियम से भारत आए एक ईसाई मिशनरी थे। उनका विवेकसम्मत भारत-प्रेम उनके इस एक कथन से ही स्पष्ट है, “संस्कृत भारतीय भाषाओं में महारानी है। हिन्दी बहूरानी और अँग्रेजी बहूरानी की सेविका।” उन्होंने प्राचीन रामकथा- वाल्मीकीय रामायण, बौद्ध रामकथा (दशरथ जातक), जैन रामकथा (विमलसूरि कृत पद्मचरित और गुणभद्र कृत उत्तरपुराण), अर्वाचीन रामकथा (बलरामदास कृत उड़िया रामायण, कृत्तिवास कृत बँगला रामायण और कश्मीरी रामायण) के अतिरिक्त कम्बोडिया की ‘रामकेर्ति’ तथा तिब्बत, श्याम (थाईलैंड), बर्मा आदि देशों में उपलब्ध रामकथाओं के अनुशीलन से अपना मत स्थिर किया है।

बालकाण्ड की तरह उत्तरकाण्ड की रामकथा का कोई ढाँचा उपलब्ध नहीं है। तुलसी ने अपना उतरकाण्ड भरत-हनुमान्‌ मिलन, राम के अयोध्या आगमन, राम के राज्याभिषेक, वानरों और निषाद की विदाई (जो प्रसंग वाल्मीकीय रामायण के युद्धकाण्ड में ही समाहित हैं), रामराज्य के वर्णन और राम, भरत, लक्ष्मण, और शत्रुघ्न के दो-दो पुत्रों की उत्पत्ति के बाद शेष उत्तरकाण्ड विभिन्न सम्वादों के माध्यम से तत्त्व-विवेचन और ज्ञान-भक्ति निरूपण को समर्पित कर दिया है। अन्य रामकथाओं में भी वाल्मीकीय रामायण के उत्तरकाण्ड का कथानक लगभग नदारद है। ऐसे में वाल्मीकि के ‘उत्तरकाण्ड’ (?) में उपलब्ध सामग्री की प्रकृति इस काण्ड के प्रक्षिप्त होने या न होने की एकमात्र कसौटी रह जाती है।

वाल्मीकीय रामायण के ‘उत्तरकाण्ड’ (?) की विषयवस्तु का विहंगावलोकन

उत्तरकाण्ड में कुल 111 सर्ग हैं। यह काण्ड शुरू होता है, राम-दरबार में महर्षियों के आगमन और उनसे संक्षिप्त वार्तालाप के साथ। ऋषि अगस्त्य द्वारा रावण के पितामह ऋषि पुलस्त्य के गुणों और उनकी तपस्या का वर्णन। पुलस्त्य-पुत्र मुनि विश्रवा से वैश्रवण (कुबेर) की उत्पत्ति। वैश्रवण की तपस्या तथा लंका में उनका निवास। राक्षस-वंश का वर्णन—हेति, विद्युत्केश और सुकेश की उत्पत्ति। सुकेश के पुत्र माल्यवान, सुमाली और माली की संतति-परम्परा का आख्यान। राक्षसों के संहार के लिए, शंकर की सलाह पर देवताओं का विष्णु की शरण में जाना और विष्णु का आश्वासन। देवताओं पर राक्षसों का आक्रमण और विष्णु की सहायता से उनका संहार एवं उनका पलायन।

विष्णु (यहाँ उन्हें श्रुति साहित्य की तरह इन्द्र का कनिष्ठ भ्राता दिखाया गया है) द्वारा पीछा किए जाते राक्षसों में माल्यवान का लौट पड़ना। विष्णु से उसका युद्ध। गरुड़ पर उसका आक्रमण और उनके पंख की हवा से उसका और अन्य राक्षसों का उड़ जाना। फिर लंका की ओर पलायन। किन्तु वहाँ से भी भागते-भागते रसातल पहुँच जाना और कुबेर का लंका में निवास। राक्षस सुमाली की पुत्री कैकसी की मुनि विश्रवा से पुत्र पाने की अभ्यर्थना करने पर उनसे रावण, कुम्भकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण का जन्म। रावण आदि की तपस्या के लिये गोकर्ण-तीर्थ की यात्रा। वहाँ घोर तपस्या के उपरान्त ब्रह्मा का प्रकट होना और रावण, विभीषण और कुम्भकर्ण को वर देना। रावण के सन्देश पर कुबेर का लंका छोड़कर कैलास जाना और लंका में रावण का राज्याभिषेक। रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण तथा उनकी बहन शूर्पणखा का विवाह और रावण के पुत्र मेघनाथ का जन्म। रावण के अत्याचार, यक्षों पर उसका आक्रमण और उनकी पराजय। रावण द्वारा कुबेर को पराजित कर उनके पुष्पक विमान का अपहरण। रावण की शंकर के वाहन नन्दी से भिड़न्त। एक हज़ार वर्षों तक उसके द्वारा नन्दी का स्तवन, शंकर का प्राकट्य और उनसे रावण को चन्द्रहास खङ्ग की प्राप्ति। रावण की समस्त पृथ्वी पर दिग्विजय यात्रा। यमलोक पर उसका आक्रमण, उसके वध के लिए यमराज का कालदण्ड उठा लेना। किन्तु ब्रह्मा के आग्रह पर उसे लौटा लेना। रावण और उसके परिजनों की कथा का विस्तार सर्ग-34 तक फैला हुआ है।

सर्ग-31 में उसका आगमन नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मती नगरी में होता है। उसके राजा अर्जुन को वहाँ न पाकर रावण मंत्रियों सहित नर्मदा में स्नान कर उसके तट पर शिव की आराधना करने लगता है। आख़िर उसकी भिड़न्त अर्जुन से हो ही जाती है। उस समय अर्जुन अपनी स्त्रियों के साथ नर्मदा में जलक्रीडा कर रहा था। उसकी हज़ार भुजाएँ थीं। भुजाओं का बल आँकने के लिए उसने उनसे नर्मदा का प्रवाह अवरुद्ध कर दिया। जल उल्टी दिशा में बहने लगा और शिव की पूजा कर रहे रावण द्वारा शिव को अर्पित पुष्पोपहार बहा ले गया। फिर तो रावणादि राक्षसों से अर्जुन का युद्ध होना ही था। महापराक्रमी अर्जुन ने रावणको हराकर क़ैद कर लिया और माहिष्मती ले गया। किसी तरह पुलस्त्य ऋषि ने रावण को अर्जुन की क़ैद से छुड़ाया (सर्ग-33)।

क़ैद से छूटने पर रावण फिर मदमस्त विचरता किष्किन्धापुरी जा पहुँचा और वाली को युद्ध के लिए ललकार बैठा। महाबली वाली ने उसे पकड़कर काँख में दबा लिया और दूर-दूर तक घूमने लगे। अन्त में किष्किन्धा लौटकर उसे उतारा। फिर तो नीतिज्ञ रावण ने अपनी चाटुकारिता से वाली को ख़ुशकर उसे अपना मित्र बना लिया (सर्ग-34)। [इस सर्ग तक ऐसा लगता है जैसे यह रामायण का उत्तरकाण्ड न होकर रावणकाण्ड हो।]

इसके आगे दो सर्गों में हनुमान्‌ की उत्पत्ति और उनके जीवन का वर्णन कर राम के राज्याभिषेक में आमंत्रित राजाओं, वानरों और विभीषणादि राक्षसों की विदाई के युद्धकाण्ड में आ चुके आख्यान की पुनरावृत्ति होती है। इसे यहाँ अनावश्यक, अन्तर्विरोधी और असम्बद्ध विस्तार दिया गया है (इसके पहले की पोस्ट में आ चुका है)।

सर्ग-44 से 49 तक लोकापवाद से विचलित राम द्वारा सीता-निर्वासन की कथा वर्णित है (वह भी उसी पोस्ट में आ चुका है)। सर्ग-54 से 57 तक इक्ष्वाकुवंशी राजा निमि और वशिष्ठ का एक-दूसरे के शाप से देहत्याग और वशिष्ठ के अजीबोग़रीब ढंग से, कुछ अश्लील-सी, पुनर्जन्म की कथा आती है, जो प्रक्षेपकों के दिमाग़ की ही उपज हो सकती है (सर्ग-55—57)।

सर्ग-59 में बिना किसी सन्दर्भ के ययाति और उनके पुत्र पुरु (कौरवों-पांडवों के पूर्वज) की प्रसिद्ध कथा आती है। इसमें विषय-भोग से अतृप्त वृद्ध ययाति अपने युवा पुत्र पुरु को अपना बुढ़ापा देकर उसका यौवन ले लेते हैं और दीर्घकाल तक किए गए विषय-भोग से तृप्त होकर उसका यौवन लौटा देते हैं। अपने पुत्रों में पुरु के द्वारा किए गए त्याग से संन्तुष्ट उसी को राज्य का उत्तराधिकारी बनाते हैं।

फिर राम के सामने ब्राह्मण द्वारा प्रताड़ित एक कुत्ते की न्याय-याचना का प्रसंग आता है। इसमें प्रतारक ब्राह्मण को श्रीराम मठाधीश बनने का दण्ड देते हैं। इस न्याय से सन्तुष्ट कुत्ता अपने पूर्वजन्म में मठाधीश होने और उसमें निहित अकृत्यों के कारण कुत्ता-योनि पाने का रहद्योद्घाटन करता है।

फिर लवणासुर के अत्याचारों से पीड़ित च्यवन आदि ऋषियों का राम की राजसभा में उपस्थित होकर उसके बल का वर्णन करते हुए उसके कारण अपने त्रास के निराकरण के लिए राम से प्रार्थना करते हैं। राम की आज्ञा से शत्रुघ्न इस अभियान का नेतृत्व करते हैं और 12 सालों के कठिन अभियान से लवणासुर का वध करने में सफल होते हैं (सर्ग-60—69)। इसी अभियान के सिलसिले में दो बार उनका वाल्मीकि आश्रम जाना और सीता के जुड़वाँ पुत्र होने पर उनका दर्शन होता है। किन्तु अयोध्या लौटने पर वे इसकी कोई सूचना राम को नहीं देते। सात दिन अयोध्या में रहकर वे लवणासुर के मधु राज्य की व्यवस्था सुधारने उसकी राजधानी मधुपुरी निकल जाते हैं। इसी के बाद शम्बूक प्रसंग आता है (सर्ग-73–77)। इसके बाद राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन, जिसमें वाल्मीकि के साथ प्रकट होकर सीता पृथ्वी की गोद में समा जाती हैं। राम शोक और पश्चात्ताप में डूब जाते हैं (सर्ग—84-98)। 

कैकय देश से ब्रह्मर्षि गार्ग्य का आगमन और उनसे प्रेरित होकर राम द्वारा भरत के नेतृत्त्व में सेना भेजकर गन्धर्व देश पर आक्रमण, उस पर आधिपत्य और भरत द्वारा वहाँ दो सुन्दर नगर बसाकर, अपने दोनों पुत्रों को वहाँ का कार्यभार सौंपकर, अयोध्या लौटना (सर्ग–100—101)।

काल का आगमन। उसके द्वारा भेजा गया ब्रह्मा का राम के नाम सन्देश, जिसे वे एकान्त में सुनते हैं और स्वीकार कर लेते हैं (सर्ग-103)। लक्ष्मण द्वारा दुर्वासा के आगमन पर, उनके शाप के भय से इसकी सूचना देने के लिए राम के एकान्त का नियम-भंग करना। फलस्वरूप राम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग और लक्ष्मण का सशरीर स्वर्गारोहण (सर्ग—105-106)।

कुश और लव का राज्याभिषेक और राम का परमधाम के लिए प्रस्थान। साथ में समस्त अयोध्यावसियों का प्रस्थान (सर्ग-109)। भाइयों सहित राम का विष्णुस्वरूप में प्रवेश और साथ आए अन्य लोगों को ‘सन्तानक’ लोक की प्राप्ति (सर्ग-110)। रामायण काव्य का उपसंहार और फलश्रुति (सर्ग-111)।

विषयवस्तु के अन्त:साक्ष्य के आधार पर हम ख़ुद तय कर सकते हैं, उत्तरकाण्ड मूल वाल्मीकीय रामायण (राम की यात्रा) का प्रक्षिप्त है या मूल रचना का अविभाज्य अंग। 
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(उत्तर प्रदेश की गोरखपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व व्याख्याता और भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे कमलाकांत जी ने यह लेख मूल रूप से फेसबुक पर लिखा है। इसे उनकी अनुमति से मामूली संशोधन के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। इस लेख में उन्होंने जो व्याख्या दी है, वह उनकी अपनी है।) 
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कमलाकांत जी के पिछले लेख 
8. यह वाल्मीकि रामायण का बालकाण्ड है या विश्वामित्र-काण्ड?
7. आख़िर क्यों महर्षि वाल्मीकि को भगवान राम का समकालीन मानने के लिए ठोस आधार नहीं है?
6. क्या वाल्मीकि रामायण के साथ छेड़-छाड़ करने वालों ने श्रीराम की छवि को भी खंडित किया?
5. क्या भगवान राम के समकालीन थे महर्षि वाल्मीकि?
4. क्या वाल्मीकीय रामायण में बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड बाद में कभी जोड़े गए?
3. तुलसी पर ब्राह्मणवादी होने का आरोप क्यों निराधार है?
2. क्या तुलसी ने वर्णाश्रम की पुन:प्रतिष्ठा के लिए षड्यंत्र किया?
1. अग्नि परीक्षा प्रसंग : किस तरह तुलसी ने सीता जी को ‘वाल्मीकीय सीता’ की त्रासदी मुक्त किया!

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