जंगलों में इंसानी दख़ल लगातार बढ़ने की वज़ह से ही जंगल में आग लगने की घटनाएँ भी बढ़ने लगी हैं।
टीम डायरी
कोरोना क्या था? कहाँ से आया था? कोई कहेगा, महामारी थी और चीन से आई थी। उत्तर सही भी है, लेकिन पूरी तरह नहीं। क्योंकि यह सिर्फ़ महामारी नहीं थी, बल्कि यह इन्सानी शरीरों पर एक जंगली जानवर का बेहद जानलेना आक्रमण था। और इस हमले का हथियार अर्थात् इसका विषाणु जंगलों से यानि अमूमन जंगल में ही रहने वाले जानवर ‘चमगादड़’ से आया था। तो यहाँ एक और सवाल हो सकता है कि इन्सानों पर जंगल से, जानवरों से यह हमला हुआ ही क्यों? और क्या यह अपनी तरह का कोई अनोखा मामला है?
इनमें से दूसरे सवाल का ज़वाब पहले कि यह कोरोना कोई पहला मामला नहीं है और न आख़िरी होने वाला है? पहले ‘स्वाइन फ्लू’ आया, सुअर से। ‘एवियन फ्लू’ मुर्गे-मुर्गियों से, ‘प्लेग’ चूहों से और ऐसी कितनी ही बीमारियाँ, महामारियाँ हो चुकी हैं। बन्दरों से इंसानों में आ चुकी बीमारी ‘मंकीपॉक्स’ ऐसे हमलों की श्रृंखला में अभी नई है। और यहाँ ध्यान दीजिए, बीमारियों-महामारियों का कारण बनने वाले जितने भी जानवरों का ज़िक्र है, इनमें से कोई भी पालतू नहीं हैं। सब जंगली हैं। पालतू जानवर तो इनके शिकार ही हुए हैं।
इसके बाद अब दूसरे सवाल का उत्तर कि ऐसे हमले हुए ही क्यों? या होते ही क्यों जा रहे हैं? इसलिए क्योंकि इन्सानों ने बीती कई सदियों से जंगली जानवरों की रिहाइश पर बेतहाशा हमले किए हैं। उनसे उनके घर छीन लिए हैं। उन्हें उनका दायरा समेट लेने के लिए मज़बूर किया है। मसलन- अभी #अपनीडिजिटलडायरी पर ही एक लेख में बताया गया था कि इन्सानी गतिविधियों के कारण जंगलों में बाघों को भी अपना विचरण-क्षेत्र 25 वर्गकिलोमीटर प्रति बाघ से समेटकर पाँच वर्गकिलोमीटर प्रति बाघ तक लाना पड़ा है।
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यानि स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि जंगलों से, जंगली जानवरों से इन्सानों पर होने वाले ये हमले अस्ल में ज़वाबी कार्रवाई हैं। साथ ही एक तरह की चेतावनी भी कि भाई, सचेत हो जाइए। सुधर जाइए। अपने-अपने निर्धारित दायरे में रहिए। नहीं तो, परिणाम आगे और भयंकर हो सकते हैं। कितने भयंकर? इसके लिए कोरोना को ही फिर याद कीजिए। महज़ चन्द महीनों में ही दुनियाभर में इस महामारी ने करोड़ों की आबादी को मौत के मुँह में भेज दिया था। अब तक भी इससे हर सप्ताह लगभग 1,700 लोग मारे जा रहे हैं।
हालाँकि अब भी इन्सान सचेत नहीं हुआ है। कोरोना महामारी के दौरान हुई विश्वव्यापी तालाबन्दी के कुछ समय को छोड़ दें तो इन्सानों की विध्वंसकारी गतिविधियाँ लगातार जारी हैं। ख़ासकर जंगलों और जंगल के जानवरों के साथ तो उसके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। अभी हाल अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय का एक अध्ययन आया है। इसमें बताया गया है कि अफ्रीका, भारत और चीन जैसे अधिक जंगलों वाले क्षेत्रों में भी जंगल तथा जंगली-जानवरों के लिए ख़तरा बहुत है। तो बाकी दुनिया की बात क्या!
इस अध्ययन में बताया गया है कि दुनियाभर में जितनी भी ज़मीन है, उसमें से 75 फ़ीसद हिस्से पर पहले से ही इन्सानों का क़ब्ज़ा है। सिर्फ़ 25 फ़ीसदी हिस्से पर जंगल हैं, जो जंगली जानवरों का स्वाभाविक आशियाना भी हैं। इनमें 22,000 से अधिक प्रजातियों के जानवर रहते हैं। लेकिन चिन्ता की बात ये है कि जंगली जानवरों के इस महज़ 25 प्रतिशत हिस्से में से भी लगभग आधे पर साल 2070 के आस-पास तक इन्सानों का क़ब्ज़ा हो जाने वाला है। इससे इन्सानों और जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ जाने की पूरी आशंका है।
अब ज़रा यहाँ बताए गए 75-25 फ़ीसद के आँकड़े पर दोबारा ग़ौर कीजिए। विश्वविद्यालय का यह अध्ययन ही बताता है कि अभी जब इन्सान ने ज़मीन के महज़ 25 प्रतिशत हिस्से तक जंगलों और जंगली जानवरों को समेटा है, तो इन्सानों को होने वाली 75 फ़ीसदी बीमारियाँ-महामारियाँ जंगल के जानवरों के कारण होने लगी हैं। सो, अब भविष्य की ज़रा कल्पना ही कर लीजिए कि जब हम जंगलों और जंगली जानवरों को उनका दायरा और अधिक समेटने पर मज़बूर कर देंगे तो वे हमारे शरीरों के भीतर कितने प्रतिशत धँस चुके होंगे!!
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