सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 7/1/2022

मप्र सरकार गैस त्रासदी पर भोपाल सीजेएम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सत्र न्यायालय में अपील दायर करेगी। साथ ही वह सुप्रीम कोर्ट में भी धारा 304 दो का प्रकरण रीओपन करने के लिए याचिका दाखिल करने जा रही है। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और विधि मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने एक प्रेस कांफ्रेंस में इस मामले को लेकर गठित विधि विशेषज्ञों की कमेटी के निष्कर्षों की जानकारी दी। 

उन्होंने कहा कि कमेटी की सभी सिफारिशें सरकार ने स्वीकार कर ली हैं। अब तत्काल आगे की कार्रवाई करने जा रहे हैं। गुरुवार को कमेटी की बैठक एडीशनल सॉलिसीटर जनरल विवेक तन्खा की अगुवाई में हुई। मिश्रा ने कहा कि सरकार एंडरसन की गिरफ्तारी और रिहाई के मामले में गलती करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय करेगी। उन सरकारी मुलाजिमों की भी जिम्मेदारी तय की जाएगी जो वैधानिक कर्त्तव्यों का पालन करने में विफल रहे। इस सवाल पर कि क्या तत्कालीन राजनीतिक की जवाबदेही नहीं तय की जाएगी मिश्रा ने कहा कि वह भी इस दायरे में शामिल होगा। मिश्रा ने कहा कि हम केंद्र सरकार और सीबीआई से आग्रह कर रहे हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट और सत्र न्यायालय में के रीओपन करने के लिए याचिका दाखिल करे। उन्होंने कहा कि भोपाल के सीजेएम कोर्ट के सात जून 2010 के आदेश में उपलब्ध साक्ष्यों के मुताबि प्रथमदृष्टया यह धारा 304 दो का प्रकरण है। यही बात एक दिसंबर 1987 को न्यायालय के समक्ष पेश की गई चार्जशीट में भी कही गई है। 

उन्होंने कहा कि सीजेएम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सरकार न्यायालय में अपील दायर करेगी क्योंकि ट्रायल कोर्ट की सजा अपर्याप्त है। सरकार इस मामले में अपील अदालत का ध्यान दो जुलाई 1999 के ऑर्डर शीट के जरिए किए गए उस संशोधन की ओर आकर्षित करेगी जिसमें प्रत्येक मृत्यु और गंभीर व मामूली रूप से प्रभावितों की गिनती किए जाने की बात कही गई है। ट्रायल कोर्ट ने आरोप में इस महत्वपूर्ण तथ्य को विचार में नहीं लिया।  

सरकार सत्र न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर करेगी, जिसमे कतिपय वैधानिक त्रुटियों को सुधारने का अनुरोध किया जाएगा।  

सरकार केंद्र और सीबीआई से अनुरोध करेगी कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष फरार आरोपियों के संबंध में एक पूरक आरोप पत्र धारा 304 आईपीसी के तहत पेश करे। 
एक तथ्यान्वेषी समिति गठित की जाएगी जो उन परिस्थितियों को जांच करेगी जिनके तहत एंडरसन को गिरफ्तार करने के बाद रिहा किया गया। केंद्र से यह भी अनुरोध किया जाएगा कि वह एक संयुक्त टास्क फोर्स का गठन करे जिसकी मदद से एंडरसन को न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सके। 
सरकार केंद्र से अनुरोध करेगी कि वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 14 फरवरी 1989 के निर्णय के विरुद्ध अपील करे जिससे गैस पीड़ितो मुआवजा भी मिल सके। 
भविष्य में ऐसे कानून बनाए जाएंगे जिससे गैस त्रासदी जैसे हादसे हो। सरकार विभिन्न न्यायालयों में इस संबंध में चल रहे मामलों को निगरानी के लिए विशेष प्रकोष्ठ भी गठित करेगी। 
गैस पीड़ितों के हित में भोपाल मेमोरिएल अस्पताल में कुशल प्रशासक नियुक्त करने के संबंध में भी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। 

समिति के सदस्यों में महाधिवक्ता आरडी जैन, पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर, पूर्व सदस्य शांतिलाल लोढ़ा और प्रमुख सचिव विधि एनएन मिश्रा सहित सचिव भोपाल गैस त्रासदी एसआर मोहंती भी शामिल है। मोहंती का नाम पूर्व में घोषित नहीं किया गया था लेकिन संबंधित महकमे के सचिव के नाते उन्हें भी कमेटी में शामिल किया गया।  

मोहंती को लंबे समय बाद एक अहम भूमिका मिली। उन्हें स्वास्थ्य विभाग में सचिव बनाकर हाल ही में लाया गया है। एक ऐसे विभाग की कमान उन्हें सौंपी गई है, जो डॉ. योगीराज शर्मा के कारण देश भर में चमका डॉ. शर्मा इस विभाग के संचालक थे। इलाज के बदतर इंतजामों के कारण गरीब मरीजों के सितारे पहले ही गर्दिश में रहे हैं, इनकम टैक्स वालों के एक छापे ने इनके सितारे भी गर्दिश में ला दिए। इनकी कमाई के आंकड़े चौंकाने वाले थे, जिन्हें देखकर कुछ हद तक समझ में आया कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आने वाले वाले अरबों रुपए किधर समा जाते हैं। हालांकि वे अकेले नहीं रहे होंगे। माले गनीमत कई हाथों में बांटते रहे होंगे। योगी की कमाई का रिकॉर्ड अरविंद जोशी-टीनू जोशी ने तोड़ा। फर्क यह है कि योगीराज आईएएस अफसर नहीं थे, जबकि जोशी एक जोड़ी आईएएस थे। इसलिए कमाई के आंकड़े कम होने के बावजूद योगीराज हेराफेरी के कला कौशल में अव्वल माने जाएंगे। 

नयी जिम्मेदारी के रूप में मोहंती को योगीराज की माया मिली। वे औद्योगिक केंद्र विकास निगम के एमडी के रूप में काफी नाम कमा चुके थे। उन्होंने सात सौ करोड़ रुपए कर्ज के रूप में बाटे। मीडिया ने खबरों में इसे घोटाला लिखा। जांचें बैठीं। नतीजा यह रहा कि मोहंती के साथ के आईएएस अफसर तो प्रमोशन पाते गए, इनकी नाव घोटाले ने अटका ली। फिलहाल वे अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम में एमडी थे। आदिवासी, अनुसूचित जाति वाले वैसे भी व्यवस्था के हाशिए पर रहे हैं। इसीलिए इनके विभागों को भी अफसरों की भाषा में लूप लाइन का माना जाता है। क्योंकि यहां कुछ करने की गुंजाइश कम होती है। पता नहीं वे क्या करना चाहते हैं, जिसके लिए मलाईदार विभाग में होना आवश्यक है? 

मैंने मोहंती साहब की तस्वीरें अखबारों में देखी थीं। कभी मिला नहीं था। एक शाम रवींद्र भवन में एक कार्यक्रम था। यह सांसद अनिल माधव दवे की किताब ‘नर्मदा समग्र’ का विमोचन समारोह था, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तशरीफ ला रहे थे। तय कार्यक्रम से बीसेक मिनट पहले आए श्रोताओं में एक सौम्य शख्स पर मेरा ध्यान गया। मैंने विद्यार्थी परिषद के अपने मित्र रजनीश अग्रवाल से पूछा कि ये सज्जन कौन हैं? कोई बड़े पुस्तक प्रेमी या नदी पर्यावरण के प्रति सजग स्वयंसेवी लगते हैं। रजनीश ने जानकारी दी कि जी नहीं, ये एसआर मोहंती हैं। आईएएस अधिकारी हैं। मेरी जिज्ञासा जानकर मंत्रालय कवर करने वाले एक पत्रकार मित्र ने बताया कि इन दिनों मोहंतीजी अपने लिए किसी बड़ी जिम्मेदारी के तलबगार हैं। अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम में क्या है करने को? बाद में सरकार स्वास्थ्य विभाग जैसे अहम विभाग को बेहतर करने के लिए उन पर भरोसा किया। उम्मीद करें कि वे कोई नजीर पेश करके इस विभाग से प्रमोशन पर जाएंगे।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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