संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से, 17/3/2021
हम सब अपने एकांत में बेहद क्रूर और दुराचारी होते हैं। भीड़ में बेहद डरपोक और शिष्ट।
याद आता है कि कैसे एक शान्त नदी अपने उद्भव से निकलती है, तो छोटी सी लकीर होती है। पर ज्यों-ज्यों पहाड़, कन्दराओं से गुजरती है तो उच्छृंखल और बेख़ौफ़ होती जाती है। क्योंकि वह अपने उद्भव को, अपनी जड़ों को छोड़ चुकी है। अब मस्त होकर वह सब कुछ हासिल कर लेना चाहती है।
वैसे, आसमान भी नीला दिखता है। पर जब इसी आसमान को भेदकर कोई विमान अपने ताकतवर पंखों से चीरता हुआ इसके भीतर पहुँच जाता है तो सफ़ेदी से भरे रुई के लच्छे यहाँ-वहाँ ठहरे दिखाई देते हैं। मानो किसी ने उन्हें सजाकर रख दिया हो या कोई अनन्तिम सज़ा दी हो प्रेम करने की।
मैं अपने कमरे की इस नीलिमा से कभी मुक्त नहीं होता हूँ। मुझे नीले परिवेश में डूब जाना इतना भाता है कि मैं कभी-कभी सारे दिन दीवार से टिककर खड़ा रहता हूँ। रात में गाढ़े नीले रँग में डूबे अंधकार में अपने दोनो पाँव दीवार से सटा देता हूँ कि वह नीली रोशनी पाँवों को भेदकर मेरे भीतर समाहित हो जाए। और अपने शरीर के ऊपर से त्वचा में धँसी हुई नसों में बहता अशुध्द रक्त अन्दर संजाल के रूप में बिछी हुई धमनियों में भी सम जाएं। फिर जब धमनी-शिरा का रक्त अपने पूरे स्वरूप में नीला हो जाए तो फिर भीतर की दीवारें भरभराकर टूट पड़ें।
कभी कोई मिलता है मुझसे, तो पहचान नहीं पाता। यह उम्र का असर हो या चेहरे पर आई समय की झारियाँ या हो सकता है चाँदनी के फूल अब कहीं और खिले हों, मोगरे की झाड़ी में। पर यकायक लोग कहते हैं- कैसे हो गए? बदल गए हो? तो मैं हँस देता हूँ। हँसते समय लगता है, एक जहर से पूरा शरीर नीला पड़ रहा है और पतली सी जुबान निकालकर अभी सामने वाले को डस ही लूँगा – पीछे हट जाता हूँ बहुधा और चुप भी हो जाता हूँ – एक अदृश्य दीवार उठा लेता हूँ, अपने और उसके बीच। ऐसी दीवार, जिसकी अब आदत हो गई है मुझे..
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(संदीप जी स्वतंत्र लेखक हैं। यह लेख उनकी ‘एकांत की अकुलाहट’ श्रृंखला की दूसरी कड़ी है। #अपनीडिजिटलडायरी की टीम को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने इस श्रृंखला के सभी लेख अपनी स्वेच्छा से, सहर्ष उपलब्ध कराए हैं। वह भी बिना कोई पारिश्रमिक लिए। इस मायने में उनके निजी अनुभवों/विचारों की यह पठनीय श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी की टीम के लिए पहली कमाई की तरह है। अपने पाठकों और सहभागियों को लगातार स्वस्थ, रोचक, प्रेरक, सरोकार से भरी पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने का लक्ष्य लेकर सतत् प्रयास कर रही ‘डायरी’ टीम इसके लिए संदीप जी की आभारी है।)
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