भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 26/9/2021

ब्रिटेन की सरकार ने 1858 में भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद ब्रिटिश शासन के तहत आने वाली 500 से ज़्यादा रियासतों की सीमाएँ निश्चित कर दी गईं। बदले में इन रियासतों को ब्रिटिश सरकार की रहनुमाई स्वीकार करनी पड़ी। ऐसे ही, भारत सरकार लंदन में बैठे ब्रिटेन के गृह मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट्स) के अधीन हो गई। वहाँ 1858 में ही एक कानून के जरिए भारतीय परिषद (काउंसिल ऑफ इंडिया) बनाई गई। इसमें भारत में काम का अनुभव रखने वालों को शामिल किया गया। यह गृह मंत्री की सलाहकार परिषद थी। चूँकि तब ब्रिटिश संसद भारत से संबंधित मामलों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही थी। इसलिए गृह मंत्री के पास इस मामले में असीमित-से अधिकार आ गए। 

भारत सरकार को अब भारतीय शासन व्यवस्था को प्रभावित करने वाले संवैधानिक मामलों में फ़ैसले लेने की आज़ादी नहीं थी। ऐसे मामलों में ब्रिटेन की सरकार अक्सर अपने विचार, सुझाव थोप देती थी। इन्हीं के मुताबिक, भारतीय शासन तंत्र में परिवर्तन किए जा रहे थे। जैसे- 1861 में केंद्रीय विधायी परिषद का दायरा बढ़ा दिया गया। उसमें अब ग़ैर-अधिकारी सदस्यों को भी शामिल किया गया। इनमें दो भारतीय होते थे। ऐसी ही परिषदें प्रांतों में भी बनाई गईं। इन सबका काम अब ये था कि अगर किसी तरह के संवैधानिक बदलाव की माँग उठे तो उसकी रूपरेखा बनाकर सरकार को सौंपें। इसके बाद 1892 में चुनावों की व्यवस्था लागू की गई। लेकिन यह पहले वहाँ तक सीमित रही, जहाँ अंग्रेजों के हित सीधे जुड़े थे। जैसे- नगरीय निकाय, व्यावसायिक प्रकोष्ठ (चैंबर ऑफ कॉमर्स), विश्वविद्यालय आदि।

भारत में अब तक दो तरह का राष्ट्रवाद जोर मारने लगा था। एक- पुनरुत्थानवादी, दूसरा- अतिवादी। इस तरह 19वीं सदी के आख़िर से भारत में ब्रिटिश शासन के अंत तक का इतिहास हिंदुस्तान की सरकार और प्रमुख राष्ट्रीय आंदोलन के बीच के संघर्ष की कहानी है। इस संघर्ष की प्रमुख घटनाओं की श्रृंखला में पहली थी 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम। इसे ‘मार्ले-मिंटो सुधार’ कहा जाता है। इसके जरिए केंद्रीय विधायी परिषद में सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 16 से 60 कर दी गई। इनमें से 27 सदस्यों का चुनाव ‘विशिष्ट हितों से जुड़े समूहों’ से किया जाना तय हुआ। इनमें मुसलिम समुदाय को प्रमुख रूप में मान्यता दी गई। यह सबसे अहम बदलाव था। साथ की धर्म-आधारित प्रतिनिधित्व की ख़तरनाक शुरुआत भी।

परिषद के सदस्य तीन समूहों में बँटे थे। पहला- चुने हुए सदस्य, दूसरा- अधिकारी वर्ग और तीसरा- ग़ैरअधिकारी मनोनीत प्रतिनिधि। मनोनीत सदस्य व्यावसायिक संगठन, ज़मींदार वर्ग, विश्वविद्यालयों आदि से संबद्ध लोग होते थे। प्रांतों की परिषदों में ग़ैरअधिकारी और केंद्रीय परिषद में अधिकारी वर्ग के सदस्य ज़्यादा थे। वैसे, इन परिषदों के पास बहुत अधिकार नहीं थे। ज़ाहिर तौर पर इससे राष्ट्रवादी समूह संतुष्ट नहीं हुए। लिहाज़ा और ज़्यादा सुधारों की माँग के साथ राष्ट्रवादी आंदोलन जारी रहा। इसके बाद 1919 में ‘भारत सरकार अधिनियम’ लाया गया। इसे ‘मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार’ कहा गया। यह कानून 1921 में प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए विधायी परिषदों को कुछ शक्तियाँ दी गई थीं। लेकिन असल अधिकार अब भी वायसराय के पास ही थे। जैसे- वह परिषदों द्वारा ख़ारिज़ किए गए नियम-क़ायदों को फिर मान्यता दे सकते थे। उन्हें अध्यादेश के ज़रिए लागू कर सकते थे।

इससे व्यापक बहस शुरू हो गई, जिसके नतीज़े में प्रांतों में ‘द्विशासन सिद्धांत’ लागू किया गया। यानि दोहरी शासन प्रणाली। इसके तहत सरकार के विभागों को दो हिस्सों में बाँटा गया। पहली श्रेणी ‘आरक्षित’ विभागों की थी। इनमें कानून-व्यवस्था, राजस्व, वित्त जैसे विभाग थे। ये प्रांतीय प्रशासन के हवाले किए गए। दूसरी श्रेणी- स्थानांतरित या हस्तांतरित किए जाने वाले विभागों की थी। इनमें स्थानीय शासन, स्वच्छता, शिक्षा और आर्थिक विकास जैसे विभाग थे। इनकी ज़िम्मेदारी निर्वाचित सदस्यों (मंत्रियों जैसे) को देने का प्रावधान था। ज़ाहिर तौर पर यह व्यवस्था भी आधी-अधूरी ही थी। लिहाज़ा सुधारों की माँग जारी रही।

तभी 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में ब्रिगेडियर-जनरल डायर की अगुवाई में निहत्थे लोगों के संहार की घटना (जलियाँवाला बाग हत्याकांड) हो गई। इससे राष्ट्रवादियों को लगने लगा कि अंग्रेज सरकार सुधारों का एजेंडा लागू ही नहीं करना चाहती। इसका नतीज़ा असहयोग आंदोलन के रूप में दिखा। इसे राष्ट्रवादी आंदोलन में अब तक ख़ुद को स्थापित कर चुकी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने शुरू किया था। उसने 1921 में महात्मा गाँधी को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा। आंदोलन के दौरान अंग्रेजी कपड़ों की होली जलाई गई। जगह-जगह धरने, प्रदर्शन, हड़तालें हुईं। लगभग दो-तिहाई पात्र मतदाताओं ने नई विधानसभाओं के चुनाव का बहिष्कार किया। आंदोलन दबाने के लिए अंग्रेजों ने प्रदर्शनकारियों को जेलों में ठूँसा। नतीज़े में भारतीय जेलें करीब 30,000 राजनैतिक कैदियों से भर गईं। उसी दौरान सरकार ने ब्रिटिश ताज के उत्तराधिकारी प्रिंस ऑफ वेल्स को हिंदुस्तान बुलवाया। ताकि ब्रिटिश राजगद्दी के प्रति भारतीयों का उत्साह जगाया जा सके। लेकिन हिंदुस्तान में प्रिंस का स्वागत खाली सड़कों के नज़ारों से हुआ। इसी बीच संयुक्त प्रांत में आंदोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को जला दिया तथा 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। इससे आहत महात्मा गाँधी ने आंदोलन स्थगित कर दिया।

इसी कालखंड में पंडित मोतीलाल नेहरू और सीआर दास ने स्वराज पार्टी बनाई, ताकि वह चुनावों में भाग लेकर सुधार प्रक्रिया तेज करा सके। लेकिन वह अपने उद्देश्य में असफल रही। इस बीच, हिंदु-मुसलिम संघर्ष की स्थिति भी बनने लगी थी। साल 1923 के सांप्रदायिक दंगे इसी का नतीज़ा थे। इसके अगले ही साल मुसलिम लीग फिर सक्रिय हो गई, जो 1916 से निष्क्रिय थी। इन कारणों से राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों में निराशा की स्थिति बनने लगी।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे? 

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