संदीप नाइक, देवास, मध्य प्रदेश से, 4/3/2021
#अपनीडिजिटलडायरी पर पढ़ा… “झुकन झुकन से जानिए, झुकन झुकन पहचान। तीन जनें जादा (ज़्यादा) झुकें, चीता चाेर कमान।”
बढ़िया लिखा है… और जो लिखा गया है, मौज़ूदा लोक-व्यवहार में एक हद तक सही भी है।
पर दूसरा पहलू इसका उल्टा भी है – वृक्ष जब फलों से लद जाता है तो झुकता है
शायर भी कहते है, “यक़ीनन उसका क़द आपसे बड़ा रहा होगा। वो शख़्स जो आपसे झुककर मिला होगा।”
तीसरा पहलू भी है। कवि/शायर दुष्यन्त कुमार लिखकर गए हैं, “ये सारा ज़िस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा। मैं सज़दे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।”
केस टू केस निर्भर करता है ये सब।
डायरी के लेख में दूसरे और तीसरे पहलू छोड़ दिए गए हैं। हालाँकि कहावत अपने आप में मुकम्मल है।
और सच ये भी है कि लोक में अभिदा, व्यंजना और लक्षणा की जो मारक क्षमता है वह गज्जब है।
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(संदीप नाइक, स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। उन्होंने #अपनीडिजिटलडायरी के लेख पर फेसबुक पर जो टिप्पणी की थी, उसे उनकी इजाज़त से थोड़ा संवर्धित कर के प्रकाशित किया गया है। ताकि डायरी के पाठकों को विषय से जुड़े पहलुओं की समग्र तस्वीर मिल सके।)
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